भगवद गीता के 1 अध्याय का सार
BHAGWAT GEETA: भगवद गीता के पहले अध्याय का पहला श्लोक धृतराष्ट्र द्वारा बोला गया है। धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि धर्म क्षेत्र कुरूक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया?
दूसरे श्लोक में संजय वेद व्यास जी द्वारा प्राप्त दिव्य दृष्टि से महाराज धृतराष्ट्र को बताते हैं कि युद्ध भूमि में पांडवों की व्यूह रचना को देखकर राजा दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य के पास कूटनीतिक वार्ता के लिए आया। दुर्योधन उनको बता रहा है कि पांडवों का सेनापति धृष्टद्युम्न जोकि द्रोणाचार्य जी का ही शिष्य हैं उसने बहुत अच्छी व्यूह रचना की है। पांडवों की सेना में अर्जुन और भीम के समान बहुत से धनुर्धर और महारथी उपस्थित है।
सातवें से ग्यारवें श्लोक में दुर्योधन कौरवों की ओर से उपस्थित नायकों और महारथियों के बारे में बता रहा है।
बारहवें श्लोक में दुर्योधन का उत्साह बढ़ाने के लिए भीष्म पितामह अपने सिंह की सी गर्जना वाले शंख को बजाते है और ढोल नगाड़े और युद्ध के वाद्य बजने शुरू हो जाते हैं।
उन्नीसवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने अपने-अपने शंख बजाये है। उसके पश्चात पांडवों की सेना में उपस्थित वीरों ने अपने शंख बजाये जिसको सुनकर धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण करने लगे।
इक्सीसवें श्लोक में अर्जुन ने श्री कृष्ण को अपना रथ युद्ध भूमि के मध्य लेकर चलने के लिए कहा क्योंकि वह देखना चाहता था कि उसे किन के साथ युद्ध लड़ना है।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के ऐसा कहने पर उसका रथ दोनों सेनाओं के मध्य लाकर खड़ा कर दिया। भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण तथा संसार के सभी राजाओं के सामने श्री कृष्ण ने कहा हे पार्थ! युद्ध के लिए एकत्रित हुए इन सभी कुरु वंश के सभी लोगों को देखो
उसके पश्चात अर्जुन युद्ध भूमि में युद्ध की इच्छा से आएं अपने ताऊओं-चाचाओं को, पितामह, आचार्यों , मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को देखकर करूणा से अभिभूत हो गया। उसके हृदय में विषाद उत्पन्न हो गया।
अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है कि युद्ध भूमि में अपने स्वजनों को अपने सामने देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं,गला सूख रहा है और शरीर कांप रहा है। मेरा धनुष छूट रहा है। मेरा मन इस समय भ्रमित है।
अर्जुन ने कहा मैं विजय ,राज्य और सुखों की कोई कामना नहीं रखता हूँ। हे गोविन्द! ऐसे राज्य, सुख ,भोग अथवा इस जीवन से क्या लाभ? जिन सबके लिए हम राज्य भोग और सुख की इच्छा करते हैं वें सभी धन और जीवन की आशा त्याग इस युद्ध भूमि में खड़े हैं।कर रथ के आसन पर बैठ गया।
अर्जुन कहता है कि मुझे युद्ध में अपने संबंधियों को मारने में कोई शुभ दिखाई नहीं दे रहा। इस युद्ध में मेरे पितृगण, आचार्य और संबंधी उपस्थित है मैं उनसे युद्ध नहीं करना चाहता फिर भले चाहे वह मुझे युद्ध में मार डाले।
अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं हम बुद्धिमान होकर इस घोर पाप और राज्य और सुख की लालसा में अपने स्वजनों को मारने के लिए तत्पर हैं। यदि मुझ निशस्त्र तथा रणभूमि में विरोध न करने वाले को धृतराष्ट्र के पुत्र मार भी डाले वह मरना मेरे लिए उचित है।
पहले अध्याय का अंतिम और सैंतालीसवां श्लोक संजय ने बोला है। संजय धृतराष्ट्र को बता रहे हैं कि ऐसा कह कर अर्जुन अपने धनुष और बाणों को एक ओर रख कर शोक से उद्विग्न हो
FAQ
प्रश्न - भगवद् गीता का पहला श्लोक किसने बोला है?
उत्तर - भगवद् गीता का पहला श्लोक धृतराष्ट्र ने बोला है।
प्रश्न - भगवद् गीता के पहले अध्याय का आखिरी श्लोक किसने बोला है?
उत्तर - भगवद् गीता के पहले अध्याय का अंतिम श्लोक संजय ने बोला है।
प्रश्न - भगवद् गीता के पहले अध्याय में कुल कितने श्लोक है?
उत्तर - भगवद् गीता के पहले अध्याय में कुल 47 श्लोक है।
प्रश्न - भगवद् गीता के पहले अध्याय में श्री कृष्ण के कितने श्लोक है?
उत्तर - भगवद् गीता के पहले अध्याय में श्री कृष्ण ने केवल 25वां श्लोक बोला है।
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