माता-पिता(अभिवावकों) के लिए संस्कृत श्लोक
Matri pitri pujan diwas 2024:माता-पिता पिता को हमारे वेदों शास्त्रों में सबसे उच्च स्थान दिया गया है। माता-पिता किसी भी परिवार का आधार स्तम्भ होते हैं। जहां मां की तुलना ईश्वर से की गई है वहीं पिता को प्रजापति ब्रह्मा की प्रतिमूर्त माना गया है। मां को पृथ्वी से भारी और पिता को आकाश से उच्च दर्जा दिया गया है। माता-पिता को सम्मानित करने के लिए भारत में मातृ-पितृ पूजन दिवस और पेरेंट्स डे मनाया जाता है। वैसे तो माता पिता का हर प्रतिदिन ही सम्मान करना चाहिए लेकिन जब उनको सम्मान देने का कोई खास दिन हो तो हर कोई उस दिन अपने माता पिता को स्पेशल फील करवाना चाहता है। मातृ-पितृ पूजन दिवस हर साल 14 फरवरी को मनाया जाता है। 14 फरवरी को पूरे विश्व में वेलेंटाइन डे मनाया जाता है लेकिन यह हमारी सनातन संस्कृति संस्कृति का हिस्सा नहीं है। अपितु यह पाश्चात्य देशों से भारत में आया है।
भारत की संस्कृति वेद पुराणों की संस्कृति है जहां माता पिता को ईश्वर समान माना जाता है। मातृ-पितृ पूजन दिवस के अनुसार इस दिन प्रेमी प्रेमिका को नहीं अपितु अपने माता-पिता को उनके बलिदान के लिए प्यार जताना चाहिए। इससे माता पिता से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इस आर्टिकल में माता-पिता को सम्मानित करने के लिए विशेष संस्कृत श्लोक अर्थ सहित दिए गए हैं।
SANSKRIT SHLOK ON PARENTS WITH MEANING SANSKRIT TO HINDI
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
भावार्थ - जो पुत्र नित्य माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों वृद्धि होती हैं।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत् ॥
भावार्थ- माता का स्थान सभी मनुष्यों के लिए सम्पूर्ण तीर्थों के सामान हैं और पिता सभी देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सभी मनुष्यों का यह परम कर्तव्य है कि वह माता-पिता का सम्मान ,सत्कार और सेवा करें।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम् ।।
भावार्थ - जो पुत्र माता- पिता का पूजन करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे निश्चित रूप से पृथ्वी परिक्रमा जनित(समान) फल प्राप्त हो जाता है ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ।।
भावार्थ - माता भूमि से भी श्रेष्ठ होती है, पिता स्वर्ग से भी उच्च होते हैं। जननी (माता) और जन्मभूमि, दोनों ही स्वर्ग से भी अधिक महँ और महत्वपूर्ण होते हैं।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः।।
भावार्थ - तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बंधु हो और तुम ही मित्र हो। तुम ही विद्या हो, तुम ही द्रव्य (धन) हो, तुम ही मेरा सब कुछ हो, मेरे देवता हे देव।
SANSKRIT SHLOK FOR MOTHER
मां के लिए संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं
नास्ति मातृसमा प्रपा॥
भावार्थ- मां के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। मां के समान इस संसार में कोई जीवन दाता नहीं है।
भावार्थ- माँ और जन्मभूमि ( मातृभूमि) स्वर्ग से भी बढ़कर है।
भावार्थ- सब गुरुओं में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है।
भावार्थ- इस संसार में माँ के समान कोई गुरु नहीं है।
बाल्यकाले मां पालन कृत्वा मातृकाभ्यो त्वम्न माम्यहम।।
भावार्थ- मैं अपनी माँ को मैं प्रणाम करता हूँ जिसने मुझे जन्म दिया। मैं अपनी अन्य माताओं को भी प्रणाम करता हूँ ;जिन्होंने मुझे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपने कार्यों और जीवन में ज्ञान और बुद्धि को जोड़ा।
भावार्थ - वह माता बहुत महान है जो अपने बच्चे को अपने गर्भधान से लेकर उसकी शिक्षा पूर्ण होने तक उसके उचित आचरण का पूर्ण ध्यान देती है।
भावार्थ - माता, पिता, गुरु और अतिथि को देवता स्वरूप मानकर पूजते हैं।
भावार्थ: माँ के हाथ का स्पर्श उस मुट्ठी भर जल के समान होता है जो उसके लिए अभाव में ग्रस्त होता है।
भावार्थ - माता पृथ्वी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है।
SANSKRIT SHLOK FOR FATHER
पिता के लिए संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित
भावार्थ- पितृ देवता के समान है।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः ॥
भावार्थ - मेरे पिता मेरे स्वर्ग हैं, मेरे पिता मेरे धर्म हैं, वे मेरे जीवन की परम तपस्या हैं। जब वे खुश होते हैं, तब सभी देवता खुश होते हैं ।
भावार्थ- पिता पालन करने वाला होने के कारण प्रजापति अर्थात ब्रह्मा जी की प्रतिमूर्ति हैं।
धनाहतं स्वर्ण च जायते जनमण्डनम।
भावार्थ- पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य, सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं।
भावार्थ - जब पिता प्रसन्न होते हैं तब सभी देवता प्रसन्न होते हैं।
तथा बलकराः सीते ! यथा सेवा पितुर्हिता ।।
भावार्थ - श्रीराम देवी सीता से कहते हैं - हे सीता! पिता की सेवा करना जिस तरह कल्याणकारी माना जाता है। वैसा साधन न सत्य है, न दान- सम्मान है और न बहुत अधिक दक्षिणावाले यज्ञ ही हैं।
तथान्तरिक्षे च सुरारिपूज्यास्ते वै प्रतीच्छन्तु मयोपनीतम् ॥
भावार्थ- मैं अपने पिता के सामने झुकता हूँ, जिसमें सभी लोकों के सभी देवता निवास करते हैं, सही मायने में वह मेरे देवता हैं।
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