KANJOOS SETH KI KAHANIYAN

KAJOOS SETH KI MOTIVATIONAL KAHANI STOTY IN HINDI कंजूस सेठ की कहानी मुहावरे और कहावत पर आधारित कहानी SETH KARODIMAL KI KAHANI STORY

कंजूस सेठ की कहानी

कहते हैं कि कंजूसी बुरी बला है। कुछ लोग जीवन भर मेहनत करते हैं लेकिन अपने ही कमाएं हुए धन का ना तो स्वयं उपयोग करते हैं और ना ही अपने परिवार को किसी सुख सुविधा का आंनद भोगने देते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको कंजूस सेठ की मजेदार, रोचक और ज्ञानवर्धक कंजूसी मुहावरे और कहावत पर आधारित कहानियों की जानकारी देने जा रहे हैं। 

kanjoos seth karodimal ki kahani

:एक बार एक गांव में एक कंजूस सेठ करोड़ी मल रहता था। वह अपनी कंजूसी लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध था कि यह तो कौड़ी कौड़ी के लिए जान देता है। एक दिन उसे अपने से भी ज्यादा कंजूस व्यक्ति के बारे में पता चला। उस के मन में आया कि चल कर देखना चाहिए कि कोई मुझ से भी ज्यादा कंजूस कैसे हो सकता है ? 

वह अगले दिन सुबह उस कंजूस सेठ के घर पर पहुंच गया। उस समय वह सेठ घर पर नहीं था। सेठ करोड़ी मल ने उसके बेटे को एक कागज़ दिया जिस पर चार आम बने थे और कहा कि परिवार के साथ मिलकर बांट कर खा लेना।

दूसरे कंजूस सेठ के बेटे ने हवा में छः सेब बनाएं और कहा कि लगा कि आप भी परिवार सहित मिल बांट कर खाना।

 सेठ करोड़ी मल सोचने लगा कि यह तो कंजूसी में मेरा भी बाप निकला। मैंने तो कागज़ का इस्तेमाल किया, उस पर पेन की स्याही से आम बनाएं। लेकिन इस ने हवा में ही सेब बना दिये। काग़ज़ और स्याही का खर्चा भी बचा लिया। जिसका बेटा ऐसा है उसका बाप कंजूसी में कैसा होगा ? एक बार तो उससे जरूर मिलता चाहिए। वह उस सेठ के घर के बाहर उसका इंतजार करने लगा।

कुछ समय पश्चात वह सेठ वापिस आ गया तो वह बाहर खड़ा हो कर उनकी बातें सुनने लगा। उसके बेटे ने बड़ी खुशी- खुशी अपने पिता को बताया कि दूसरे गाँव से एक कंजूस सेठ आपसे मिलने आया था उस ने एक कागज़ पर बना कर मुझे आम दिये और कहने लगा कि परिवार सहित खा लेना।

मैंने हवा में ही उसे चार सेब बना कर कहा कि आप भी परिवार सहित मिल बांट कर खा लेना। इतना सुनते ही कंजूस सेठ क्रोधित हो गया तो बाहर खड़ा कंजूस सेठ सोचने लगा कि यह इतना क्रोधित क्यों हो गया ? उसके बेटे ने तो हवा में ही सेब बना कर दिये थे।

वह सेठ अपने बेटे को कहने लगा कि," अगर उसने आम दिये तो तुम ने सेब क्यों बना कर दिये। आम बाज़ार में 20 रू किलो बिक रहे हैं और सेब 40 रू किलो। तुम को हवा में भी इतने महंगे फल देने की क्या जरूरत थी ? आगे से इस बात का ध्यान रखना । अब जो सेठ बाहर खड़ा था कहने लगाकि सच में यह सेठ कौड़ी कौड़ी दांतों से पकड़ने वाला है।

