GURU KA JEEVAN MEIN MAHATAV ESSAY

Guru ka Jeevan mein mahatva Essay nibhandh speech guru per kuch lines गुरु का जीवन में महत्व निबंध लेखन और स्पीच

गुरु का जीवन में महत्व निबंध

गुरु का जीवन में महत्व निबंध लेख और स्पीच Guru ka Jeevan mein mahatva Essay nibhandh speech guru per kuch lines 

गुरु का शाब्दिक अर्थ है अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले कर जाने वाला। गुरु हमारे भीतर ज्ञान का प्रकाश करता है। एक सच्चा गुरु हमारे मन के भावों को जान लेता है और हमारे मन की शंका का निवारण भी कर देता है। हमारे अवगुणों को पहचान कर उन्हें दूर कर देता है। हमारे धर्म शास्त्रों में गुरु की बहुत प्रशंसा की गई है। उन्हें ईश्वर तुल्य माना गया है। जहां तक कि हमें जीवन में जिस भी व्यक्ति से किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त होता है उसे गुरु की ही संज्ञा दी गई है।

किसी भी व्यक्ति का पहला गुरु उसके माता-पिता होते हैं। वह ही एक बालक को चलना फिरना,खाना पीना, और हर प्रकार का व्यवहारिक ज्ञान सिखाते हैं। माता को शास्त्रों मे सब गुरुओं में सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है। 

मां की समानता कोई नहीं कर सकता क्योंकि एक मां ही अपने बच्चे की पहली पाठशाला होती है। इस तरह एक मां अपने बच्चे की पहली गुरु मानी गई हैं। मां से हमें जो संस्कार मिलते हैं वह जीवन भर हमारे साथ चलते हैं। 

मां के साथ-साथ किसी भी बालक का गुरु उसका पिता होता है। पिता ही वह व्यक्ति होता है जो बच्चे को अपने से ज्यादा तरक्की करते हुए देखना चाहता है। मां बच्चे को बाहर ले जाती है तो उसे अपनी कमर में उठाती है लेकिन पिता उसे अपने कंधे पर बैठाता है ताकि वह दुनिया को अच्छी तरह से देख सके। पिता की डांट से उनका प्यार छिपा होता है। शास्त्रों में भी पिता के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य, सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं।

जिस भी व्यक्ति से अपने ज्ञान अर्जित किया है चाहे वह कुछ भी वह  आध्यात्मिक गुरु हो या फिर अकादमिक गुरु हो उनका सम्मान करें। गुरु हमारे जीवन को एक दिशा प्रदान करता है। हमारा भटकाव समाप्त हो जाता है और हमारे जीवन को एक उचित दिशा में ले जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में तो गुरु को ब्रह्मा विष्णु और महेश की संज्ञा दी गई है। 

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। 

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु मंत्र वेद व्यास जी के कौन से ग्रंथ से लिया गया है

यहां धार्मिक गुरु हमें भवसागर से पार लगाने में भी सहायक होता है, वहीं अकादमिक गुरु हमें किसी भी विषय में दक्ष बनाने में सक्षम होता है। गुरु का हमारे जीवन में कितना महत्व है उसका अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि श्री राम और श्री कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे लेकिन उन्होंने भी गुरु के महत्व को समझते हुए गुरु से शिक्षा ली। श्री राम के गुरु वशिष्ठ थे और श्री कृष्ण के गुरु ऋषि सांदीपनि थे। 

पहले समय में गुरु शिष्य को शिक्षा गुरुकुल में देते थे लेकिन वर्तमान समय में गुरु कुल का स्थान विद्यालय और कालेजों ने ले लिया है। गुरु या फिर कहे शिक्षक ही वह व्यक्ति होता है जो स्वयं वहीं रहकर अपने शिष्यों को आगे बढ़ाने के गुर सिखाता है कि आपको कामयाब कैसे होना है। 

भारत में गुरु को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।‌‌गुरु हमें संस्कार और अनुशासन में रहना सिखाते हैं। जीवन में विभिन्न क्षेत्रों में हमें कुछ भी सिखने के लिए अलग-अलग गुरुओं की आवश्यकता होती है। जैसे शिक्षा, गाडी चलाना सीखना, किसी म्यूजिकल यंत्र को चलाना सीखना, किसी खेल में परफेक्ट होना, पेंटिंग या फिर जिस भी चीज़ में किसी की रूचि है उसके अनुरूप उसको गुरु ढूंढना पड़ता है।

इसी तरह जीवन में आध्यात्मिक गुरु का भी बहुत विशेष स्थान है। वह हमारे जीवन की दशा और दिशा दोनों को बहुत प्रभावित करते हैं। सच्चे गुरु के संपर्क में आने से व्यक्ति संस्कारवान, विनयी और विनम्र हो जाता है। गुरु उसे संसारिक कर्मों को करते हुए ईश्वर की भक्ति कैसे कर सकते हैं यह सिखाते हैं। गुरु के प्रवचनों को सुनकर हमें हमारे बहुत से सवालों के जवाब मिल जाते हैं। 

गुरु को सम्मानित करने के लिए आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसदिन चारों वेदों के ज्ञाता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इसदिन शिष्य गुरु को व्यास जी का अंशमान कर उनकी पूजा अर्चना और आरती करते हैं। अपने माता-पिता और गुरु का सम्मान केवल एक दिन नहीं अपितु हर रोज करना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि 

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।

भावार्थ - जो बालक नित्य माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों वृद्धि होती हैं।
गुरु पूर्णिमा कब,क्यों और कैसे मनाई जाती है
मां का जीवन में महत्व
 

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