SHORT INSPIRATIONAL STORIES IN HINDI

SHORT INSPIRATIONAL STORIES IN HINDI Small moral stories In hindi छोटी लघु नैतिक कहानियां हिन्दी में SMALL STORIES IN HINDI

लघु प्रेरणादायक कहानियां हिन्दी में

हजारों वर्षों से प्रेरणादायक कहानियां हमारा मार्गदर्शन करती आईं हैं। प्रेरणादायक कहानियों से हमें जीवन के उच्च नैतिक मूल्यों का ज्ञान होता है, अच्छाई बुराई में फर्क पता चलता है, जीवन में हमें क्यों सदैव शुभ कर्म करने चाहिए इसका महत्व पता चलता है। ज्ञान का जीवन में महत्व है और क्यों बुद्धिमान व्यक्ति का सब सम्मान करते हैं यह ज्ञात होता है। अच्छी नैतिक कहानियां हमारे जीवन में सकारात्मकता बढ़ाती है। short inspirational story in hindi आर्टिकल में पढ़ें ज्ञानवर्धक लघु प्रेरणादायक कहानियां 

जैसी करनी वैसी भरनी 

Short Inspirational story in hindi: एक बार एक दुकानदार गांव के एक व्यक्ति से हर रोज एक किलो मक्खन खरीदता था। एक दिन दुकानदार के मन में विचार आया कि मैं प्रतिदिन इससे मक्खन खरीदता हूं मैंने कभी मक्खन तोल कर उसका वजन नहीं किया। उस दिन उसने मक्खन तोला तो वह एक किलो कि जगह 900 ग्राम निकला। उस दुकानदार को बहुत गुस्सा आया। 

उसने उस व्यक्ति की शिकायत पंचायत में कर दी और कहा कि मुझे इतने सालों के धोखे का हर्जाना दिलवाया जाए। 

पंचायत ने मक्खन बेचने वाले को बताया कि इस दुकानदार ने तुम पर धोखाधड़ी का इल्ज़ाम लगाया है। तुम इतने सालों से उसे एक किलो कि जगह केवल 900 ग्राम मक्खन दे रहे थे। क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो?

वह व्यक्ति बहुत ही सादगी और विनम्रता से कहने लगा कि, श्रीमान मैं तो ग़रीब आदमी हूँ । मेरे पास तो मक्खन तोलने के लिए सही माप भी नहीं है। 

मैं तो प्रतिदिन इस दुकानदार से एक किलो गेहूं खरीदता हूं। उसी गेहूं को अगले दिन मैं अपने तराजू पर रखकर मक्खन तोल देता हूं। मैंने आपको अपनी सच्चाई बता दी। अब आप ही निर्णय करें, इतने सालों से कौन किसे ठग रहा था? 

पंचायत को समझ में आ गया कि असली दोषी कौन है? उन्होंने दुकानदार को निर्दोष व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाने का दंड दिया। उसे अपनों कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। अगर हम किसी का बुरा करते हैं तो हमें एक दिन उसके परिणाम को भुगतना पड़ता है।  

भगवान शिव और मां पार्वती की कर्म फल की कहानी 

Short inspirational story in hindi: एक बार माँ पार्वती ने भगवन शिव से पूछा कि प्रभु पृथ्वी लोक पर ऐसा क्यों होता है कि जो पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है उन्हें ओर ज्यादा दुःख मिलता है और जो सुख में है उन्हें ओर सुख प्राप्त हो रहा है। 

भगवान शिव मुस्कुराते हुए कहने लगे कि," पार्वती इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए तुम्हें मनुष्य के रूप में मेरे साथ पृथ्वी लोक पर जाना पड़ेगा।" माँ पार्वती और भगवान् शिव ने साधारण मनुष्य का वेश धारण किया और एक गाँव में आ गए। 

भगवान शिव कहने लगे कि,"पार्वती हम दोनों यहाँ पर मनुष्य रूप में आए इसलिए तुम भोजन बनाने के लिए चुल्हे की व्यवस्था करो और मैं खाद्य सामग्री लेकर आता हूँ।"

माता पार्वती चूल्हा बनाने के लिए ईटों की खोज में निकल पड़ी। वह कुछ जर्जर हो चुके घरों से ईटें उठा लाई और चूल्हा तैयार कर दिया। 

उधर भगवान् शिव खाली हाथ ही लौट आये। माता पार्वती ने पूछा प्रभु आप तो कुछ लाए ही नहीं। ऐसे में भोजन कैसे बनेगा? 

