भगवान शिव की कहानियां
भगवान शिव त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से एक है। शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति पर शीघ्र रीझ जाते हैं। पढ़ें भगवान शिव के भक्तों की भक्ति कथाएं
भगवान शिव और उनके भक्त विद्यापति की कथा
Vidhyapati and shiva story in hindi: बिहार के विस्ती गांव में भगवान शिव के परम भक्त विद्यापति रहते थे। उन्होंने भगवान शिव की भक्ति में बहुत सी रचनाएं लिखी थी। विद्यापति भक्ति रस के कवि थे। भगवान शिव को उनकी भक्ति को देखकर और उनकी रचनाओं को श्रवण करने पर उनके साथ रहने की इच्छा जागृत हुई।
भगवान शिव एक गंवार का रूप धारण कर विद्यापति के घर पर पहुंचे। उन्होंने विद्यापति को अपना नाम उगना बताया। भगवान शिव कहने लगे कि," आप मुझे अपना नौकर बना कर रख लो।" विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए उन्होंने कहा कि," मुझे नौकर की जरूरत नहीं है।"
भगवान शिव सब जानते थे। भगवान शिव कहने लगे कि," आप केवल मुझे दो समय का भोजन दें देना। दो समय के भोजन की बात सुनकर कवि विद्यापति की पत्नी ने उन्हें भगवान शिव को नौकर के रूप में रखने की हामी भर दी। अब विद्यापति ने पत्नी की बात मानते हुए भगवान शिव को नौकर के रूप में रखने की स्वीकृति दे दी। भगवान शिव विद्यापति के घर पर सारे काम करने लगे।
भगवान शिव एक दिन कवि विद्यापति के साथ राजा के दरबार की ओर जा रहे थे। मार्ग में भीष्म गर्मी के कारण विद्यापति को प्यास लगी। विद्यापति अपने नौकर उगना से कहने लगे कि,"क्या कहीं से पानी का प्रबंध हो सकता है? मुझे लगता है कि इस प्यास के कारण में मर ही जाऊंगा। उस स्थान पर आसपास कोई भी पानी का स्त्रोत उपलब्ध नहीं था। भगवान शिव ने एकांत में जाकर अपनी जटाओं को खोलकर गंगा जल से एक लोटा भर लिया।
भगवान शिव ने गंगा जल से भरा लोटा विद्यापति को दे दिया। जल पीते हैं उनको आभास हो गया कि इस जल का स्वाद गंगा जी के जल के समान है। वह सोचने लगे कि," उगना इस निर्जन स्थल में जल कहां से लाया है?" यहां तो आसपास जल का कोई स्त्रोत नहीं दिख रहा।
विद्यापति का संदेह गहरा हो गया कि यह उगना कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता है। उन्हें लगा कि कहीं यह स्वयं भगवान शिव ही तो नहीं है। विद्यापति ने बार-बार भगवान शिव से अपना वास्तविक परिचय बताने के लिए कहा।भगवान शिव जब कुछ नहीं बोले तो विद्यापति ने उनके चरणों को पकड़ लिया। अपने भक्त के लिए भगवान शिव को अपने वास्तविक रूप में आना पड़ा।
भगवान शिव को सम्मुख देखकर विद्यापति बहुत प्रसन्न थे। भगवान शिव विद्यापति से कहने लगे कि," मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता था इसलिए मैंने यह वेश बनाया था। तुम भी इस वास्तविकता को कभी किसी को मत बताना।"
विद्यापति को अपनी भक्ति के कारण भगवान शिव का सानिध्य प्राप्त हो रहा था। एक दिन जब विद्यापति की पत्नी ने उगना को कोई कार्य सौंपा तो उगना वह कार्य ठीक से नहीं कर पाया। इससे क्रुद्ध होकर विद्यापति की पत्नी चूल्हे की जलती हुई लकड़ी लेकर भगवान शिव की पिटाई करने लगी।
यह देखकर विद्यापति के मुख से अनायास ही निकल गया कि तुम यह क्या कर रही हो? जिस उगना को तुम जलती लकड़ी से मार रही हो वह साक्षात भगवान शिव हैं। विद्यापति की बात सुनते ही भगवान शिव वहां से आलोप हो गए।
