Ganesha story for kids

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गणेश जी की कहानियां बच्चों के लिए 

गणेश जी भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय है। गणेश जी को विध्न हर्ता कहा जाता है। हम कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी का पूजन करते हैं ताकि गणेश जी आने वाले विध्नों को हर ले। 

श्री गणेश जी को विनायक, सिद्धिविनायक, गणपति आदि की नामों से जाना जाता है। गणेश जी की कहानियां बच्चों को बहुत पसंद हैं क्योंकि गणेश जी बच्चें के मनपसंद देवों में से एक है। इस आर्टिकल में पढ़ें गणेश जी की कहानियां बच्चों के लिए 

चंद्रमा और गणेश जी की कहानी बच्चों के लिए 

Chandrama and Ganesha story for kids: एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। अचानक से मूषक के आगे से सर्प निकला तो उन्होंने अपना संतुलन खो दिया। उनका ऐसा करने से गणेश जी गिर गए। चंद्रमा ने गणेश जी को गिरते हुए देख लिया। उन्होंने गणेश जी के रुप का उपहास उड़ाया। 

गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि तुम को अपनी सुन्दरता पर बहुत अहंकार है। आज से यह सुंदरता ही तुम्हारे कलंक का कारण बनेगी। 

जो भी तुम को देखेगा उस पर झूठा आरोप लगेगा। गणेश जी के इस शाप के कारण चंद्रमा जाकर छिप गए। ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को बताया कि गणेश जी के इस शाप को केवल गणेश जी ही काट सकते हैं। फिर चंद्रमा ने गणेश जी की पूजा की। जिससे प्रसन्न होकर गणेश जी ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। चंद्रमा ने कहा-" मुझे वरदान दे कि सब लोग पहले के जैसे मेरे दर्शन कर सकें।"

गणेश जी कहने लगे कि," मैं अपना शाप वापस तो नहीं ले सकता। लेकिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो तुम्हारे दर्शन करेगा केवल उसे ही कलंक का सामना करना पड़ेगा।"

गणेश जी की इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए‌ और अगर ग़लती हो जाए तो क्षमा मांगनी चाहिए। 

बुढ़िया और गणेश जी की कहानी बच्चों के लिए 

Budhiya and Ganesha story for kids:एक बार एक बुढ़िया गणेश जी की बहुत भक्ति करती थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए। गणेश जी ने उसे एक वरदान मांगने के लिए कहा। बुढ़िया कहने लगी कि,"गणेश महाराज मुझे तो मांगना नहीं आता।"

गणेश जी बोले- ठीक है। मैं कल फिर से स्वप्न में दर्शन दूंगा। तब तक तुम सोच लो कि तुम को कौन सा वरदान मांगना है।

 बुढ़िया ने अगले दिन सुबह पुत्र से पूछा - मैं गणेश जी से क्या मांगू?

बुढ़िया का पुत्र बोला - मां तुम गणेश जी से बहुत सा धन दौलत मांग लो। हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। 

बुढ़िया ने बहू से सलाह मांगी तो वह बोली - सासू मां गणेश जी से पोता मांग लो। 

पड़ोस में बुढ़िया की सहेली रहती थी। बुढ़िया ने उससे पूछा तो वह बोली कि अपने लिए आंखें मांग लो। बुढ़ापे में बिना आंखों के जीना भी बहुत कठिन है। बेटा-बहू तो अपने सुख की चीजें मांग रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि तुम को अपने लिए ही कुछ मांगना चाहिए। 

बुढ़िया को तीनों की सलाह ठीक लग रही थी। लेकिन दुविधा यह थी कि गणेश जी ने तो केवल एक ही वरदान देने की बात कही थी। बुढ़िया ने मन में कुछ विचार किया और सो गई। 

गणेश जी ने बुढ़िया को स्वप्न में दर्शन दिए। गणेश जी ने पूछा कि मईया विचार कर लिया कि कौन सा वरदान मांगना है। बुढ़िया कहने लगी कि, " प्रभु मैं तो केवल अपने पोते को सोने के चम्मच से खाते हुए देखना चाहती हूं"

गणेश जी मुस्कुराते हुए बोले- मइया तू तो कह रही थी कि मुझे मांगना नहीं आता। लेकिन तुम ने तो मुझे ठग लिया। तुमने एक ही वरदान में अपने लिए आंखें, धन और पोता तीनों मांग लिए। आंखे होगी तो देख पाओगी, धन होगा तो ही सोने के चम्मच से पोता दूध पी पाएगा। तुम ने बहुत चतुराई से एक ही वरदान में तीन चीजें मांग ली।

मैं तुम्हारी भक्ति और बुद्धिमत्ता दोनों से प्रसन्न हूं। जैसा तुमने वरदान मांगा है वैसा ही फल तुम को प्राप्त होगा।

गणेश जी और बुढ़िया की इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हम बुद्धिमत्ता के बल पर असंभव दिखने वाली समस्याओं का भी समाधान निकाल सकते हैं। 

