PRINDO KO MINJIL YAKINAN
"परिंदों को मिलेगी मंज़िल यक़ीनन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं। वो लोग रहते हैं खामोश अक्सर ज़माने में, जिनके हुनर बोलते हैं।"
इस प्रसिद्ध शायरी को सत्य करती एक प्रेरणादायक कहानी (Moral Stories for kids)
एक बार एक लड़का था। पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही कमज़ोर था। हर बार स्कूल के शिक्षक उसकी शिकायत करते कि यह पढ़ाई में अपना पूरा ध्यान केन्द्रित नहीं करता। माता-पिता ने भी बहुत प्रयास किया कि पढ़ाई में उसके ग्रेड अच्छे हो जाए लेकिन सारे प्रयास असफल रहे।
वह संयुक्त परिवार में रहते थे। उनके परिवार में उस लड़के को छोड़ कर सभी बच्चें पढ़ाई में बहुत होशियार थे। इसलिए कम नंबर लाने पर उस बच्चे का बहुत मज़ाक उड़ाया जाता। जिससे माता-पिता को भी शर्मिंदगी महसूस होती थी। पड़ोसियों के बच्चे भी उसको नालायक कहकर मज़ाक उड़ाया करते थे।
पेरेंट्स अपने बच्चे को लेकर child psychiatrist के पास गए। डॉक्टर ने पेरेंट्स को समझाया कि आपका बच्चा हर तरह से एक्टिव हैं। हर बच्चा एक जैसा नहीं होता। इसलिए उसे जरूर से ज्यादा अच्छे नंबर लाने के लिए प्रेशराइज्ड मत करें। समय के साथ साथ उसे पढ़ाई की अहमियत समझाते रहे और उसकी जो भी hobby है उसको ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दे। ईश्वर ने हर बच्चे को स्पेशल बनाया है इसमें भी जरूर कोई खूबी होगी।
उस लड़के को ड्राइंग और गार्डेनिंग में बहुत रूचि थी। माता पिता ने उसकी दोनों रूचि को देखकर उसे ड्राइंग क्लास ज्वाइन करवा दी। वह घर पर लगे पौधों की बहुत देखभाल करता था और उसके शौक को देखकर माता पिता ने उसे बहुत से पौधे खरीद कर दिये। उसने अपने घर की छत पर बहुत सुंदर टेरिस गार्डन बना दिया। पूरा परिवार और पड़ोसी उसका मजाक बनाते थे कि पढ़ाई लिखाई में तो निक्कमा है इसलिए लगता है कि यह माली ही बनेगा।
माता-पिता की परेशानी तब और बढ़ गई जब पढ़ाई में उसके ग्रेड अच्छे नहीं आए। स्कूल वालों ने पेरेंट्स को बता दिया कि अपका बच्चा दसवीं इस स्कूल में नहीं कर पाएंगा इसलिए आप इसे किसी और स्कूल में दाखिला करवा दें। माता पिता के लिए यह बहुत परेशानी वाली बात थी लेकिन उन्होंने बच्चे का स्कूल बदल दिया।
जैसे तैसे उसने दसवीं क्लास पास कर ली। ग्यारहवीं में माता पिता ने उसे उसकी पसंद के विषय ले दिये। जहां परिवार के अन्य बच्चे कामर्स , साइंस ले रहे थे। उसने आर्ट्स के विषय लिए। अब भी रिश्तेदार और पड़ोसी उसका मजाक बनाते थे। जहां तक कि उनकी पड़ोसन ने अपने बेटे को उसके साथ खेलने से मना कर रखा था कि कहीं इसके साथ रहकर उसका बेटा भी नालायक ना हो जाए। लड़के की मां ने उसे खमोश रहने के लिए कहा क्योंकि इस विषय पर उलझनें से समस्या का कोई समाधान नहीं था।
एक बार किसी परिचित को उसके लगाए हुए पौधे बहुत पसंद आएं । उनमें से कुछ पौधे ऐसे थे जो वहां के वातावरण में आसानी से पनप नहीं पाते थे। उन्होंने उसे यह पौधे आनलाइन बेचने का सुझाव दिया। उनकी बात मान कर उसने और पौधों को बेचना शुरू कर दिया। पहले महीने में उसने 700 रूपये कमाएं। इससे उत्साहित होकर उसने धीरे-धीरे और पौधों को भी बेचना शुरू किया। अब वह लोगों को टेरिस गार्डन और घर के बाहर बगीचे में लगने वाले पौधे भी डिलिवर करने लगा। उसने एक इंस्टाग्राम पेज बनाया था वहां से उसे दूसरे शहरों और जहां तक दूसरे देशों में पौधे निर्यात करने के आर्डर आने लगे।
धीरे धीरे उसकी कमाई 2 साल में तीस से चालीस हज़ार रूपया महीना होने लगी। अपने काम के साथ-साथ उसने अपनी पसंद के विषय में बी ए पास कर ली।
अब सभी पड़ोसी और रिश्तेदार जो पहले उसको माली कहकर उसका मज़ाक बनाते थे। अब उसकी उदाहरण देकर अपने बच्चों को उलाहना देते हैं कि उससे सीखों कैसे पढ़ाई के साथ साथ 30 से 40 हज़ार रूपया कमा रहा है ।तुम लोग तो अभी भी बाप की कमाई पर ऐश करते रहोगे ।
अब पेरेंट्स भी अपने बच्चे पर गर्वित महसूस रहे थे क्योंकि करोना के इस दौर में जब लोगों की कमाई नहीं हो रही थी। वहां उनके बेटे की कमाई कम इनवेस्मेंट में हर महीने बढ़ रही थी और उसके आलोचकों का मुंह बंद हो चुका था।
इसलिए कभी भी किसी को उसकी कमी पर तंज नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर एक बच्चा अलग है। वह लड़का खामोशी से अपनी hobby को कमाएं के जरिए में बदल चुका था। जहां उसके भाई-बहन ऊंची शिक्षा प्राप्त कर नौकरी के लिए भटक रहे थे। वह उस समय बहुत से लोगों को नौकरियां दे रहा था क्योंकि अब उसने पौधों को व्यापक स्तर पर उगाना शुरू कर दिया था। जिसके लिए और लोगों की मदद की जरूरत थी।
शिक्षा - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और स्वयं को कभी भी किसी से कम नहीं आंकना चाहिए क्योंकि ईश्वर हर किसी को कुछ ना कुछ खास हुनर दिया होता है। जरूर बस उसे पहचान कर उस पर मेहनत करनी चाहिए जिससे हम अपने आलोचकों का मुंह बंद कर सकते हैं।
परिंदों को मिलेगी मंज़िल यक़ीनन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं; वो लोग रहते हैं खामोश अक्सर ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं।
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