SHRI KRISHNA KI MAA YASHODHA KI KATHA JAYANTI IN HINDI

 YASHODHA JAYANTI 2024 KAB HAI SHRI KRISHNA KI MAA YASHODHA KI KATHA PIC PHOTO yasodha jayanti kab kyun kaise manaye jati hai

श्री कृष्ण मां यशोदा जयंती 2024

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार यशोदा जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती हैं। 2024 में यशोदा जयंती 1 मार्च दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।

श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार मां यशोदा और नंद बाबा ने बचपन में श्री कृष्ण का पालन पोषण  किया था। मां यशोदा का वर्णन महाभारत, भागवत महापुराण, विष्णु पुराण आदि हिन्दू ग्रंथों में आता है। मां यशोदा के पिता का नाम सुमुख और माता का नाम पाटला था। उनका विवाह ब्रजराज नंद से हुआ था। वह योगमाया और श्री कृष्ण की माता थी। 
 श्री कृष्ण ने मां  देवकी और वसुदेव जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। कंस के भय से वासुदेव जी श्री कृष्ण के जन्म के पश्चात उन्हें गोकुल छोड़ आये थे। इसलिए बचपन में श्री कृष्ण का पालन पोषण मां यशोदा और नंद बाबा ने किया था। 
श्री कृष्ण भगवान जगत के पालनहार है किन्तु श्री कृष्ण पालन पोषण का सुख माँ यशोदा और  नंद बाबा को क्यों मिला। इसके पीछे उनके पूर्व जन्म की कथा है।

मां यशोदा के पूर्व जन्म की कथा

मां यशोदा पूर्व जन्म में द्रोण नामक वसु ( नंद बाबा) की पत्नी धरा थी।  दोनों पति पत्नी ने कई हजारों वर्षों तक भगवान की तपस्या की। वह दोनों श्री हरि के बाल रुप के दर्शन करना चाहते थे। घोर तप करते हए दोनों ने  खाना- पीना छोड़ दिया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें वर मांगने को कहा।
 द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने वर मांगा कि , " वें दोनों भगवान विष्णु के बाल रुप के दर्शन करने चाहते है, उनकी बाल लीला देखना चाहते है ।" ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। भगवान विष्णु जी ने कृष्ण रुप में अवतार लेने से पहले नंद बाबा और वसुदेव जी का सम्बंधी बना दिया।

MAA YASHODA KI KATHA  /मां यशोदा की कथा 

मां यशोदा ने ब्रह्मा जी के वरदान के फलस्वरूप ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला की कन्या के रूप में जन्म लिया। उन्होंने अपनी पुत्री का नाम यशोदा रखा। यशोदा का विवाह ब्रजराज नंद जी से हुआ। नंद जी पूर्व जन्म में द्रोण थे जिन्हें ब्रह्मा जी ने उनको भगवान की बाल लीला देखने का वरदान दिया था।

कंस के अत्याचार जब मथुरा वासियों पर बढ़ गए। उसने जब देवकी के छः पुत्रों का भी वध कर दिया तो भगवान विष्णु 
 ने योगमाया को आदेश दिया कि तुम सब गोपों और गोओं को साथ गोकुल चली जाओ। जो अंश मां देवकी के गर्भ में स्थापित है उसे वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दें। रोहिणी के पुत्र का नाम संकर्षण होगा। तू स्वयं माता यशोदा के गर्भ में उत्पन्न होना। इस तरह भगवान विष्णु ने योग माया को माँ यशोदा के यहाँ जन्म लेने भेज दिया। 

श्री कृष्ण जन्म के पश्चात जब वसुदेव जी गोकुल पहुंचे तो भगवान की माया से सब गाढ़ी निंद्रा में सो रहे थे। वसुदेव जी ने भगवान को यशोदा के पास सुला दिया और स्वयं योग माया को लेकर बंदीगृह वापिस आ गए।

यशोदा प्रसव की पीड़ा के कारण अचेत हो गई थीं। इसलिए उन्होंने कुछ भेद नहीं जाना । जब उन्होंने आंखें खोली तो अपने पास पुत्र को सोता हुआ पाकर प्रसन्न हुई। 

