Motivational Stories in hindi

MOTIVATIONAL STORIES IN HINDI मोटिवेशनल स्टोरीज इन हिंदी BEST MOTIVATIONAL STORIE IN HINDI

मोटिवेशनल स्टोरीज इन हिंदी

मोटिवेशनल कहानियां हमें प्रेरणा देती है। कहानियां से हमें जीवन के बहुत से सबक सीखने को मिलते हैं। Motivational Stories हमें व्यवहार कुशल बनाती है। हमें जीने की नई दिशा प्रदान करती है। पढ़ें प्रेरणादायक कहानियां जो जीवन में हमें कैसे चीजों को परखना है और स्वयं की पहचान क्यों जरूरी है इसकी शिक्षा देती है। 

BEST MOTIVATIONAL STORIES IN HINDI

अपनी कीमत पहचानो

motivational story in hindi: एक बार एक व्यक्ति सभी की मदद करता था और उसके बदले सब लोग उसकी तारीफ करते थे। अपनी तारीफ सुनकर उसे खुशी मिलती थी। एक बार वह चौराहे से जा रहा था तो उसने सुना कि कुछ लोग उसकी निंदा कर रहे थे। वें कह रहे थे कि," यह जो सबकी मदद करता है यह दिखावे के लिए ही करता है, इसमें जरूर इसका कोई स्वार्थ होगा।"

अपनी निंदा सुनते ही उसका मन व्यथित हो गया कि मैं सबकी कितनी मदद करता हूं लेकिन फिर भी लोग मेरी निंदा कर रहे हैं। इस जीवन का क्या लाभ ? इससे अच्छा तो मुझे मर जाना चाहिए।

उसकी इस बात से उसके परिवार वाले और मित्र काफी परेशान हो गए। वह उसे समझाते कि तुम लोगों की बातों पर ध्यान ना दो हम सब तुम से बहुत प्यार करते हैं। तुम जैसे भी हो बहुत अच्छे हो। लेकिन नकारात्मकता उसके मन में बस चुकी थी उसे बस यही लगता था कि मेरा जीवन व्यर्थ है।

उसके मित्र ने उसे अपने गुरु के पास भेजा। उसने गुरुदेव से भी यही सवाल किया कि ,"इतनी मदद करने के बाद भी अगर लोग हमारी निंदा कर रहे हैं तो, इस जीवन का क्या अर्थ है ?"

गुरुदेव ने उसके सवालों का कोई जवाब नहीं दिया और कहने लगे कि," तुम सबकी मदद करते हो तो मेरी भी मदद कर दो। यह पत्थर ले जाओ और इसका मूल्य बाजार से एक-एक दुकान से लगवा कर लाओ। लेकिन याद रखना तुम्हें इस पत्थर का केवल मुल्य लगवाना है इसे बेचना नहीं। बेमन से वह पत्थर लेकर बाजार चला गया।

  एक सब्जी वाले को पत्थर दिखाया तो वह कहने लगा कि," इसके बदले में मैं तुमको एक किलो सब्जी दे दूंगा क्योंकि यह पत्थर हल्की सब्जी तोलने के काम आ जाएगा। 

कुम्हार के पास गया तो वह कहने लगा कि," मेरे पास तो आगे इतने कंकर पत्थर पड़े हैं मैं इनका क्या करूंगा ?"

बनिए के पास गया तो वह कहने लगा कि," इसके बदले मैं तुम्हें कुछ राशन दे सकता हूं।" इसी तरह किसी ने पत्थर का मूल्य एक सिक्का और किसी ने दो सिक्के से ज्यादा नहीं डाला।

 सभी दुकानों पर जाने के पश्चात हो आखिर में वह एक जौहरी की दुकान पर गया और जौहरी को पत्थर दिखाया। जौहरी पत्थर देखते ही चकित रह गया। वह ध्यान से देखकर बोला कि," इस पत्थर को खरीदने की मेरी औकात नहीं है। मेरी पूरी दुकान भी बिक जाए तो भी मैं यह पत्थर नहीं खरीद सकता। यह सुनकर वह व्यक्ति आश्चर्य चकित था कि यही पत्थर जो सबको बेकार सा लग रहा था उस जौहरी ने तो उसे बहुमुल्य बता दिया।

 उसने सारी बात गुरुदेव को बताई। गुरुदेव कहने लगे कि," वह जौहरी ठीक कह रहा था इस पत्थर बहुमूल्य पत्थर है। जो मुझे एक बार राजा ने दिया था ।

मैं बस तुम्हें यही समझाना चाहता था कि और तुम्हें अपनी कीमत की स्वयं पहचान करनी होगी। जैसे यह बहुमूल्य पत्थर बाकी सबके लिए बेकार था इसकी  कीमत केवल एक जौहरी ही पहचान पाया बाकी सब के लिए यह पत्थर या तो व्यर्थ था या फिर उन्होंने इसका मुल्य बहुत कम आंका था।

 इसलिए तुम्हारा जीवन भी इस पत्थर की तरह है तुम्हारा परिवार और मित्र इसकी असली कीमत जानते हैं। तुमको अगर किसी की मदद करनी है तो निस्वार्थ भाव से करो किसी की प्रशंसा या फिर निंदा से तुम को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए तुम अपनी कीमत में पहचानो और दूसरों की बातों में आकर अपने लक्ष्य से मत भटकों।

moral- यह कहानी हमें यही शिक्षा देती है कि स्वयं को स्पेशल समझ कर जीना शुरू करो क्योंकि ईश्वर कोई भी चीज फालतू नहीं बनाते‌। इसलिए जरूरत केवल स्वयं को पहचानने की है।

