Gyaan ki pathshala के पाठकों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
करवा चौथ व्रत का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत सुहानिग स्त्रियां अपने पति की दीर्घ आयु की कामना से रखती है। करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता हैं।
हर व्यक्ति की अपने धर्म से जुड़े रीति रिवाज के प्रति आस्था अलग-अलग होती है । वर्तमान समय में कुछ लोग इसे महज अंधविश्वास मानते हैं ।
करवा चौथ के दिन पति की दीर्घ आयु और सुख समृद्धि के लिए अगर एक दिन व्रत रखने में मुझे नहीं लगता कोई ग़लत बात है क्योंकि जो हिन्दू सनातन धर्म में विश्वास करते हैं वह व्रत की महानता को भी जानते हैं लेकिन जो सनातन धर्म को मानते ही नहीं उनको समझाना नामुमकिन है।
हिन्दू धर्म में स्त्री को अन्नपूर्णा कहा जाता है। उसके लिए अपना परिवार सर्वप्रथम होता है। वह सबसे ज्यादा अपने पति से प्यार करती है इसलिए वह अपने पति की दीर्घ आयु,सुख समृद्धि और सौभाग्य के लिए व्रत रख कर ईश्वर से प्रार्थना करती है।
व्रत का अर्थ केवल भूखा रहना नहीं होता अपितु अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव होता है इसलिए हम श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं। हमें विश्वास होता है कि वह हमारी कामना को जरूर पूर्ण करेंगे।
हमारे हिन्दू सनातन धर्म में करवा चौथ को मानने वाले करवा चौथ के व्रत पूर्ण आस्था के साथ रखते हैं। इस व्रत की खूबसूरती यह है कि इसमें पति के साथ - साथ पूरे परिवार का प्यार और साथ उनके साथ होता है ।
व्रत से पहले किसी भी बहू की सास और मां उसको सुहाग का सामना देती है जिससे उसे दोनों ससुराल और मायके दोनों पक्षों का प्यार मिलता है। हमारे बड़े बुजुर्गों ने जो भी रीति रिवाज व्रत की परम्परा चलाई वह बहुत सोच समझ कर चलाई थी। यह एक ऐसा त्यौहार है सास बहू की चाहे लाख लड़ाई होती हो। हर सास बड़े प्यार से बहू को सरघी जरूर देती है और बहू भी व्रत खोलने से पहले सास को पहले उपहार और शगुन देती है।
व्रत हमें जीवन में संयम बनाएं रखना सिखाते हैं। करवा चौथ का व्रत जो भी स्त्रियां रखती है वह बड़े उमंग और चाव से पूरा दिन निराहार रहकर व्रत का पालन करती है।
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