भगवान शिव कहने लगे कि," पहले तुम बताओ कि चुल्हे के लिए ईंटें तुम कहा से लेकर आई।"

माँ पार्वती कहने लगी कि," प्रभु गाँव में कुछ मकान जर्जर अवस्था में थे। उनकी ईंटें बाहर निकली हुई थी। मैं उनमें से ही ईंटें निकल कर ले आई।"

भगवान शिव ने पूछा- पार्वती जो मकान पहले से ही जर्जर अवस्था में थे, तुमने उनकी ही ईंटें क्यों निकाली? जबकि तुम उन घरों से भी तो ईंटें निकाल सकती थी जो बढ़िया तरीके से बने थे। 

माँ पार्वती कहने लगी कि,"प्रभु , जो मकान सही थे उनकी देखभाल उचित तरीके से हो रही थी इसलिए उनकी खुबसूरती बिगाड़ने का मेरा मन नहीं किया। जबकि जर्जर मकान की ईंटें तो पहले से ही इधर-उधर निकल रही थी। अब मैंने उनकी एक दो ईंट निकाल भी ली तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि उनकी खुबसूरती तो पहले ही समाप्त हो चुकी थी। उनके रख-रखाव की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। 

भगवान शिव बोले कि पार्वती यह ही आपके प्रश्न का उत्तर है। जो लोगों ने अपने घर का रख रखाव उचित तरीके से करते हैं और उन्होंने उसी तरह अपने सही कर्मों से अपने जीवन को सुखद बनाया है। 

मनुष्य के जीवन में सुख दुःख उनके कर्मों से भी आते है। जो लोग पहले से सुखी और दुःखी है वह अपने कर्म के कारण ही सुख दुःख पाते हैं। इसलिए हे पार्वती! मनुष्य को अपने शुभ कर्मों की ऐसी सुंदर इमारत खड़ी करनी चाहिए ताकि कोई उसकी एक ईंट को भी निकाल ना सके। 

तेनालीराम और तीन गुड़िया की कहानी 

Short inspirational story in hindi: राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक बार पड़ोसी राज्य का व्यापारी आया। वह राजा को प्रणाम कर कहने लगा कि," महाराज मैंने आपके मंत्रियों की बुद्धिमत्ता की बहुत सी कहानियां सुनी है। मेरे पास यह तीन एक जैसी दिखने वाली गुड़ियाँ है। लेकिन तीनों गुड़िया की अपनी अलग खासियत है। मैं चाहता हूं कि आपके मंत्री इन तीनों गुड़िया का अंतर बता कर उनकी विशेषता भी बताएं।  मैं आज से 30 दिन बाद आपके दरबार में आऊंगा। 

राजा कृष्णदेव ने बारी-बारी से सभी मंत्रियों को तीनों गुड़िया का अंतर बताने के लिए कहा। लेकिन कोई भी उसका अंदर नहीं बता पाया। क्योंकि उन तीनों की बनावट में किसी भी तरह का अंतर दिखाई ही नहीं देता था। जहां तक कि राजा कृष्णदेव राय भी उनके बीच कोई अंतर नहीं ढूंढ पाए। 

आखिर में उन्होंने तेनालीराम को यह कार्य सौंपा। जब व्यापारी आया तो तेनालीराम ने सेवक से तीन पतले तार मंगवाये। पूरा दरबार हैरानी से तेनालीराम को देखने लगा कि इससे गुड़िया में अंतर कैसे ढूंढ सकते हैं। 

तेनालीराम से पहली गुड़िया के कान में तार डाला तो वह उसके मुंह से बाहर आ गया। 

तेनालीराम कहने लगे कि,"यह गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जिसको अगर कोई गुप्त रहस्य बताया जाए तो वह उसे गुप्त ना रखकर दूसरे को बता देगा।" 

जब उन्होंने दूसरी गुड़िया के कान में तार डाला तो वह उसके दूसरे कान से बाहर आ गया।

 तेनालीराम कहने लगे कि," यह गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जिस को कुछ भी समझाओं वह एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकल देता है अर्थात आपकी बात को कोई महत्व नहीं देता।"

जब उन्होंने तीसरी गुड़िया के कान में तार डाला तो वह उसके पेट में चला गया और बाहर नहीं आया। 