श्री कृष्ण ने नंद बाबा और यशोदा जी को  गोकुल और वृन्दावन में बहुत सी लीला दिखाई।
कंस को जब पता चला कि उसे मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है तो उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए पुतना , शकटासुर और तृणावर्त को गोकुल में भेजा। जिनको मार कर श्री कृष्ण ने उनका उधार किया। 

मां यशोदा को ब्रह्माण्ड दिखाना 

एक बार खेलते - खेलते श्री कृष्ण ने मिट्टी उठाकर मुंह में रख ली। माँ यशोदा ने देख लिया। माँ ने कान्हा को मुंह खोलने के लिए कहा। जब श्री कृष्ण ने अपना मुंह खोला तो मां यशोदा को पूरा बह्माण्ड दिखाई दिया।जिसे देखते ही मां यशोदा अचेत हो गई।

मां यशोदा द्वारा श्री कृष्ण को ऊखल से बांधना 

एक बार मां यशोदा ने श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर उनको ओखल से बांधना चाहा । श्री कृष्ण की माया से मां यशोदा उन्हें जिस रस्सी से बांधना चाहती वो दो अंगुल छोटी रह जाती। मां यशोदा और रस्सी उसमें जोड़ती तो वह भी दो अंगुल छोटी सी रह जाती ऐसा करते करते उन्होंने घर की सभी रस्सियों को जोड़ दिया लेकिन श्री कृष्ण की माया से हर बार रस्सी दो अंगुल छोटी ही रह जाती।
श्री कृष्ण ने जब देखा कि मां शिथिल हो गई है तो श्री कृष्ण स्वयं उसमें बंध गए। मां यशोदा जब श्री कृष्ण को बांध कर स्वयं अपने काम करने में लग गई तो उन्हें यमलार्जुन वृक्षों का स्मरण आया। श्री कृष्ण ने ओखली को दोनों वृक्षों के मध्य अड़ा दिया। जिससे वृक्ष टूट कर गिर गए। जमलार्जुन के पेड़ों से मनिगृव और  नल कुबेर  नाम के दो यक्ष निकले। दोनों ने श्री कृष्ण की स्तुति कि उन्होंने अनेक वर्षों के बाद उन्हें श्राप से मुक्ति  करवाया है। उसके पश्चात दोनों यक्ष आसमान में चले गए। माँ यशोदा दौड़ कर आई और भगवान को गोद में उठा कर उनकी बलइया लेने लगी।
उसके पश्चात् नंद बाबा और गोकुल के सभी गोप गोपियों ने निश्चय किया कि जहां पर रहना सुरक्षित नहीं है इसलिए वह गोकुल छोड़ कर वृन्दावन आ गए।

श्री कृष्ण द्वारा माखन चुराना 

श्री कृष्ण को माखन बहुत पसंद था वह स्वयं तो माखन खाते हैं अपने दोस्तों की एक टोली बना रखी थी उनको भी वह माखन खिलाते थे। गोपियां श्री कृष्ण को पकड़ कर मां यशोदा के पास उलाहना देने के लिए ले जाती और कहती यह तेरे लला ने मेरा माखन चुराया है। 

कालिया नाग दमन लीला 

कालिया नाग यमुना जी में रहता था। उसके जहर के कारण वृन्दावन के पशु पक्षी जमुना का पानी पीकर मर रहे थे।  श्री कृष्ण ने कालिया नाग का दमन‌ करने के लिए खेलते- खेलते गेंद श्री कृष्ण से नदी में गिरा दी। श्री कृष्ण ने कदंब के पेड़ पर चढ़कर नदी में छलांग लगा दी। कालिया नाग ने उन्हें देखकर उन पर विष फैंकना शुरू किया। श्री कृष्ण ने उसकी पूंछ पकड़कर उसे मारना शुरू किया। नाग कन्याओं की प्रार्थना पर श्री कृष्ण ने उसे छोड़ दिया और फिर यमुना छोड़कर जाने को कहा। जब यमुना के बाहर आए तो कालिया नाग के फन पर नाच रहे थे। इस तरह श्री कृष्ण ने मां यशोदा और नंद बाबा को कालिया नाग दमन की लीला दिखाई।

