HANUMAN CHALISA LYRICS WITH MEANING IN HINDI

HANUMAN CHALISA LYRICS WITH MEANING IN HINDI HANUMAN CHALISA QUOTES श्री हनुमान चालीसा लिरिक्स हिंदी अर्थ सहित 

श्री हनुमान चालीसा लिरिक्स हिन्दी अर्थ सहित

हनुमान जी हिन्दू धर्म में प्रमुख देवताओं में से एक है। हनुमान जी भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाते हैं। हनुमान जी के भक्त हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा पढ़ते हैं। तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा की चौपाई में मंत्र तुल्य शक्तियां मानी जाती है। इस आर्टिकल में पढ़ें हनुमान चालीसा हिन्दी अर्थ सहित 

 HANUMAN CHALISA LYRICS WITH MEANING IN HINDI
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
 बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

 भावुार्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि," श्री गुरु के सरोज (कमल) के समान चरणों की रज(धूल) से अपने मन रुपी मुकुल(दर्पण) को पवित्र कर प्रभु श्रीराम के निर्मल गुणों का वर्णन करता हूँ जिससे चारों प्रकार के फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) मिलते है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार।।

 भावार्थ- तुलसीदास जी कहते कि," हे पवन कुमार! मैं आपका सुमिरन करता हूं। आप मुझे बुद्धिहीन और बलहीन जानकर  बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे कष्ट (कलेस) रोग, विकार हर लीजिये।"

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
 जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।

भावार्थ - तुलसीदास जी कहते हैं," कि हनुमान जी आप की जय हो! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं अर्थात आपका ज्ञान अथाह है। हे कपीश्वर! आपने तीनों लोकों को अपनी कीर्ति से प्रकाशित किया है।"

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

भावार्थ - हनुमान जी आप श्री राम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम है । आप को संसार अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम जानता है ।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। 
कुमति निवार सुमति के संगी।।

भावार्थ - हनुमान जी आप महावीर है, आपके अंग वज्र के समान मजबूत है। आप अपने भक्तों की कुमति(खराब बुद्धि ) दूर करते हैं और सुमति(सद्बुद्धि ) वालों के सदा सहायक है।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
 कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

भावार्थ - हनुमान जी आपका रंग कंचन (स्वर्ण) के सामन कांतिवान है और आपके शरीर पर सुन्दर वस्त्र सुशोभित हो रहे है। आपके कानों में कुण्डल सुशोभित है और आपके केसा (बाल) कुंचित (घुंघराले) हैं।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै।।

 भावार्थ - हनुमान जी आपने हाथों में वज्र और ध्वजा धारण किया है। कंधे पर मूंँज का जनेऊ शोभायमान हो रहा है।

शंकर स्वयं केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

भावार्थ - हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार और वानर राज केसरी के पुत्र हैं। आपके तेज और पराक्रम के कारण समस्त संसार आपकी वंदना करता है।

बिद्यावान गुणी अति चातुर।
 राम काज करिबे को आतुर ।।

भावार्थ - आप विद्यावान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं और प्रभु श्रीराम की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
 राम लखन सीता मन बसिया।।

भावार्थ-  हनुमान जी आप प्रभु श्रीराम की कथा सुनने के रसिया हैं अर्थात राम कथा सुनकर आप आनंदित होते हैं। राम लक्ष्मण और सीता सदा आपके ह्रदय में विराजते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।

भावार्थ - हनुमान जी आपने अशोक वाटिका में मां सीता के सामने जाने के लिए अपना सुक्ष्म( छोटा) रूप धारण किया लेकिन लंका दहन करते समय आपने अपना विकराल रूप धारण किया।

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
 रामचन्द्र के काज सँवारे।।

भावार्थ- हनुमान जी आपने भीम( विशाल) रूप धारण करके असुरों का विनाश किया और आपने श्रीराम के कार्यों को पूर्ण किया है।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।

भावार्थ-  जब मेघनाद ने शक्ति का प्रहार कर लक्ष्मण जी को मुर्च्छित कर दिया था तब संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की थी। आपके इस कार्य से हर्षित होकर प्रभु श्रीराम ने आपको उर (हृदय) से लगा लिया था।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

भावार्थ - प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी की बहुत बड़ाई (प्रसंशा)  की। श्री राम प्रसन्न होकर कहने लगे कि हनुमान तुम मुझे भाई भरत के समान अति प्रिय हो।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।

 भावार्थ - सहस (हजार) मुख से तुम्हारे यश का गान सराहनीय है ऐसा कहकर श्रीपति(श्रीराम) ने हनुमान जी को कण्ठ (गले) लगा लिया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।

भावार्थ - हे हनुमान जी आपके यशों का गान तो सनकादिक (श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनदंन , श्री सनत्कुमार) आदि मुनि ऋषि, ब्रह्मा जी आदि देवता, नारद जी, सरस्वती के साथ शेषनाग जी,  मृत्यु के देवता यमराज , धन के देवता कुबेर और दशों दिशाओं के रक्षक दिगपाल भी करने में असमर्थ हैं तो फिर कवि और विद्वान कहां तक आपकी कीर्ति का गान कर सकते। 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
 राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

