BHAGWAN VISHNU MATSYA AVTAR KI KATHA

BHAGWAN VISHNU MATSYA AVTAR KI KATHA KAHANI STORY  ​​​​​​​भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा भगवान विष्णु के पहले अवतार की कथा LORD VISHNU IMAGE

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा

LORD VISHNU:भगवान विष्णु ने सृष्टि की रक्षा के लिए समय-समय पर बहुत से अवतार लिये थे। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार माना जाता है। मत्स्य अवतार लेकर भगवान विष्णु ने पृथ्वी को जल प्रलय से बचाया था और हयग्रीव नामक दैत्य का वध कर वेदों की रक्षा की थी।

भगवान विष्णु को भक्तवत्सल और सृष्टि के रक्षक कहा जाता है। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा और भक्तों के कल्याण हेतु बहुत से अवतार धारण किए। 

भगवान विष्णु ने वेदों की पुनः प्राप्ति और रक्षा के लिए मत्स्यावतार लिया था। एक बार हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में छिपा दिया। जिससे संसार में अधर्म और अज्ञानता का अंधकार बढ़ गया। तब भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण कर हयग्रीव का वध किया और वेदों को पुनः प्राप्त कर ब्रह्मा जी को सौंप दिया। 

BHAGWAN VISHNU KE MATSYA AVTAR STORY:एक समय द्रविड़ राज्य में सत्यव्रत नाम का विष्णु भक्त राजा राज्य करता था। एक दिन राजा कृतमाला नदी पर स्नान करने गए। राजा जब जल हाथ में लेकर तृपण करने लगे तो उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई। राजा जैसे ही मछली को जल में छोड़ने लगे, मछली राजा से विनती करने लगी कि राजन्! मैं आपकी शरण में आई हूं। मेरी रक्षा करें। मुझे नदी के भयानक जीवों से भय लगता है इसलिए आप मुझे जल में ना छोड़े अपितु अपनी शरण में रख लें। 

मछली की करूण पुकार सुनकर राजा ने उसे अपने कमंडल में रख लिया और अपने महल लौट आया। कुछ समय पश्चात जब राजा ने पुनः मछली को देखा तो उसका आकार बहुत बढ़ गया था। राजा ने उसे बड़ी जलराशि में डलवा दिया। लेकिन मछली का आकार पहले से की गुना बढ़ गया तो राजा ने उसे सरोवर में डलवा दिया। जब वहां भी मछली का आकार बढ़ गया तो राजा ने उसे बड़े सरोवर में डलवा दिया। जब वहां भी मछली का आकार बढ़ने लगा तो राजा ने उसे समुद्र में डालने की बात कही। मछली बोली कि महाराज समुद्र के भयानक जीवों से मुझे भय लगता है। तब राजा सोचने लगा कि यह कोई साधारण मछली नहीं हो सकती।

सत्यव्रत आश्चर्य चकित होकर विनती करने लगा‌ कि," आज तक ऐसा मत्स्य ना मैंने देखा ना सुना जिसने एक ही दिन में अपना आकार कई गुना बढ़ा लिया हो।"

प्रभु आपका यह रूप मुझे मोहित कर रहा है। हे जगदीश! आप सृष्टि के कल्याण हेतु कोई ना कोई अवतार लेते रहते हैं। प्रभु कृपा कर मुझे बताएं आपने यह मत्स्य रूप क्यों धारण किया? 

राजा सत्यव्रत की प्रार्थना सुनकर भगवान कहने लगे कि यह मत्स्यावतार मैंने वेदों की रक्षा के लिए लिया है। आज से सातवें दिन सारी सृष्टि प्रलय में डुबने लगेगी। उस समय तुम्हारे पास एक नौका आएगी। तुम उसमें सभी औषधियां और बीज लेकर सप्त  ऋषियों के साथ बैठ जाना। 

सातवें दिन जब सृष्टि प्रलय में डुबने लगी तब एक नौका राजा के समीप आकर रूकी। राजा सत्यव्रत सभी बीज और औषधियों सहित नौका में चढ़ गए। जब प्रलय के कारण नौका समुद्र में डगमगाने लगी तो राजा सत्यव्रत ने सप्त ऋषियों के साथ मिलकर भगवान विष्णु की स्तुति की। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु अपने मत्स्यावतार में प्रकट हुए। राजा कहने लगे कि," प्रभु आप सृष्टि के हर कण में विराजमान हैं। प्रभु आप मुझे ज्ञान दे।" 

भगवान विष्णु ने अपने मत्स्य रूप में राजा को आत्मज्ञान दिया। भगवान कहने लगे कि हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया है जिससे सभी और अज्ञानता का अंधेरा और अधर्म बढ़ गया है। मैंने मत्स्यावतार हयग्रीव दैत्य के वध के लिए लिया है। प्रलय समाप्त होने पर मत्स्य भगवान ने हयग्रीव दैत्य का वध कर वेद पुनः ब्रह्मा जी ने सौंप दिये। 

मत्स्य द्वादशी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। हयग्रीव ने जब वेदों को चुराने के कारण सृष्टि में अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैल‌ गया उस समय भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और वेदों की पुनः प्राप्ति के लिए मत्स्यावतार लेकर हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भारत में आंध्र प्रदेश के नागालपुरप वेद नारायण स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार पर विशेष आयोजन किया जाता है। भगवान विष्णु के भक्त दूर दूर से उनके दर्शन के लिए आते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। 

भगवान विष्णु मत्स्य अवतार मंत्र 

ऊँ मत्सयरूपाय नम:।।

 

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