KRISHNA STORY IN HINDI

krishna motivational story in hindi श्री कृष्ण मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी krishna story in hindi

श्री कृष्ण मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी

 श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। उनका जन्म अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। जब पृथ्वी पर कंस और अन्य पापियों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए तो श्री कृष्ण ने अवतार लेकर सभी पापियों का संहार किया। 

श्रीभगवद्गीता में श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

भावार्थ- हे भारतवंशी! जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अवतार लेता हूं।

श्री कृष्ण के जीवन से हम सकारात्मक रहना और कठिन परिस्थितियों में भी समभाव रहना सीख सकते है। 

श्री कृष्ण के जन्म से पहले ही कंस काल बन कर उनका इंतजार कर रहा था। कंस श्री कृष्ण का मामा था। श्री कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था।

कंस जब अपनी बहन की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई कि तुम्हारी बहन की आठवीं संतान तुम्हारा वध करेगी। कंस श्री कृष्ण की मां देवकी को मार देना चाहता था। लेकिन वासुदेव जी कहने लगे कि," तुम्हारा शत्रु मेरी आठवीं संतान है। मैं अपनी सारी संतान तुम को सौंप दूंगा फिर तुम उनके साथ जैसा मर्जी व्यवहार करना।" कंस ने दोनों को कारागार में डाल दिया। 

‌श्री कृष्ण से पहले कंस ने देवकी और वसुदेव के छ: पुत्रों को मार दिया। उनकी सातवीं संतान को योग माया ने मां रोहिणी के गृभ में संरक्षित कर दिया।‌ इसलिए बलराम मां रोहिणी के पुत्र कहलाएं। 

श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ। उनके जन्म लेते ही वासुदेव जी कंस के भय से उन्हें गोकुल छोड़ आएं। इस तरह जन्म होते ही उसने माता पिता छूट गए। 

नंद बाबा और यशोदा मैया ने श्री कृष्ण का पालन-पोषण किया। माता यशोदा और नंद बाबा ने पूर्व जन्म में तपस्या कर भगवान की बाल लीला देखने का वरदान मांगा था। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी ऐसी लीला दिखाई कि आज भी हर जब कोई बच्चा शरारत करता है तो मां यही कहती हैं कि यह तो मेरा कन्हैया है। उन्होंने अपनी बाल लीला से गोकुल और वृन्दावन को आनंदित कर दिया था। 

कंस को जब पता चला कि मुझे मारने वाला गोकुल में पैदा हुआ है तो उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए पुतना, शकटासुर और तृणावर्त को भेजा। 

श्री कृष्ण जो अपनी माया के जाल में सबको बांध सकते हैं। उन श्री कृष्ण को शरारत करने पर मां यशोदा ने रस्सी से बांध दिया और भगवान ने अपनी दामोदर लीला कर यमलार्जुन के वृक्षों को मोक्ष प्रदान किया। 

कंस समय-समय पर राक्षसों को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजता रहा। उसने वत्सासुर ,बकासुर और अघासुर को भेजा। श्री कृष्ण ने सबका वध कर दिया। 

श्री कृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार का मर्दन करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। 

श्री कृष्ण ने वृन्दावन में रहते हुए ग्वाल बाल संग गाय चराने जाते। आज भी श्री कृष्ण के प्रथम बार गो चरण के लिए जाने वाले पर्व को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। 

श्री कृष्ण ने बरसाना और वृन्दावन में श्री राधा रानी संग बहुत सी लीलाएं की। राधा रानी को श्री कृष्ण की शक्ति माना जाता है। श्री कृष्ण और राधा रानी का प्रेम शाश्वत और निश्चल था। 

कंस वध की कथा 

 जब कंस वध का समय नजदीक आ गया तो नारदजी ने कंस को बता दिया कि श्री कृष्ण और बलराम ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगे।‌ कंस दोनों भाइयों को मारने की पूरी योजना तैयार कर ली। 

गोकुल में भी कंस किसी ना किसी को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजता रहा। जब कंस को लगा कि वह किसी भी यत्न से कृष्ण को मार‌ नहीं पा रहा तो उसने श्री कृष्ण को मथुरा बुला लिया। अक्रूर जी वृन्दावन श्री कृष्ण को लेने पहुंचे। उन्होंने बताया कि कंस ने देवकी और वसुदेव जी को पुनः जेल में डाल दिया है। 

श्री कृष्ण और बलराम को उनके साथ मथुरा चलना चाहिए। श्री कृष्ण से अब नंद बाबा, मां यशोदा, राधा और सभी उनके सखा ग्वाल बाल सब पीछे छूट गए। सब के पीछे छूटने की वेदना उनके हृदय में भी थी। लेकिन वह जानते थे कि इस समय मेरा कर्तव्य अपने माता पिता को कंस के कारागार से मुक्त करवाना और कंस जैसे दुष्ट का नाश‌ करना है। 