भावार्थ - हनुमान जी आपने सुग्रीव को श्री राम से मिलाया श्री राम जी की कृपा से ही बालि वध के पश्चात श्री सुग्रीव को किष्किन्धा का राज पद प्रताप हुआ।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

 भावार्थ - हनुमान जी विभिषण ने भी आपका अनुकरण किया और रावण के वध के पश्चात विभीषण लंकेश्वर(लंका के राजा) बन गए इस बात को सारा संसार जानता है।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

 भावार्थ -  हे हनुमान जी आपने बाल्यावस्था में ही हजारों योजन दूर भानू( सूर्य ) को मीठा फल जानकर निगल लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।

भावार्थ- हनुमान जी आप प्रभु श्री राम की मुद्रिका(अंगूठी) को अपने मुख में रखकर विशाल जलधि(समुद्र)) को लाँघ गए थे  इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। 

भावार्थ - इस संसार में जितने भी दुर्गम (कठिन) कार्य हैं वें आपके अनुग्रह (कृपा) से सुगम(सरल) हो जाते है।

राम दुआरे तुम रखवारे।
 होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

भावार्थ - हनुमान जी आप प्रभु  श्री राम के द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात है इसलिए आपकी आज्ञा के बिना कोई भी वहां प्रवेश नहीं कर सकता‌ अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा अति दुर्लभ जान पड़ती है।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डरना।। 

भावार्थ- हनुमान जी आपकी शरण में आने पर सब सुख प्राप्त होते हैं इसलिए आप जिसके रक्षक होते हैं उसे किसी का डर नहीं होता।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।

भावार्थ-  हे बजरंग बली अपने तेज़ को स्वयं आप ही संभाल सकते हैं। आपकी हुंकार से तीनो लोक कांपते हैं।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

 भावार्थ - हे महावीर! हनुमान जी जहां पर आपका नाम लिया जाता है वहां पर भूत पिशाच उसके निकट भी नहीं फटक सकते।

नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

भावार्थ-  हनुमान जी जो निरंतर आपके नाम का जाप करते हैं। आप उनके सभी प्रकार के रोगों को नष्ट और दर्द को हर लेते हैं।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
 मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

भावार्थ- हे हनुमान जी! जो भी मन ,कर्म और वचन से आप का ध्यान करता है उसको सब संकटों से आप बचते हो।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।

भावार्थ-  तपस्वी राजा श्री राम सबसे श्रेष्ठ हैं , उनके समस्त कार्यों का आपने सहजता से सम्पन्न किया है ।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।

भावार्थ- हे हनुमान जी जिस पर आपकी कृपा होती, वह जो भी मनोकामना करे उसे ऐसा फल प्राप्त होता जिसकी कोई सीमा नहीं होती है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।

भावार्थ -  हे हनुमान जी! चारो युगों (सतयुग, त्रेता , द्वापर और कलियुग ) मैं आपका यश फैला है आपके नाम की कीर्ति समस्त संसार में प्रसिद्ध है।

साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।

भावार्थ-  हनुमान जी आप साधु संतों के रखवाले (रक्षक) है, असुरों के निकंदन (संहार) करने वाले हैं और प्रभु श्रीराम के दुलारे (अत्यंत प्रिय)हैं।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।। 

भावार्थ- हनुमान जी आपके पास आष्ठ सिद्धि और नौ निधियां है। आप यह अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों को किसी को भी प्रदान कर सकते हैं ये वरदान आपको जानकी माता ने दिया है।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

भावार्थ -  हनुमान जी राम नाम रूपी रसायन (औषधि) आपके पास है आप अनंत काल तक श्री राम के सेवक रहे।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।। 

भावार्थ - आपके भजन से राम भक्ति प्राप्त हो जाती है जो जन्म जन्मांतर के दुःखों से मुक्ति देने वाली है।

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

भावार्थ - आपका आश्रय लेकर मृत्यु के बाद भगवान श्री राम के धाम को पाया जा सकता है लेकिन फिर भी अगर पुनः जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त के भक्त कहलाएंगे।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

भावार्थ-  किसी और देवता की पूजा न करते हुए भी सिर्फ आपकी कृपा से ही सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

 भावार्थ - हनुमान जी का ध्यान करने वाला व्यक्ति के सभी प्रकार के संकट कट जाते हैं और पीड़ा(दर्द ) समाप्त हो जाती हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

भावार्थ -  हे हनुमान गोसाईं आपकी जय हो! जय हो! जय हो! हनुमान जी आप मुझ पर गुरुदेव के समान कृपा दृष्टि बनाए रखें।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

 भावार्थ - जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है वह सभी प्रकार के बंधनों से छूट जाता है और उसे परमानंद की प्राप्ति होती है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
 होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

भावार्थ -  जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे निश्चित ही सिद्धि की प्राप्ति होती है, इसके साक्षी स्वयं भगवान शंकर हैं।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
 कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

 भावार्थ - तुलसीदास सदैव प्रभु श्रीराम का सेवक है ऐसा विचार कर प्रभु आप मेरे हृदय में डेरा(निवास) करें।

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
 राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।

भावार्थ - हे पवन देव के पुत्र, संकट हरन मंगल मूर्ति रूप हनुमान जी, आप मेरे हृदय में श्री राम लक्ष्मण और सीता सहित निवास कीजिये।

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