गोवर्धन पर्वत उठाना

इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने बृज वासियों को इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पूजा करने के लिए कहा। श्री कृष्ण का मानना था गोवर्धन पर्वत के कारण ही उनके पशुओं को चारा मिलता है जिसे खाकर दूध देते हैं। गोवर्धन पर्वत ही बादलों को रोककर बारिश करवाता है। जिसके कारण खेती होती हैं।
इससे इंद्र क्रोधित हो गया और मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी। जिस में सब कुछ बहने लगा तो श्रीकृष्ण ने तब गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर धारण किया। सभी ब्रज वासियों को उसके नीचे आने को कहा और उनकी रक्षा की। जब इंद्र को पता चला कि श्री कृष्ण विष्णु जी के अवतार हैं तो उन्होंने श्रीकृष्ण से माफी मांगी। उसके पश्चात मां यशोदा ने श्री कृष्ण को छप्पन भोजन खिलाएं। तभी से भगवान को छप्पन भोग लगाने की प्रथा चली आ रही है।
इन्द्र देव के क्षमा मांगने के बाद जब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को पुनः स्थापित किया तो श्री कृष्ण का अन्न जल के बिना रहना माँ यशौदा और ब्रज वासियों के लिए बहुत कष्ट प्रद था। 
इस लिए उन्होंने सातवें दिन के अंत में हर दिन के आठ पहर (7×8=56) के हिसाब से 56 व्यंजन बना कर श्री कृष्ण  को भोग लगाया। तब से ही श्री कृष्ण को छप्पन भोग चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई ।

इस तरह श्री कृष्ण ने 11 वर्ष और छः महीने तक मां यशोदा और नंद बाबा को अपनी बहुत सी लीलाओं से अभिभूत किया। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि जो श्री कृष्ण के वात्सल्य का सुख माँ यशोदा को मिला है वैसा कभी भी किसी ओर के लिए नहीं था। 

श्री कृष्ण का मथुरा प्रस्थान 

 नारद जी ने कंस को श्री कृष्ण और बलराम की सच्चाई बता दी। नारद जी कहने लगे कि तुम्हें दोनों भाईयों को मथुरा बुलाना चाहिए।
कंस ने अक्रूर जी को बुलाकर उन्हें श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा लाने का कार्य सौंपा। अक्रूर जी कहने लगे कि मैं सुबह ही वृन्दावन चला जाऊंगा और दोनों भाईयों को यहां ले आउँगा। अक्रूर जी ने नंद बाबा को कंस का संदेश दिया। लेकिन जब अक्रूर जी श्री कृष्ण को  रंग महल ले जाने आए तो माँ यशोदा उन्हें भेजने को तैयार नहीं थी।

श्री कृष्ण ने माँ को बहुत समझाया। योग माया ने भी अपनी माया से माँ यशोदा को भ्रमित करने कोशिश की। लेकिन वह सफल ना हो पाई।  श्री कृष्ण के बिना माँ यशोदा की हालत बुरी सी हो गई थी। उनके मन को शांति तब मिली जब श्री कृष्ण महाभारत युद्ध के पश्चात माँ यशोदा से मिले।

YASHODA JAYANTI KAB AUR KYUN MANAI JATI HAI  

यशोदा जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन मां यशोदा ने ब्रजमंडल में जन्म लिया था। उनके पिता सुमुख नामक गोप और मां का नाम पाटला था। उन्होंने अपनी पुत्री का नाम यशोदा रखा था। इसलिए प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है।

यशोदा जयंती मुख्य रूप से गोकुल में मनाई जाती है क्योंकि श्री कृष्ण ने यहां पर मां यशोदा को अपनी बाल लीला दिखाई थी। इस्कॉन मंदिरों में भी यशोदा जयंती मनाई जाती है।

 इसके साथ-साथ गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है।  

  • यशोदा जयंती के दिन मां यशोदा और श्री कृष्ण के बाल की पूजा की जाती है।

  • मान्यता है कि यशोदा जयंती के दिन श्रद्धा भावना से मां यशोदा  और श्री कृष्ण की उपासना करने  संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। मनोकामनाएं की पूर्ति होती हैं।

  •  माताएं यशोदा जयंती पर व्रत रखकर अपनी संतान की अच्छी सेहत और दीर्घायु और उनके उज्जवल भविष्य के लिए व्रत रखती है।

  •   इस दिन जरूरत मंद बच्चों की मदद करनी चाहिए। यशोदा जयंती का व्रत करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।  

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