राष्ट्रीय गणित दिवस: 2023
भारत में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन पर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रीनिवास रामानुजन को अनंत को जानने वाला व्यक्ति (Man who Knew Infinity) के रूप में भी जाना जाता है। रामानुजन गणित में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी लेकिन गणितीज्ञ विश्लेषण, संख्या सिद्धांत, अनंत श्रृंखला और निरंतर आदि में उनका योगदान अकल्पनीय है।
राष्ट्रीय गणित दिवस मनाने की शुरुआत कब से हुई
26 जनवरी 2012 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने मद्रास विश्वविद्यालय में महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 125वी वर्षगांठ पर एक समारोह के उद्घाटन में 22 दिसंबर को गणित दिवस मनाए जाने की घोषणा की और 2012 को गणित वर्ष के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। श्रीनिवास रामानुजन का गणित के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान है।
राष्ट्रीय गणित दिवस क्यों और कैसे मनाया जाता है
गणित दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को गणित पढ़ने के लिए प्रेरित करना और मानवता के विकास में गणित के योगदान के प्रति जागरूकता लाना है। इस दिन छात्रों के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैं जहां उनको गणित से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है।
स्कूल ,कॉलेज और विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय गणित दिवस के दिन सेमिनार आयोजित किए जाते हैं ।इस दिन विद्यार्थियों के लिए गणित से संबंधित प्रतियोगिता और गणित प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाता है और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को सम्मानित किया जाता है। यूनेस्को भी भारत के प्रयास को देखते हुए मिलकर गणित के ज्ञान को सीखने और समझने के लिए काम कर रहा है जिससे विद्यार्थियों को गणित के क्षेत्र में शिक्षित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
राष्ट्रीय गणित दिवस के दिन इलाहाबाद में स्थित नैशनल एकेडमी ऑफ साइंस में जोकि भारत की प्राचीन विज्ञान अकादमी में से एक है गणित दिवस के दिन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां पर देशभर के गणित के विद्वान आते हैं और श्री निवास रामानुजन और भारतीय गणितज्ञ द्वारा गणित के क्षेत्र में विश्व को दिए गए योगदान की चर्चा होती है।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय Srinivasa Ramanujan Life story
श्रीनिवास अय्यर का जन्म 22 दिसंबर 1887 को भारत के तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के इरोड गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यर और माता का नाम कोमलताम्मल था।
5 वर्ष की आयु में उन्हें कुम्भकोणम के प्राथमिक विद्यालय भेजा गया। बचपन से ही उनकी गणित के प्रति विशेष लगाव था। गणित के प्रति उनका लगाव इतना अधिक था कि स्कूल के समय में भी उन्होंने कॉलेज के गणित को पढ़ लिया था। स्कूल की परीक्षा में गणित और इंग्लिश में अच्छे अंक आने के कारण उनको छात्रवृत्ति प्राप्त हुई।
गणित के प्रति लगाव के कारण बाकी विषयों के प्रति उनकी रूचि कम हो गई थी। गणित के विषय में इतनी रूचि थी कि उन्होंने बाकी के विषय पढ़ने छोड़ दिए और परिणामस्वरूप 11वीं के कक्षा में गणित को छोड़कर बाकी सभी विषयों में फेल हो गए।
1960 में उन्होंने 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी लेकिन उसमें भी फेल हो गए। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने त्रिकोणमिति पूरी महारत हासिल कर ली थी। युवावस्था में गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे थे इसलिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर भी गुजारा किया।
रामानुजन गणित की शिक्षा के लिए किसी भी कॉलेज में नहीं गए थे। उन्होंने जितने भी प्रमेयों का संकलन किया सब अपने आप सीखे थे । 12वीं की शिक्षा के 5 साल बाद उनको मद्रास यूनिवर्सिटी से शोध के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त हुई
अपनी नौकरी की तलाश में समय अपने गणित की रिसर्च को दिखाना शुरू कर दिया तो उनकी मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री. वी. रामास्वामी अय्यर से हुई जोकि स्वयं गणित के विद्वान थे। उन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान कर इनको ₹25 मासिक स्कॉलरशिप देने का प्रावधान दिया उनका पहला शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक "बरनौली संख्याओं के गुण था"।उनके इस शोध के कारण उनको पहचान मिली जो उनको अपनी कल्पना शक्ति के बल पर लिखे थे।
प्रोफेसर शेषु अय्यर ने इनके शोध पत्रों से प्रभावित होकर उन्हें अपने शोध पत्र प्रोफेसर हार्डी को भेजने का सुझाव दिया।
1918 में गणित के 120 सूत्र और अपने शोध प्रोफेसर जी.एच. हार्डी को भेजे। वह रामानुजन के शोध पत्रों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी आने का निमंत्रण भेजा।
1918 अक्टूबर को उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज के मेंबर शिप दी गई तो वे ऐसा करने वाले पहले भारतीय थे।
रामानुजन इंग्लैंड जाने के बाद उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और उन्हें टी.वी हो गई। उस समय टी.वी का इलाज नहीं था और अपने स्वास्थ्य की खराबी के कारण भारत लौट आए।
भारत लौटने के पश्चात भी उन्होंने कई शोध पत्र लिखें उनका एक शोध पत्र कैंसर को समझने में काम आता है। श्रीनिवास रामानुजन की मृत्यु 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 में tuberculosis की बिमारी से जुझते हुए हुई थी।
श्रीनिवास रामानुजन का योगदान और उपलब्धियां
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13 वर्ष की आयु में रामानुजन ने इंग्लैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.एल. लोनी की पुस्तक त्रिकोणमिति को पढ़कर अपनी खुद की मैथमेटिकल थ्योरी बना ली थी।
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श्रीनिवास रामानुजन को अनंत को जानने वाला व्यक्ति (Man who Knew Infinity) के रूप में भी जाना जाता है । रामानुजन गणित में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी लेकिन गणितीय विश्लेषण, संख्या सिद्धांत, अनंत श्रृंखला और निरंतर आदि में उनका योगदान अकल्पनीय है।
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उन्होंने 3884 समीकरण बनाए जिसमें से आज भी कुछ अनसुलझे हैं ।
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गणित में 1729 को रामानुजन नंबर से जाना जाता है ।
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उनके जन्मदिन को भारत में नेशनल मैथमेटिक्स डे के रूप में मनाया जाता ।
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कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बी. ए की उपाधि भी मिली।
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Royal society membership की मेंबरशिप पाने वाले सबसे कम आयु वाले व्यक्ति थे ।
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उन्हें कैंब्रिज फिलॉसफी सोसाइटी का भी फेलो चुना गया।
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उनकी 125 में एनिवर्सरी पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया था।
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संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में भिन्न का विशेष योगदान है।
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2014 उनके जीवन पर आधारित फिल्म रामानुजन का जीवन बनाई गई।
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2015 में THE MAN WHO KNEW INFINITY बनाई गई।
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