 कंजूस सेठ की कहानी 

 एक बार एक सेठ धनीराम था। कंजूस इतना कि किसी को खाना तो क्या फायदा पानी तक पीने को ना दें। कौड़ी कौड़ी जोड़ कर रखता था। उसकी इस आदत से उसकी पत्नी और परिवार बहुत परेशान था। उसकी पत्नी उसे बहुत बार समझाने का प्रयास कर चुकी थी‌। लेकिन किसी भी बात का उस पर कोई प्रभाव ना पड़ता। 

एक दिन उसके नगर में एक सिद्ध महात्मा आए । कंजूस सेठ की पत्नी ने अपनी समस्या संत जी को बताई। सेठ जी की पत्नी ने संत जी को यह भी बताया कि मेरे पति साधु महात्मा को दान तो नहीं देते लेकिन उनके शाप से बहुत डरते हैं।

 संत जी कहने लगे कि ,"कल मैं सुबह आपके घर पर आऊंगा। आप कोशिश करना कि उस समय आपके पति घर पर अकेले हो और मेरे खटखटाने पर दरवाजा वहीं खोले।" अगले दिन सेठ की पत्नी अपने बच्चों के साथ मायके चली गई। 

अगले दिन संत जी ने सेठ के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा सेठ ने खोला। संत ने कहा कि ," मुझे बहुत भूख लगी है सेठ जी मुझे एक रोटी दे दो। कंजूस सेठ ने संत की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम पर चला गया।

 शाम को आकर देखा तो संत उसके घर के बाहर खड़े थे। अब सेठ सोचने लगा कि भूखे रहने के कारण कहीं यह संत मेरे घर के बाहर ना मर जाए या फिर मुझे कई शाप ना दे दे। इसलिए सेठ ने कुछ समय विचार करने के पश्चात संत से कहा कि आप भी क्या याद करोगे ? आपने मुझसे एक रोटी मांगी थी मैं आपको भरपेट भोजन करवाऊंगा।

संत जी कहने लगे कि, "अब तो मैं भोजन नहीं करूंगा ,अब तुम मुझे एक कुआं खुदवा दो।" सेठ कहने लगा कि, "महाराज, बात तो एक रोटी की हुई थी यह कुआं खुदवाने की बात कहां से आ गई?"

सेठ ने कुआं खुदवाने से इंकार कर दिया और अपने घर के अंदर चला गया। संत चुपचाप अगले दिन भी उसके घर के बाहर खड़े रहे। यह देखकर सेठ सोचने लगा कि अगर इसकी बात ना मानी तो कहीं यह मेरे घर के बाहर खड़े खड़े मर ही ना जाएं। सेठ संत जी के पास गया और बोला कि महाराज मैं कुआं खुदवाने के लिए तैयार हूं चलो अब भोजन कर लो। संत जी कहने लगे कि अब तुम्हें एक नहीं दो कुएं खुदवाने पड़ेंगे । कंजूस सेठ झट से बोला कि ठीक है महाराज मैं दो कुएं ही आपके लिए खुदवा देता हूं।

 सेठ विचार करने लगा कि इसका क्या भरोसा, अगर मैंने इसकी बात नहीं मानी तो बोले कि मुझे दो नहीं चार कुएं खुदवा कर दो। इसलिए समझदारी इसी में है कि इसको दो कुएं खुदवा दूं।

 दोनों कुएं जब  तैयार हो गए तो सेठ ने कहा कि संत जी आपके दोनों कुएं तैयार है। संत कहने लगे कि एक कुएं की जिम्मेदारी में तुमको सौंपता हूं जिसमें से सभी गांव वालों को जितना पानी चाहिए उतना भरने देना। 

लेकिन मेरे दूसरे में से कोई भी एक बूंद भी पानी ना निकल सके इसका ध्यान रखना। मैं कुछ दिनों के बाद आकर अपने दोनों कुएं तुम से वापस ले लूंगा।

कंजूस सेठ ने जिस कुएं से संत जी ने कहा था कि कोई एक बूंद भी पानी ना निकल पाए उस पर ढक्कन लगाकर दिया और दूसरे कुएं को संत के कहने पर पूरे गांव के लिए खोल दिया। गांव वाले जितनी ज़रूरत होती उस कुएं से पानी निकल लेते। कुएं के शीतल जल से पूरे गांव वाले संत जी का गुणगान करते रहते।