तेनालीराम कहने लगे कि,"यह गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जिसे आप अपना कोई रहस्य बताते हैं तो वह उसे अपने पेट में छिपा कर अर्थात गुप्त रखता है। ऐसे व्यक्ति ही केवल विश्वसनीय होते हैं। "

तेनालीराम कहने लगे कि हर एक गुड़िया की विशेषता का एक ओर पहलू भी है। 

पहली गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जो स्वयं ज्ञान अपने कानों से सुनकर दूसरों को मुंह से बांटते हैं। 

दूसरी गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जो किसी के भी द्वारा दिए जा रहे ज्ञान को ध्यान से नहीं सुनते और एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकल देते हैं। 

तीसरी गुड़िया ऐसे व्यक्ति को दर्शाती है जो दूसरे से प्राप्त ज्ञान को अपने तक ही सीमित रखते हैं और दूसरे को नहीं बताते। तेनालीराम का स्पष्टीकरण सुनकर व्यापारी बहुत खुश हुआ। 

वाणी का जीवन में महत्व 

SMALL STORY IN HINDI: एक बार एक राजा बहुत ही घमंडी था। उसे सत्ता का इतना नशा था कि वह हर किसी से बदतमीजी से ही बात करता था। उसके सभी दरबारी उसकी इस बात से परेशान थे लेकिन राजा के आगे कोई कुछ नहीं बोल पाता था। 

एक बार राजा ने कहा - सभी दरबारी जिस चीज़ को सबसे ज्यादा बुरा समझते हैं कल वह दरबार में लेकर आना। कोई दरबारी मल मूत्र लाया, कोई बदबूदार सामान तो कोई तो कीचड़ ही ले आया। लेकिन एक दरबारी की मृत व्यक्ति की जीव काट कर ले आया। 

राजा यह देखकर बहुत हैरान हुआ। राजा ने उससे पूछा क्या तुम को जीव सबसे बुरी लगती है? 

वह दरबारी बोला - महाराज यह जीव ही सबसे बुरी है। महाराज! अगर किसी को तलवार से घाव हो जाए तो उसका उपचार हो सकता है। लेकिन कड़वी जुबान से बोले गए शब्दों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जिसका कोई उपचार नहीं है। किसी के द्वारा बोले गए कड़वे वचन सामने वाले की आत्मा को छलनी कर देते हैं। 

राजा को यह सुनकर कुछ शर्मिंदगी हुई। राजा जानता था कि इस बुरी सभा में मुझ से ज्यादा कड़वा कोई नहीं बोलता। लेकिन राजा चुप रहा। 

उसी समय राजा ने घोषणा की कि कल सभी अपनी सबसे मनपसंद वस्तु लेकर आएंगे। अगले दिन कोई दरबारी सुंदर फूल, पैसा कोई मनपसंद खाने की वस्तु लेकर आया। लेकिन वह दरबारी जो एक दिन पहले जीव लेकर आया था वह आज भी जीव ही लेकर आया। राजा ने आश्चर्य से पूछा - कल तक तो जीव तुम्हारे लिए सबसे बुरी चीज़ थी लेकिन आज सबसे अच्छी वस्तु भी यह जीव ही है। इसका क्या रहस्य है? 

वह दरबारी बोला - महाराज मनुष्य को दी हुई जीव ईश्वर की सबसे बड़ी देन है। हम मनुष्य इस जीव से दूसरों को दुःख की घड़ी में सांत्वना दें सकते हैं, किसी के अच्छे काम करने पर उसकी प्रशंसा कर सकते हैं, सबसे बड़ी बात हम लोग जीव से ईश्वर का नाम ले सकते हैं। मेरे लिए जीव ही इस सृष्टि की सबसे अच्छी और बुरी वस्तु है। 

यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस का उपयोग कैसे करते हैं। समझदार दरबारी की बातें सुनकर राजा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने सबसे विनम्रता से बात करने का प्रण लिया। 

शिक्षा - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव दूसरों से बात करते समय सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 

साधु और बिच्छू की कहानी 

short inspirational story in hindi : एक बार एक साधु अपने शिष्य के साथ नदी पर स्नान करने गए। साधु ने स्नान करते समय एक बिच्छू को नदी में डुबते हुए देखा। साधु स्वभाव से दयालु होते हैं। इसलिए उन्होंने बिच्छू के प्राण बचाने के लिए जैसे ही उसको अपने हाथों से पकड़ा तो बिच्छू ने उनके हाथ पर काट दिया। जिससे बिच्छू उनके हाथ से छूट गया। ऐसा की बार हुआ वह जितनी बार बिच्छू को निकालने का प्रयास करते वह हर बार उनके हाथ पर काट लेता। 