विद्यापति भगवान शिव को उगना-उगना पुकारते हुए हर स्थान पर ढूंढने लगे। भक्त की ऐसी स्थिति देखकर भगवान शिव प्रकट हुए। भगवान शिव उनसे कहने लगे कि," अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। लेकिन मैं उगना के प्रतीक रूप में शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान हो जाऊंगा।"
भगवान शिव विद्यापति को दर्शन देकर चले गए। उस स्थान पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ जो उगना महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। उगना महादेव मंदिर बिहार के मधुबनी जिले में भवानीपुर गांव में है।
भगवान शिव और उनके भक्त मार्कण्डेय ऋषि की कथा
Markandeya Rishi and shiva story in hindi:पौराणिक कथा के अनुसार मृकण्ड ऋषि भगवान शिव के भक्त थे। लेकिन संतान ना होने के कारण मार्कण्ड ऋषि बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और वरदान मांगने के लिए कहा।
उन्होंने पुत्र प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शिव के वर से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। मार्कण्ड ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा। मार्कण्ड ऋषि को ज्योतिषियों ने बताया कि आपका पुत्र अल्पायु होगा। जिसे सुनकर मार्कण्ड ऋषि बहुत दुखी हुए। लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जिन भोलेनाथ की कृपा से उन्हें संतान प्राप्ति हुई है वह ही उसके भाग्य को बदल कर दीर्घायु प्रदान करेंगे।
यह सुनकर मार्कण्ड ऋषि ने अपने पुत्र को शिव मंत्र की दीक्षा दी। थोड़ा बड़ा होने पर उन्होंने अपने पुत्र के अल्पायु होने की बात बता दी। पुत्र की अल्पायु की बात के कारण पति-पत्नी दोनों परेशान रहते थे।
मार्कण्डेय जी ने अपने माता- पिता के विषाद को दूर करने के लिए भगवान शिव से दीर्घायु होने का वरदान मांगने का दृढ़ संकल्प लिया। उस समय मार्कण्डेय जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में इस मंत्र का अखण्ड जाप किया।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
उनकी मृत्यु का समय होने पर यमदूत उन्हें लेने आए लेकिन मार्कण्डेय जी को भगवान शिव का अखण्ड जाप करते देख उनको मार्कण्डेय जी को छूने साहस नहीं हुआ।
यमदूत वापिस लौट गए और यमराज को सारी बात बताई। यमराज जी ने निश्चय किया कि मैं स्वयं उस बालक को लेने जाऊंगा। यमराज को सामने देखकर मार्कण्डेय जी शिवलिंग से लिपट कर महामृत्युंजय मंत्र का जाप जोर-जोर से करने लगे।
यमराज ने जैसे ही बालक को खींचना चाहा वैसे ही एक मंदिर में एक प्रकाश हुआ और भगवान शिव स्वयं प्रकट हो गए।
उन्होंने यमराज को क्रोधित होकर पूछा कि मेरी तपस्या में लीन भक्त को तुमने खींचने का साहस कैसे किया?
यमराज भगवान शिव की अराधना कर उनसे क्षमा याचना करने लगे और कहने लगे कि प्रभु आपने ही तो जीवों के प्राण लेने का कार्य मुझे सौंपा है। यह बालक अपनी आयु भोग चुका है इसलिए मैं इसे लेने आया हूं।
उनकी स्तुति से भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया और भोलेनाथ कहने लगे कि इस बालक की तपस्या से प्रसन्न होकर इसे दीर्घायु होने का वरदान देता हूं इसलिए अब तुम इसे नहीं ले जा सकते। भोलेनाथ की बात सुनकर यमराज बोले कि प्रभु मैं आपके भक्त द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।
इस तरह मार्कण्डेय ऋषि ने महामृत्युंजय मंत्र जाप से भगवान शिव से दीर्घायु प्राप्त कर काल को भी हरा दिया था।
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