कुछ महीने बाद जब संत जी उस गांव में वापस आएं तो सेठ से कहने लगे कि दूसरे कुएं से ढक्कन हटवा दो। जब कुएं का ढक्कन हटया गया तो एक तो उसमें पानी नहीं था दूसरे उसमें से दुर्गंध आ रही थी।

अब संत जी कंजूस सेठ को समझाने लगे कि जैसे खुले कुएं में से पूरे गांव ने पानी निकाला लेकिन फिर भी ना तो पानी कम हुआ और ना ही उसकी शीतलता में कोई कमी आई। जबकि दूसरे कुएं से पानी नहीं निकाला गया तो वह कुआं सुख गया और उसका पानी सड़ गया। ऐसे ही धन की गति भी कुएं के जल की तरह है। जिस कुएं से लगातार पानी निकलता रहा उसका स्तर और बढ़ता रहा लेकिन जिस कुएं से पानी नहीं निकाला गया वह सूख गया और उसमें से दुर्गंध आने लगी।

 ऐसे ही अगर तुम जमा किए हुए धन का उपयोग नहीं करोगे तो वह धन दौलत निरर्थक हो जाएंगी या फिर कोई ओर उसका दुरूपयोग करेगा। इसलिए धन दौलत का भी समय रहते सदुपयोग स्वयं अपने हाथों से करना चाहिए। अब संत जी की बात सेठ धनीराम को अच्छे से समझ आ चुकी थी। अब उसने जीवन में कंजूसी करना छोड़ दिया और अपने परिवार के सुख और वैभव और दान पुण्य में लगाना शुरू कर दिया। जिससे अब उसका परिवार भी खुश था और जिस जरूरमंद की वह मदद करता उसकी दुआएं भी उसे मिलती थी। 

 चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए मुहावरे पर आधारित कंजूस सेठ की कहानी 

kanjus seth ki story:एक बार एक कंजूस सेठ अपनी दुकान से घर आया तो उसने देखा कि घर में जल रहे दीपक की लौ बहुत ज्यादा थी। उसने अपनी पत्नी को डांटते हुए कहा कि तुमने दीपक की लौ इतनी बढ़ा कर रखी है। तुम तो इतनी महंगाई में मुझे कंगाल करके छोड़ोगी। 
अभी वह अपनी पत्नी को डांट ही रहा था कि उसे याद आ गया कि शायद वह दुकान का ताला लगाना भूल गया है। वह उल्टे पांव दुकान की ओर चला गया। जब वह वहां पहुंचा तो उसने देखा कि ताले तो पहले से ही लगे थे। उसे केवल भ्रम हुआ था कि उसने ताले बंद नहीं किए।
वह जल्दी अपने घर की ओर लौट गया। घर पहुंचकर उसने देखा कि दीपक की लौ पहले से कम हो गई थी। उसने पत्नी से पूछा कि तुमने इस दीपक की लौ कैसे कम की?
पत्नी बोली सुई की नोक से। 

कंजूस सेठ झुंझलाहट में बोला - सुई की नोक पर लगा तेल बेकार गया। 

पत्नी बोली - नहीं मैं भी आपकी पत्नी हूं उसे तो मैंने अपने सिर पर लगा लिया था।
पत्नी ने कंजूस सेठ को उलाहना दिया कि मुझे तो तुम फटकार रहे हो लेकिन खुद भी तो दुकान पर दोबारा गए । उससे तुम्हारे जूते बेकार में घिस गए होंगे। 

कंजूस सेठ बोला - भाग्यवान मैं बेवकूफ थोड़ी हूं। मैं तो जूतों को अपनी बगल में दबा कर स्वयं नंगे पांव गया था। ऐसे ही लोगों के लिए कहा जाता है कि चमड़ी जाएं पर दमड़ी ना जाएं। ऐसे लोग धन संपत्ति इकट्ठा जरूर करते हैं लेकिन उसका उपयोग उनके पश्चात कोई ओर ही करता है।

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