BANKE BIHARI HARIJALI TEEJ HINDOLA DARSHAN

SHRI BANKE BIHARI WILL GIVE DARSHAN IN SILVER GOLD HINDOLA ON HARIJALI TEEJ Banke bihari harijali teej hindola darshan 2023

Banke Bihari: बांके बिहारी स्वर्ण रजत हिंडोले पर देंगे भक्तों को दर्शन 

BANKE BIHARI HARIYALI TEEJ 2023

SATURDAY, 19 AUGUST 

  वृन्दावन में बांके बिहारी जी हरियाली तीज के दिन स्वर्ण रजत के हिंडोले पर विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। बिहारी जी हरे रंग की पोशाक में और मनमोहन श्रृंगार धारण कर अपने भक्तों के मन को मोह लेते हैं। 

सावन मास भगवान शिव और श्री कृष्ण दोनों को अति प्रिय है। ऐसा माना जाता है कि सावन मास में श्री कृष्ण सखियों संग झूला झूलते थे। यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। वृन्दावन में हरियाली तीज बहुत खास है। श्री राधा कृष्ण को झूला झूलने की परम्परा बांके बिहारी मंदिर से आरंभ हुई थी। वृन्दावन में सभी मंदिरों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसे हिंडोला उत्सव (झूलन महोत्सव) कहा जाता है।

बांके बिहारी का स्वर्ण रजत हिंडोला 

बांके बिहारी मंदिर में बिहारी जी पहली बार स्वर्ण रजत हिंडोला पर 15 अगस्त 1947 के दिन विराजमान हुए थे। इससे पहले ठाकुर जी को फूल, पत्तियों और कपड़े से बने हिंडोले में झूला झूलते थे। भारत की आजादी से पहले बांके बिहारी के अनन्य भक्त हरगुलाल जी ने इसका निर्माण कार्य 1942 में आरंभ करवाया था। इस स्वर्ण रजत झूले को तैयार होने में लगभग 5 साल लगे थे। इसमें एक लाख तोले चांदी और 22 किलो सोने का प्रयोग किया गया था। ऐसा माना जाता है कि उस समय इसको बनने में 25 लाख के करीब लागत आई थी।

इसे बनाने में शीशम की लकड़ी का प्रयोग किया गया था। बनारस के कारीगर ने लकड़ी का काम किया और कारीगर लल्लन और बाबूलाल ने सोने चांदी का काम किया। इसमें चार सखियां भी बनाई गई है। 

हरियाली तीज बांके बिहारी हिंडोला दर्शन 

हरियाली तीज के दिन बांके बिहारी जी अपने गर्भ गृह से निकल कर अपने स्वर्ण रजत झूले पर पूरे ठाठ-बाट से विराजमान होते हैं। ठाकुर जी को हरे रंग की पोशाक पहनाई जाती है। भारी संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से अपने आराध्य के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ठाकुर जी के प्रसाद के रूप में घेवर, फेनिया बनाई जाती है। बांके बिहारी जी का झूला बहुत ही भव्य है और यह अपनी भव्यता और आकर्षक के कारण विश्व प्रसिद्ध है।क्योंकि विश्व में कहीं पर भी इतना बड़ा स्वर्ण रजत हिंडोला नहीं है। ठाकुर जी के इस झूले पर विराजमान होने के पर्व को झूलन यात्रा भी कहते हैं। 

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