मथुरा में कंस श्री कृष्ण और बलराम को मारने की पूरी तैयारी किए बैठा था। वहां रंग भूमि में कंस ने मल्ल युद्ध का आयोजन किया था। वहां रंग भूमि के प्रवेशद्वार पर महावत कुबलयापीड़ हाथी को लिए उनका इंतजार कर रहा था। जैसे ही श्री कृष्ण ने प्रवेश करना चाहा महावत ने हाथी श्री कृष्ण पर चढ़ा दिया। श्री कृष्ण उनके इरादे भांप गए और उन्होंने हाथी को सूँड से पकड़ कर धरती पर पटक दिया और हाथी और महावत दोनों का वध कर दिया।

दोनों भाई जब रंग भूमि में पहुंचे तो चारूण ने उनको मल्ल युद्ध के लिए ललकारा। श्री कृष्ण कहने लगे कि," हम दोनों तो साधारण बालक है तुम को तो किसी बलवान व्यक्ति से युद्ध करना चाहिए।"

 चारूण कहने लगा कि," तुमने हजार हाथियों के बल वाले हाथी को मार दिया। तुम साधारण बालक कैसे हो सकते हो?" 

चारूण के दोबारा ललकारने पर श्री कृष्ण उससे जा भिड़े और चारूण को धरती पर पछाड़ दिया। जिससे उसके प्राण निकल गए। उसके पश्चात श्री कृष्ण ने कंस को ललकारा। श्री कृष्ण ने कंस को उसके पूर्व में किए पापों का स्मरण करवाया। 

उसके पश्चात श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। कंस सोते जागते आठों पहर श्री कृष्ण का ही ध्यान करता था। इसलिए वह भगवद् रुप को प्राप्त हुआ। कंस वध के पश्चात श्री कृष्ण ने अपने माता पिता को जेल से मुक्त करवाया। उन्होंने कंस वध के पश्चात अपने नाना उग्रसेन को राजा बना दिया।

श्री कृष्ण ने जब कंस का वध कर दिया तो जरासंध उनका विरोधी बन गया। क्योंकि कंस की दोनों पत्नियां जरासंध की पुत्रियां थी। कंस के वध के पश्चात उसकी दोनों पत्नियां जिनके नाम अस्ति और प्राप्ति थे वह अपने पिता जरासंध के पास चली गई। 

कंस के वध‌ का समाचार सुनकर जरासंध आग बबूला हो गया और उसने मथुरा पर आक्रमण करने के लिए अपने मित्र राज्यों को एकत्रित किया। सभी ने मिलकर मथुरा पर आक्रमण कर दिया। श्री कृष्ण और बलराम ने जरासंध की सारी सेना का संहार कर दिया। जब अकेला जरासंध बच रह गया तो बलराम जी जैसे ही उसे पकड़ने लगे श्री कृष्ण ने उन्हें रोक दिया। 

श्री कृष्ण ने कहा- बलराम भइया अभी इसका वध‌ मत करो।यह ऐसे ही दुष्टों की सेना इकठ्ठी कर लाता रहेगा और हम उसे समाप्त करते रहेंगे। इस तरह से पृथ्वी पर पापियों का भार कम होता रहेगा। पापियों के नाश के लिए ही तो हमने अवतार लिया है।

यह बात सुनकर बलराम जी ने जरासंध को छोड़ दिया। इस तरह जरासंध ने कुछ समय के अंतराल में सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किया लेकिन मथुरा को श्री कृष्ण का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए जरासंध को हर बार हार कर लौटना पड़ता।

 Kalyavan Aur Krishna Story In Hindi 

जब जरासंध अठारहवीं बार मथुरा पर आक्रमण करने का विचार कर रहा था। तभी कालयवन नाम के म्लेच्छ ने मथुरा को घेर लिया। कालयवन को भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि उसे ना ही कोई चंद्रवंशी मार सकता है और ना ही सूर्यवंशी। ना ही किसी शस्त्र से उसकी मृत्यु हो सकती है और ना ही कोई शारीरिक बल से उसे हरा सकता है। वह अपने आप को सबसे शक्तिशाली समझने लगा।