लेकिन अंततः वह अपने प्रयास में सफल रहे और बिच्छू को उन्होंने नदी से बाहर निकल लिया। यह सारी घटना उनका‌ शिष्य देख रहा था। उसने पूछा गुरुजी आप तो बिच्छू की जान बचा रहे थे लेकिन बिच्छू आपके हाथ पर काट रहा था। फिर भी आपने उसकी जान क्यों बचाई। 

साधु कहने लगे कि, जैसे पानी का स्वभाव होता है भिगोना वैसे ही इस बिच्छू का स्वभाव डंक मारना है। वह बिच्छू नहीं जानता था कि मैं उसकी जान बचाने के लिए पकड़ रहा हूं। लेकिन मेरा साधु स्वभाव कहता है कि मुझे इस प्राणी की रक्षा करनी चाहिए। बिच्छू ने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा तो मैं अपने स्वभाव को कैसे छोड़ सकता हूं। मैं एक बिच्छू के डंक से अपने स्वभाव में कैसे छोड़ सकता हूं।  

हमें दूसरों के बर्ताव से अपने व्यक्तिगत स्वभाव को नहीं बदलना चाहिए। 

व्यर्थ की चिंता मत करें

short inspirational story in hindi :एक बार एक सेठ जी अपने शहर के सबसे अमीर आदमी थे। एक बार उन्होंने अपनी संपत्ति का आंकलन करवाया। सेठजी को पता चला कि उनके पास इतनी धन संपदा है कि उनकी सात पीढ़ी आराम से बैठ कर खा सकती है।

यह सुनकर सेठ जी बहुत चिंतित हो गए कि मेरी आठवीं पीढ़ी का क्या होगा? इस चिंता में उनकी भूख प्यास सब समाप्त हो गई।

उनकी पत्नी बहुत ही सुलझी हुई महिला थी। वह जानती थी कि उसके पति उस समस्या की चिंता कर रहे हैं जोकि अभी आई भी नहीं। लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि अपने पति को समझाएं कैसे? 

इसलिए उसने अपने पति को एक संत जी के पास भेजा। संत जी को उन्होंने अपनी समस्या बताई कि मेरी सात पीढ़ी के लिए तो मैंने धन अर्जित कर लिया है। लेकिन मैं चाहता हूं कि कुछ ऐसा हो जाए कि मेरे उसके आगे वाली पीढ़ी के लिए भी मैं धन कमा सकूं। 

संत जी बोले - आगे झोपड़ी में एक महिला रहती है। उसके घर में कोई भी कमाने वाला नहीं है। अगर उसने आपका एक किलो आटा ले लिया तो समझो आपका काम हो गया। 

सेठ जी प्रसन्न होकर आटे की बोरी लेकर तुरंत उस बुढ़िया के घर पर पहुंचे। बुढ़िया ने आटा लेने से इंकार कर दिया। वह कहने लगी कि," बेटा आटा तो मेरे पास है।"

सेठ ने बोले एक बोरी नहीं तो एक किलो आटा ही रख लो। बुढ़िया माई बोली कि मुझे जरूरत नहीं है। सेठ बोला - माई आज के लिए आटा हैं तो कल के लिए रख लो। बुढ़िया ने बहुत ही विनम्रता से कहा - मैं कल की चिंता क्यों करूं? जैसे आज तक ईश्वर मेरे लिए भोजन का प्रबंध करता आया है वह कल भी कर देगा। 

यह सुनकर सेठ जी के ज्ञान चक्षु खुल गए। वह समझ चुके थे कि उनकी चिंता निर्थक है। एक बुढ़िया जिसके पास कुछ भी नहीं है। वह अपने ईश्वर पर विश्वास कर आंनद से भी जीवन व्यतीत कर रही है। दूसरी ओर मेरे पास अकूत धन संपदा है फिर भी मैं आठवीं पीढ़ी की चिंता में मरा जा रहा हूं। सेठ जी वापस संत के पास लौट गए और उन्हें इस तरह से समझाने के लिए धन्यवाद किया। 

कई बार हमारे साथ भी होता है कि समस्या इतनी बड़ी नहीं होती जितनी हम चिंतित हो जाते हैं। 

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