 कुबेर और गणेश जी की कहानी बच्चों के लिए

Kuber and Ganesha story for kids: एक बार देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर जी को अपनी धन वैभव पर बहुत अहंकार हो गया।‌ उन्होंने अपना धन वैभव दिखाने के लिए भगवान शिव और मां पार्वती को भोजन पर आमंत्रित करने का निश्चय किया। जब वह भगवान शिव के पास पहुंचे तो भगवान शिव तो अंतर्यामी है वह कुबेर के अहंकार के बारे में जान गए। 

भगवान शिव कहने लगे कि,"कुबेर हम दोनों तो नहीं आ पाएंगे लेकिन गणेश आ जाएगा।"

गणेश जी भी समझ गए कि पिता जी मुझसे क्या करवाना चाहते हैं। गणेश जी निश्चित समय पर कुबेर के निवास पर पहुंच गए। 

कुबेर जी ने गणेश जी को अपना धन वैभव दिखाने के लिए बहुत प्रसन्न होकर सोने-चांदी के बर्तन में भोजन परोसा। कुबेर जी की यह खुशी जल्दी समाप्त हो गई। गणेश जी कुछ ही समय में कुबेर के रसोई में बना सारा भोजन खा गए। गणेश जी का पेट अभी भी भरा नहीं था। गणेश जी ने कुबेर जी से और भोजन मांगा। 

गणेश जी कुबेर का सारा सामान खा गए। गणेश जी कुबेर से बोले- कि अगर तुम मुझे प्रयाप्त भोजन नहीं करवा सकते थे तो किस काम का तुम्हारा धन वैभव।

कुबेर जी ने अब समझ आ गया था कि गणेश जी ने सारा प्रसंग मेरा अहंकार को तोड़ने के लिए किया है। 

शिक्षा - गणेश जी और कुबेर की इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने पद और प्रतिष्ठा का अहंकार नहीं करना चाहिए। 

खीर और गणेश जी की कहानी बच्चों के लिए

Kheer and Ganesha story for kids:एक बार गणेश जी ने अपने भक्तों की परीक्षा लेने की सोची। वह एक छोटे से बालक का रूप धारण कर एक गांव में पहुंचे। गणेश जी के एक हाथ में चावल और दूसरे हाथ में एक चम्मच दूध था। गणेश जी गांव में हर किसी से कहने लगे कि, "कोई मुझे इन चावलों कि खीर बना दे।"

लेकिन सभी गणेश जी का मज़ाक बनाते कि इतने से चावल से खीर कैसे बन सकती है? कोई भी उनकी खीर बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में गणेश जी एक बुढ़िया के पास पहुंचे। उसने बालक का मन रखने के लिए खीर बनाने की हामी भर दी। 

वह एक बर्तन लेकर आ गई। गणेश जी बोले मईया इतने से बर्तन में में नहीं बल्कि बड़े बर्तन में खीर बनाओ। 

बच्चे का मन रखने के लिए बुढ़िया एक बड़ा सा पतीला ले आई। गणेश जी ने जैसे ही चावल और चम्मच दूध बर्तन में उड़ेलना शुरू किया बर्तन चमत्कारिक रूप से भर गया। 

बुढ़िया ने खीर बनाने के लिए पतीला चुल्ले पर रख दिया। गणेश जी बोले मईया में स्नान करके आता हूं।

 बुढ़िया कहने लगी कि," बेटा इतनी खीर का मैं क्या करूंगी?"

गणेश जी कहने लगे कि," आप पूरे गांव को न्यौता दे आओ।"

 बुढ़िया खीर तैयार करके पूरे गांव में न्यौता देने चली गई।बुढ़िया की बहू रसोई के दरवाजे के पीछे बैठ कर खीर खाने की तैयारी करने लगी। उसे डर था कि कहीं खीर समाप्त ना हो जाए। उसने खीर खाने से पहले कहा आओ गणेश जी भोग लगाओ। 

जब गणेश जी जब स्नान करके वापस लौट आए तो बुढ़िया माई बोली- बेटा खीर खा लो। 

गणेश जी बोले मईया मैंने तो खीर खा ली और मेरा पेट भर गया है।

 बुढ़िया माई बोली - बेटा तुम तो अभी आएं हो। तुमने खीर कब खाई। गणेश जी बोले मईया जब तुम्हारी बहू ने खीर खाने से पहले कहा आओ गणेश जी भोग लगाओ। तब मुझे भोग लग गया। 

बुढ़िया माई समझ गई कि यह तो स्वयं गणेश जी है। उसने गणेश जी को प्रणाम किया। गणेश जी उस बुढ़िया माई से बहुत प्रसन्न थे। वह कहने लगे कि," मईया पूरे गांव, अपने परिवार और स्वयं खाने के पश्चात जो खीर बच जाएगी उसे बर्तनों में भरकर घर के सभी कोनों में रख देना। गणेश जी ने उसके पश्चात बुढ़िया माई से विदा ली। बुढ़िया माई ने गणेश जी के बताए अनुसार ही सभी कार्य किए। 

जब वह प्रातः उठी तो सभी बर्तन हीरे-जवाहरात से भरे हुए थे। अब उसकी सभी दरिद्रता दूर हो गई। उसने गणेश जी का आभार व्यक्त किया।‌ 

बुढ़िया माई और गणेश जी की कहानी हमें सिखाती है कि जब हम किसी का भला करते हैं तो हमारा भी भला होता है 

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