Dev Deepawali Kyu manai jati hai

Dev Deepawali Kab aur kyun manaya jata hai DEV DEEPAWALI KI KATHA IN HINDI Dev DEEPAWALI KA MAHATAV  देव दिवाली क्यों मनाते हैं

देव दीपावली कब और क्यों मनाई जाती है

कार्तिक मास की पूर्णिमा के मौके पर प्रतिवर्ष बनारस में देव दीपावली मनाई जाती है।  माना जाता है कि इस दिन देवता धरती उतर कर दीप प्रज्वलित करते हैं इसलिए इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है। 
मान्यता है कि देव दीपावली के दिन देवता काशी में आते हैं और देव दीपावली मनाते हैं।‌‌देव दीपावली के दिन बनारस की सजावट देखने योग्य होती है। बनारस के घाट पर लाखों की संख्या में मिट्टी के दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।  यह दृश्य बहुत आलौकिक होता है जिसे देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं।  

देव दीपावली महत्व

देव दीपावली के बारे में मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन  भगवान शिव ने त्रिपुरारी नामक राक्षस का वध करने के लिए त्रिपुरारी अवतार लिया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। राक्षस का वध होने के पश्चात देवताओं ने भोले नाथ की नगरी काशी में दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी (वाराणसी) के घाट पर लोग दीप जलाकर आज भी मनाते हैं। देव दीपावली के दिन भगवान विष्णु, भगवान शिव, मां गंगा और तुलसी पूजन का विशेष महत्व है।

देव‌ दीपावली के दिन माना जाता है कि देवता काशी के घाट पर आते हैं और इस दिन देव जागृत होते हैं इसलिए इस दिन गंगा घाट पर स्नान और दीप दान का विशेष महत्व है।

इसदिन तुलसी पूजन का विशेष महत्व है तुलसी पर दीप जलाना चाहिए। 

भगवान विष्णु ने इस दिन मत्स्य अवतार लिया था इसलिए भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का भी जन्म कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली के दिन हुआ था।

इस दिन किए गए दान-पुण्य, जप-तप, पवित्र नदी सरोवर पर स्नान और दीप दान का फल अन्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक प्राप्त होता है। 

 DEV DEEPAWALI KATHA IN HINDI

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी ने जब तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों ने अपनी पिता के वध का प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।

तारकासुर के पुत्रों के नाम तारकाक्ष,कमलाक्ष और विद्युन्माली थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उनसे वर मांगने के लिए कहा। उन तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा तो ब्रह्मा जी कहने लगे कि," मैं अमर होने का वर नहीं दे सकता इसलिए तुम तीनों कोई और वरदान मांगो।"

उन तीनों ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप हमारे लिए तीन ऐसे नगरों का निर्माण करवाएं जिसमें हम बैठे-बैठे ही हम तीनों लोकों का भ्रमण कर सके। एक हज़ार साल बाद तीनों नगरों का एक नगर बन जाएं। उनका वध केवल वह देवता कर सकें जो एक ही बाण से तीनों का वध सके। ब्रह्मा जी ने उन्हें ऐसा वर दे दिया।

ब्रह्मा जी ने मयदानव को तीनों के लिए नगर बनाने का आदेश दिया। मयदानव ने तीन नगरों का निर्माण किया जा सोने का , एक चांदी का और तीसरा लोहे का नगर था। तारकाक्ष को सोने का नगर मिला,कमलाक्ष को चांदी का और विद्युन्माली को लोहे से बना नगर मिला।

तीनों भाइयों ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों को विजय कर लिया। तीनों से भयभीत होकर इंद्रदेव भगवान शिव की शरण में गए। देवताओं की रक्षा के लिए भगवान शिव उनका वध करने के लिए तैयार हो गए। 

विश्वकर्मा ने एक दिव्य रथ बनवाया जिसके पहिये सूर्य और चंद्र देव बने। रथ के घोड़े इंद्रदेव, कुबेर, यम और वरूण बने। हिमालय से धनुष बना और शेषनाग को धनुष की प्रत्यंचा बनाया गया। भगवान विष्णु बाण और अग्नि देव बाण की नोक बने।भगवान शिव दिव्य रथ पर सवार होकर त्रिपुरों को नष्ट करने के लिए गए तो भयंकर युद्ध आरंभ हो गया। युद्ध के दौरान जब त्रिपुर एक साथ आए भगवान शिव ने बाण चला कर तीनों त्रिपुरों को नष्ट कर दिया। त्रिपुरों को नष्ट करने के कारण भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है।

त्रिपुरों के अंत से सभी देवता बहुत हर्षित हुएं और भगवान शिव की नगरी काशी में गंगा नदी के तट पर दीप जलाएं थे। इसी परंपरा के कारण ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप जला कर देव दीपावली मनाई जाती है।

देव दीपावली के दिन बनारस के घाटों‌ की शोभा आलौकिक होती है। लाखों की संख्या में मिट्टी के दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस अनुपम दृश्य को देखने के लिए बनारस आते हैं ताकि बनारस घाट पर स्नान और दीप प्रज्वलन के साक्षी बन सके। 

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