कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित
संत कबीर एक रहस्यवादी कवि, समाज सुधारक संत कबीर जी के दोहे वर्तमान समय में भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं। कबीर जी के दोहे अर्थ सहित
Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
भावार्थ - इस दोहे में कबीर जी गुरु की महत्ता बताई रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि," जब कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आ जाए जब मेरे सम्मुख गरू और गोविन्द (ईश्वर) दोनों खड़े हैं उस समय मुझे किसके चरण पहले स्पर्श करने चाहिए। लेकिन वह गुरु को अधिक महत्व देते हुए कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर बलिहारी हूं क्योंकि उन्होंने ही मुझे ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दिखाया है। इसलिए गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होए।
भावार्थ - इस दोहे में कबीर दास जी विनम्रतापूर्वक वाणी बोलने का महत्व बता रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि,"हमें ऐसी बोली बोलनी चाहिए कि सुनने वाले के मन को आनंदित करें अर्थात सुनने वाले को सुख का आभास हो। वाणी ऐसी होनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को सुखद अनुभूति करवाएं और हमे स्वयं भी शीतलता की अनुभूति हो।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
भावार्थ - इस दोहे में संत कबीर जी कहते कि हैं कि," जब मैं दुनिया में दूसरों के दोष ढूँढने निकला तो मुझे कोई नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने दिल के भीतर झाँका तो मुझे ऐसे लगा कि जैसे मुझे से बुरा इंसान कोई नहीं है।" अक्सर होता है कि हम सब दूसरों के गुण दोष ढूँढने में लगे रहते हैं लेकिन अपनी कमियों की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते। लेकिन जब हम ध्यान से देखते हैं तो हमें अहसास होता है कि हम में उनसे भी ज्यादा दोष है।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।
भावार्थ - इस दोहे में कबीर दास जी निंदा करने वाले की बड़ाई कर रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि, हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने आंगन में कुटिया बनाकर कर निकट रखना चाहिए क्योंकि वह हमारे अवगुण बिना साबुन और पानी के निर्मल कर देते हैं।
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस ना होये।
भावार्थ- कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि," जंत्र - मंत्र आदि सब झूठी बातें हैं। इससे बुद्धि भ्रमित हो जाती है। इसलिए इन सब बातों से संसार को भ्रमित नहीं होना चाहिए। जब तक शब्द का ज्ञान नहीं तब तक मनुष्य ज्ञानी नहीं हो सकता अर्थात जीवन के मूल तत्व और मंत्र को जाने बिना कौवा कभी भी हंस नहीं बन सकता है।
धुवन कासा धरहरा, बिनसत लागे ना बार।
भावार्थ - इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि,"ईश्वर की भक्ति के बिना इस संसार में जीवन को धिक्कार है। यह संसार ऐसे धुएँ का घर है जिसका किसी भी क्षण नाश हो सकता है।"
मोहि भरोसा इस्ट का, बंदा नरक ना जाय।
भावार्थ- इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति राम नाम की ओर आकर्षित हो जाते है। वह दुनियावी इच्छाओं से दूर हो जाते है। कबीर जी आगे कहते हैं कि मुझे विश्वास है कि अपने इष्ट-भगवान के कारण अब वह नरक कभी नहीं जायेगे।
आतम पूजा जीव दया लहै ,सो मुक्ति अमान।
भावार्थ- इस दोहे में कबीर जी कहते है कि जो व्यक्ति राम नाम का सुमिरन करता है और अपने सदगुरु के चरणों का ध्यान करता है, जो अपनी आत्मा से परमात्मा का पूजन करता तथा सभी जीवों पर दया भाव रखता है उसे निश्चय हीं मुक्ति प्राप्त होती है।
उत्तम प्रीति सो जानिय, राम नाम से जो होय।
भावार्थ- इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि," इस संसार में अनेकों प्रकार के प्रेम होते हैं। मनुष्य बहुत सारी चीजों से प्रेम करते हैं लेकिन सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रेम वह है जो राम के नाम से किया जाता है।"
शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
भावार्थ- कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि यह शरीर एक विष से व्याप्त पौधे के सामान है और गुरु अमृत की खान है और गुरु रूपी अमृत ही जिसे स्वच्छ कर सकता है। इसलिए अगर गुरु रूपी अमृत को प्राप्त करने के लिए यदि अपने जीवन का भी त्याग करना पड़े तो भी यह सौदा सस्ता ही जानना चाहिए
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।
भावार्थ - कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि जब मैंने चलती हुई चक्की देखी तो मुझे रोना आ गया क्योंकि दो पत्थरों के घर्षण के कारण गेहूं के दाने टूट कर पिस कर आटे में बदल चुके थे। वैसे ही हम मनुष्य माया रूपी संसार की मोह रुपी चक्की में फंसे हुए हैं और कोई भी इस से बच नहीं सकता।
पर में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।
भावार्थ - कबीर दास जी इस दोहे में समय के महत्व के बारे में समझाते हुए कहते हैं कि कभी भी अपने कामों को करने के लिए टालमटोल मत करो। जो कार्य कल करना है उसे आज ही कर लो और जो आज करना है उसे अभी कर लो। क्योंकि क्या पता अगले ही पल प्रलय आ जाए और जीवन समाप्त हो जाए। इस दोहे में कबीर जी समय के महत्व को समझा रहे हैं कि अपने कामों को कभी भी टालना नहीं चाहिए आने वाला समय कैसा होगा कोई नहीं जानता।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।
भावार्थ - इस दोहे में कबीर जी धैर्य के महत्व को समझा रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि हमें धैर्य पूर्वक नियमित रूप से अपने काम करते रहना चाहिए और समय आने पर ही उसके परिणाम प्राप्त होंगे जल्दबाजी से कुछ नहीं होगा। जैसे एक माली चाहे वृक्ष को सौ घड़े पानी से सींचे लेकिन उस वृक्ष पर फल ऋतु के आने पर ही लगता है वैसे ही मनुष्य को धैर्य से मेहनत करते रहना चाहिए उचित समय पर उसे स्वत: फल प्राप्त हो जाएगा।
जा मुखराम न उच्चार, ता मुख फेर कहावै ।।
भावार्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि, आप को जो भी मिले उस से राम राम कहे जिससे सामने वाला भी परमात्मा का नाम लेगा। लेकिन अगर कोई अपने मुख से राम नाम का उच्चारण नहीं करता तो उसे फिर से राम राम कहे जिससे सामने वाला जरुर बोलेगा
बिन रोये कित पाईये, वह प्रेम प्यारा मीत ।।
भावार्थ -कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को प्राप्त करना है तो संसारिक मोह-माया को छोड़कर प्रभु के वियोग में रोने की सीख ले। जब तुम्हारे अंदर ईश्वर को पाने की व्याकुलता प्रकट होगी तब समझ लेना तुम्हारा काम बन जाएगा।
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