JAYA EKADASHI 2023
WEDNESDAY, 1 FEBRUARY
एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। पद्म पुराण के अनुसार जया एकादशी व्रत करने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं और भूत प्रेत की योनि में जाने का भय नहीं रहता। इस में भगवान श्री कृष्ण के केशव रूप की पूजा की जाती है।
जया एकादशी व्रत महत्व
इस व्रत को करने से भूत प्रेत पिशाच की योनि में जाने का भय समाप्त हो जाता है और पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से कठिन से कठिन कार्य भी सम्पूर्ण हो जाते हैं। जया एकादशी व्रत ब्रह्महत्या के दोष से भी मुक्ति देता है। इस दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान करना फलदायी होता है।
जया एकादशी व्रत कथा( JAYA EKADASHI VRAT KATHA )
एक बार इंद्र देव स्वर्गलोक में अप्सराओं और गंधर्वों का नृत्य देख रहे थे और गान सुन रहे थे।
वहां पर पुष्पावती नाम की अप्सरा माल्यवान को देखकर मोहित हो गई । उसने माल्यवान को अपने सौंदर्य से अपने वश में कर लिया। माल्यवान उस पर मोहित हो गया। इंद्रदेव के बुलाने पर उन्हें नृत्य और गायन के लिए आना पड़ा लेकिन गायन में उनका मन नहीं लग रहा था। दोनों अशुद्ध गायन और नृत्य कर रहे थे .
इंद्रदेव ने इसे अपना अपमान समझा और श्राप दिया कि तुम दोनों मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करके रहो और अपने कर्मों का फल भोगों।
इंद्रदेव के श्राप के प्रभाव से वह हिमालय पर्वत पर पिशाच बन कर जीवन व्यतीत करने लगे। पिशाच योनि में दुःख सहते जब बहुत समय बीत गया तो एक दिन देवयोग से माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन दोनों ने भोजन ग्रहण नहीं किया और ना ही कोई पाप कर्म किया। सर्दी के कारण उन्हें रात्रि नींद भी नहीं आई ।प्रातः दोनों की पिशाच देह छूट गई और दोनों ने सुंदर वस्त्र आभूषण धारण कर स्वर्ग लोक में प्रस्थान किया और वहाँ जाकर देवराज इंद्र को प्रणाम किया।
देवराज इंद्र ने पूछा कि दोनों ने पिशाच देह से छुटकारा कैसे पाया ? माल्यवान ने कहा कि ,"जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमारी पिशाच देह छूट गई।" इंद्रदेव ने खुश होकर बोले कि जया एकादशी के प्रभाव के कारण आप दोनों पिशाच देह छूट गई इसलिए आप दोनों वंदनीय हैं। अब आप जाकर पुष्पावती के साथ विहार करो।
इस तरह जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं उनकी बुरी योनि छूट जाती है। जया एकादशी का व्रत करने वाले स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं।
व्रत विधि
एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए।
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है।
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।
भगवान विष्णु और श्री कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए।
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए।
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है।
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात व्रत का पारण करे।
एकादशी माता की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी माता॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी माता॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी माता॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी माता॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी माता॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी माता
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