श्री कृष्ण के कंजूस भक्त की कहानी
SHRI KRISHNA KE KANJOOS BHAKT KI KAHANI/ LORD KRISHNA STORY/ KRISHNA KATHAYEN/ श्री कृष्ण के भक्त की कथा/ कृष्ण कथाएं
Bhakt aur Bhagwan ki katha: एक बार एक सेठ जी थे। वह भगवान कृष्ण(lord Krishna) के भक्त थे। वह भगवान के नाम का जाप तो करते थे लेकिन कंजूस इतने कि वह किसी को एक दमड़ी भी किसी को देने को तैयार नहीं होते थे। यहां तक कि वह सेठ अपनी सांसे भी सोच समझ कर लेता था। उसे अपनी सांसो पर नियंत्रण करने का बड़ा अच्छा अनुभव था। उसकी पत्नी उसकी कंजूसी की आदत से बहुत परेशान थी, लेकिन सेठ के आगे उसकी एक नहीं चलती थी।
एक बार पत्नी ने कहा कि दान तो आप करेंगे नहीं कम से कम गंगा घाट जाकर स्नान कर आओ। पत्नी की बात मानकर सेठ स्नान करने के लिए गंगा घाट चले गए। श्री कृष्ण की इच्छा हुई है कि चलो अपने भक्त की परीक्षा लेते हैं। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षा लेने के लिए पंडे का रूप धारण कर लिया।
सेठ जब वह गंगा जी में डुबक लगा कर बाहर आएं तो श्री कृष्ण उसके सामने एक पंडे के रूप लेकर प्रकट हो गए। श्री कृष्ण कहते हैं कि यजमान मुझे कुछ दक्षिणा दे दो। कंजूस सेठ कहता है कि इस समय मेरे पास कोई पैसा नहीं है। श्रीकृष्ण को तो अपने भक्त का स्वभाव पता था। श्री कृष्ण बोले- यजमान कोई बात आप केवल मुझे कुछ दक्षिणा देने का संकल्प भर कर लो।
सेठ मन में एक सिक्का दान देने का संकल्प करता है और सोचता है कि पंडे को कौन सा मेरा घर पता है ? मैंने यह संकल्प किया है, जब वह अगली बार मेरे सामने आएगा तो मैं उसे एक सिक्का दूंगा। इसलिए ना वह मेरे सामने आएगा ना मैं उसे सिक्का दान करूंगा।
सेठ गंगा घाट से स्नान करके अपने घर लौट गए और विश्राम करने के लिए जैसे ही लेटे तो उसे नींद आ गई। कुछ समय पश्चात कोई सेठ के घर का दरवाजा खटखटाता है। सेठ की पत्नी बाहर जाकर देखती हैं तो भगवान श्री कृष्ण पंडे का रूप धारण कर खड़े होते हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि "यजमान जी ने मुझे एक सिक्का दान देने का संकल्प लिया था ,उनको सूचित कर दे कि मैं आ गया हूं इसलिए मेरा एक सिक्का मुझे दान कर दें।"
सेठ करोड़ीमल की पत्नी अपने पति से पूछती है कि, क्या आपने कोई संकल्प किया था ? सेठ जी कहने लगे कि," हां,सुबह एक पंडे को एक सिक्का दान देने का संकल्प लिया था।" पत्नी बोली कि, अब वह बाहर खड़ा है और अपना सिक्का मांग रहा है ।"
सेठ जी हैरान इसे मेरा पता कैसे पता चला। उस बात को नज़रंदाज़ कर सेठ पत्नी से कहने लगे कि,"उसे बोलो कि मेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए फिर कभी आना।"
सेठ की पत्नी पंडे के रूप को धारण किए श्री कृष्ण से कहने लगी कि ,"श्रीमान मेरे पति की तबीयत ठीक नहीं हैं आप फिर कभी आ जाना।"
लेकिन भगवान आगे कहां सेठ जी की चतुराई चलने वाली थी।श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले," मैं उनकी तबियत ठीक होने का इंतजार कर लूंगा, आप तब तक मुझे जलपान करवा दें। "
सेठानी जाकर सेठ जी को बताती है कि," वह पंडा जलपान मांग रहा है। सेठ जी की चिंता और बढ़ गई कि अब यह एक सिक्के के साथ-साथ अब जलपान का भी खर्चा करवाएगा।।
सेठ को एक उपाय सूझा, वह अपनी पत्नी से कहते है कि तुम उसे जाकर बोल दो कि मेरे पति का निधन हो गया है। यह सुनकर वह वापस लौट जाएगा। सेठ की पत्नी कहती है कि ," यह आप क्या कह रहे हो?" सेठ कहता कि इस समय मुझे अन्य कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।"
उसकी पत्नी जाकर कह देती है कि मेरे पति निधन हो गया है।श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी सब जानते थे। मन ही मन मुस्कुराए और बोले कि देवी मैं जाकर पूरे गांव में खबर कर आता हूं कि सेठ जी का निधन हो गया। आप अकेली कैसे सारे कार्य करेंगी।
कुछ ही समय में सारा गांव इकट्ठा हो गया और सेठ की पत्नी बार-बार यही रही थी कि मेरे पति जिंदा है,वह नहीं मरे हैं। उसकी बात सुनकर सभी कहते हैं कि," यह तुम्हारी मोह माया है। सेठ जी का अपनी सांसो पर पूरा नियंत्रण था ,इसलिए उसने पूरा समय अपनी सांसे रोक कर रखी।
इधर सेठ की शव शैय्या को लेकर जाने तक बात पहुंच जाती है लेकिन उधर सेठ जी की इतनी कंजूसी की एक सिक्का देने को तैयार नहीं मरने को तैयार है। श्री कृष्ण मन ही मन विचार कर रहे हैं कि ऐसे भक्त का मैं अब क्या करूं? यह तो मरने को तैयार हैं लेकिन मुझे सिक्का नहीं देगा। चलो मैं ही इसकी इच्छा पूर्ण कर देता हूं।
जब गाँव के लोग अंतिम यात्रा के लिए सेठ जी को ले जाने कि तैयारी की बात करते हैं। पंडे के रूप में श्री कृष्ण गांव वालों से कहते है कि मुझे सेठ के कान में कुछ कहना है , गांव वाले कहते हैं कह लो भैया वैसे भी वह मर गया है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ,"आंखें खोलो मैं बैकुंठ से आया हूं, तुम को मुझ से जो मांगना है मांग लो।" सेठ ने खुश हो जैसे ही आंखें खोली तो सामने श्री कृष्ण को पंडे के रूप में देखकर आश्चर्य चकित रह गया।
श्री कृष्ण भगवान मुस्कुराते बोले- जो मांगना है मांग लो। सेठ की ममता अभी भी सिक्के में अटकी पड़ी थी। तीन लोक के नाथ कह रहे हैं जो मांगना है मांग लो, लेकिन सेठ जी है कि प्रभु! मुझे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन मैंने जो संकल्प किया है कि मैं पंडे को एक सिक्का दान करूंगा , मैं अपना संकल्प वापस लेना चाहता हूं । प्रभु मैं एक सिक्का दान में नहीं देना चाहता। श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहा- तथास्तु।
भगवान अपने भक्त की कंजूसी पर मुस्कुराते हुए अपने धाम लौट गए और उधर सेठ जी ने राहत की सांस ली चलो एक रूपए का सिक्का दान देने से तो बाल बाल बच गया।
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