Gandhi Jayanti पर पढ़ें गांधी जी के प्रेरक प्रसंग
कर्म को बोने की सलाह
एक बार गांधी जी एक गांव में पहुंचे। उनके दर्शन के लिए सभी गांव वाले इकट्ठा हो गए। वहां पर गांधी जी गांव वालों से पुछा कि," आजकल आप कौन सा अन्न बो रहे और कौन सी फसल की कटाई कर रहे हैं?
पूरी सभा में सन्नाटा छा गया। तभी एक वृद्ध व्यक्ति आगे आये। वह कहने लगे कि," आप तो बहुत विद्वान व्यक्ति हैं, क्या आप को नहीं पता कि ज्येष्ठ मास में खेतों में कोई फसल नहीं उगाई जाती। इस समय हमें बिल्कुल खाली रहना पड़ता है।"
गांधी जी ने उत्तर सुनकर कहा कि जब आप फसल बो और काट रहे होते हैं तो क्या तब आपके पास बिल्कुल भी समय नहीं होता। वृद्ध ने कहा कि तब तो हमारे पास भोजन करने तक का भी समय नहीं होता।
गांधी जी बोले कि इसका अर्थ यह हुआ कि इस समय आप लोग बिलकुल निठल्ले होते हैं और केवल व्यर्थ में गप्पे हांकते में समय गंवा रहे हो। आप लोग चाहे तो इस समय भी कुछ बो और काट सकते हो।
गांधी जी की बात सुनकर गांव वालों ने कहा - आप ही बताइए कि हमें क्या बोना और काटना चाहिए।
गांधी जी ने कहा कि -
आदत को बोइए और चरित्र को काटिए,
चरित्र को बोइए और भाग्य को काटिए,
तभी तुम्हारा जीवन सार्थक हो पाएगा।
गांधी जी जब स्वयं गुड़ खाना कम कर दिया
Mahatma Gandhi Stort In Hindi:एक बार एक महिला लंबी यात्रा के पश्चात अपने बेटे के साथ गांधी जी से मिलने पहुंची। उसने महात्मा गांधी से कहा- मेरा बेटा बहुत ज्यादा गुड़ खाता है, कृपया आप इसे समझाएं कि ज्यादा गुड़ खाना इसकी सेहत के लिए नुकसानदायक है।
महात्मा गांधी ने औरत को दो सप्ताह के बाद फिर से आने के लिए कहा। औरत गांधी जी का बहुत सम्मान करती थी इसलिए चुपचाप वहां से चली गई। लेकिन उसके मन में यह प्रश्न आ रहा था कि गांधी जी ने उसे दो सप्ताह के बाद आने के लिए क्यों कहा?
दो सप्ताह के पश्चात वह फिर से अपने बेटे को लेकर पहुंची। गांधी जी ने उसे बच्चे को समझाया कि बेटा तुमको ज्यादा गुड़ नहीं खाना चाहिए। इससे तुम्हारी सेहत को नुकसान पहुंचेगा। बच्चे ने गांधी जी की बात सुनकर हां में हामी भर दी। औरत ने आश्चर्य से गांधी जी पूछा- आप यही बात दो सप्ताह पहले भी तो मेरे बेटे को समझा सकते थे, फिर आपने मुझे दोबारा क्यों बुलाया?
गांधी जी बहुत विनम्रता से बोले कि,"दो सप्ताह पहले तक में स्वयं गुड खाता था। इसलिए मैंने स्वयं इस आदत को छोड़ने के पश्चात ही उसे बच्चे को समझने का निश्चय किया था। आप स्वयं सोचें कि मैं किसी बच्चे को किसी आचरण को व्यवहार में लाने के लिए कैसे कह सकता था जिसे मैं स्वयं व्यहार में नहीं लाता था। गांधी जी की इस बात ने उस लड़के और उस औरत बहुत प्रभावित किया।
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