 उसने नारद जी से पूछा कि मुझ जैसे शक्तिशाली व्यक्ति से युद्ध कौन लड़ सकता है? नारद जी ने उसे श्री कृष्ण के बारे में बता दिया। जब श्री कृष्ण को इस बारे में पता चला तो वह जानते थे कि यह भगवान शिव के वरदान से रक्षित है । वह सोचने लगे कि एक तो अगर यह हम दोनों भाइयों से नहीं मरा तो  यह हमारी प्रजा को मार डालेगा या भी बंदी बनाकर कर अपने राज्य ले जाएगा।

दूसरे अगर युद्ध आरम्भ हो गया और कही उसी समय जरासंध भी अपनी सेना सहित आक्रमण ना कर दे । मथुरा की प्रजा जरासंध के बार बार के आक्रमण से त्रस्त हो चुकी थी। श्री कृष्ण जानते थे कि जरासंध मेरे ही कारण बार बार मथुरा पर आक्रमण कर रहा है। 

इसलिए श्री कृष्ण ने कालयवन से युद्ध आरंभ करने से पहले विचार किया कि ऐसे नगर का निर्माण किया जाए जहां मैं अपने सभी भाई-बंधुओं को सुरक्षित रख सकूं।‌। उन्होंने विश्वकर्मा को बुला कर  एक अलौकिक नगरी का निर्माण करने का आदेश दिया। जैसे ही विश्वकर्मा ने नगरी का निर्माण कार्य पूरा किया श्री कृष्ण ने अपनी माया से सबको परिवार सहित वहां पहुंचा दिया। उसके पश्चात जब श्री कृष्ण कालयवन के साथ युद्ध करने आए तो उन्होंने एक शर्त रखी। 

KRISHNA RANCHOD LEELA STORY   

श्री कृष्ण ने कहा - युद्ध मेरे और अकेले कालयवन के बीच में होगा। दोनों की ओर से कोई भी सैनिक युद्ध में नहीं लड़ेगा। जब कालयवन अकेले श्री कृष्ण से युद्ध के लिए मान गया तो श्री कृष्ण युद्ध का मैदान छोड़ कर भाग गए। उन्हें ऐसे भागते हुए देखकर कालयवन ने उन्हें रणछोड़ का नाम दिया। श्री कृष्ण ने उस दुष्ट के वध के लिए रणछोड़ नाम को सहर्ष स्वीकार किया। 

 श्री कृष्ण जानते थे कि यह भगवान शिव के वरदान से रक्षित है मैं इसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता इसलिए यह पापी अभिमान वश स्वयं को अमर समझ रहा है। युद्ध के मैदान से भागना श्री कृष्ण की रणनीति का हिस्सा था। श्री कृष्ण की यह कहानी हमें सिखाती हैं कि कभी भी बंधे बंधाए नियमों पर मत चलो। समय और स्थिति के अनुसार निर्णय ले। 

  श्री कृष्ण वहां से भाग कर एक गुफा में चले गए। वहां पर गुफा में राजा मुचकुंद गहरी नींद में सो रहे थे। उन्होंने त्रेता युग में देवताओं की ओर से दैत्यों को हराने के लिए कई वर्षों तक युद्ध किया था। जब राजा ने दैत्यों को युद्ध में हरा दिया तो देवराज इन्द्र ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा।

 उन्होंने कहा था कि निरंतर कई वर्षों तक युद्ध करते हुए में थक गया हूं इसलिए सोना चाहता हूं। तब उन्हें वरदान प्राप्त हुआ था कि जो भी आपकी निद्रा भंग करेगा वह जल कर भस्म हो जाएगा। श्री कृष्ण ने गुफा में जाकर अपना पीताम्बर राजा मुचकुंद पर डाल दिया। काल‌यवन‌ को लगा कि युद्ध से बचने के लिए श्री कृष्ण सोने का स्वांग कर रहा है। कालयवन ने श्री कृष्ण समझकर जैसे ही राजा मुचकुंद को लात मारी उनकी निद्रा खुल गई। उन्होंने जैसे ही आंख खोली उनकी देह से अग्नि निकली जिससे कालयवन उसी क्षण जल कर राख हो गया। 

जरासंध ने भी श्री कृष्ण को रणछोड़ कहा उसका भी यही मानना था कि उसके आक्रमण के डर से मैदान छोड़कर भाग गए। लेकिन श्री कृष्ण जानते थे कि जरासंध का वध मेरे हाथों नहीं लिखा। विधि के विधान के अनुसार भीम के हाथों उसका वध लिखा था। श्री कृष्ण का यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि निंदा के डर से हमें अपने फैसले से नहीं डरना चाहिए। श्री कृष्ण जानते थे कि उनको इस तरह मथुरा छोड़ कर जाने से पर रणछोड़ कहा जाएगा लेकिन उन्होंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए द्वारिका पूरी जाने का फैसला लिया। 

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