कई बार आंखों देखी बात भी पूर्ण सत्य नहीं होती 

Best motivatoinal story in hindi :एक बार एक राजा के तीन पुत्र थे राजा अपने पुत्रों को व्यवहार कुशल बनाने के लिए कोई ना कोई कार्य देता रहता था ताकि उसके बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान हो सके। राजकुमार आने वाले समय में पूरी कुशलता के साथ शासन संभाल सके।

 एक बार राजा ने अपने तीनों पुत्रों से कहा कि," हमारे राज्य में कोई नाशपाती का पेड़ नहीं है। मैं चाहता हूं कि तुम तीनों जाकर नाशपाती का पेड़ ढूंढ कर आओ। वहां से लौट कर मुझे बताना कि नाशपाती का पेड़ कैसा दिखता है?"

 लेकिन मेरा एक शर्त है कि तुम तीनों चार-चार महीने के अंतराल में नाशपाती का पेड़ देखने जाओगे और जब तुम तीनों उस पेड़ को देखकर आओगे फिर उसके पश्चात में 3 दिनों से एक साथ सवाल पूछूंगा।

 तीनों राजकुमार चार-चार मास के अंतराल में नाशपाती का पेड़ ढूंढने गए। नाशपाती का पेड़ दूसरे राज्य की सीमा में था। बारी बारी से तीनों पेड़ का निरिक्षण कर वापिस लौट आएं।

जब तीनों राजकुमारों ने नाशपाती का पेड़ देख लिया तो राजा ने तीनों को बुलाया। राजा ने तीनों से पूछा कि," बताओ नाशपाती का पेड़ कैसा दिखता है?"

सबसे बड़ा राजकुमार कहने लगा कि," पिताजी नाशपाती का पेड़ एकदम से रुखा सुखा बिना पत्तियों का पेड़ है। तभी मझले राजकुमार ने उसको टोकते हुए कहा कि ," पिता जी नाशपाती का पेड़ तो पत्तियों के साथ हरा भरा था। बस उसमें एक ही कमी थी उसमें कोई फल नहीं था। सबसे छोटा राजकुमार ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा कि," भैया यह आप क्या कह रहे हैं?" नाशपाती का पेड़ तो फलों से भरपूर था आप जरूर कोई और पेड़ देखकर आए हो। इस बात को लेकर तीनों राजकुमार बहस करने लगे।

राजा ने तीनों को शांत कराते हुए कहा कि," तुम तीनों ही नाशपाती के पेड़ का सही वर्णन कर रहे हो। मैंने जानबूझ कर तुम तीनों को अलग-अलग मौसम में नाशपाती का पेड़ ढूंढने भेजा था क्योंकि मैं उसके माध्यम से तुम तीनों को शिक्षा देना चाहता था। नाशपाती के पेड़ से तुमको तीन शिक्षा मिलती हैं।

पहली शिक्षा किसी भी चीज के लिए एक बार में अपनी धारणा नहीं बनानी चाहिए। उसका अच्छे से अवलोकन करना चाहिए। क्योंकि आंखों देखी चीज भी कई बार पूरी सत्यता बयान नहीं करती। जैसे कि सबसे बड़े राजकुमार ने बिना पत्तों के पेड़ को देखा तो इसलिए उसे लगा नाशपाती का पेड़ बिना पत्तों के होता है। मझले राजकुमार ने बिना फलों के देखा उसे लगा कि उसमें फल नहीं होते और छोटे राजकुमार ने फलों से भरपूर पेड़ को देखा तो उसे लगा कि शायद यह पेड़ सदा ऐसा ही रहता है।

दूसरी शिक्षा जीवन कभी एक सा नहीं रहता।  जैसे पेड़ के अलग-अलग मौसम में तुम लोगों ने तीन रूप देखें। जब पहला राजकुमार गया तब पतझड़ थी और पेड़ एकदम सूखा। जब दूसरा राजकुमार गया तो मौसम बदल चुका था और पेड़ एकदम हरा भरा था। जब छोटा राजकुमार गया तो पेड़ फलों से लदा हुआ था। वैसे ही जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं बुरा समय आने पर धैर्य रखें कि यह समय गुजर जाएगा और अच्छा समय फिर लौट आएगा।

सबसे बड़ी सीख कभी भी बिना पूरा सत्य जाने अपनी बात पर अड़े नहीं रहना चाहिए। दूसरों की भी बात सुननी और समझनी जरूरी है। तभी हमें किसी चीज़ का पूर्ण ज्ञान हो सकता है यह दुनिया ज्ञान से भरी पड़ी है यदि हम धैर्य से दूसरे को सुनेगे तभी हम उस ज्ञान का लाभ ले पाएंगे।

 ईश्वर का आभार प्रकट करे

motivationa story in hindi:एक बार कबूतर रेगिस्तान से गुजर रहा था। वहां उसने एक पक्षी को देखा जो उड़ नहीं सकता था, उसके आसपास खाने के लिए कोई पेड़ नहीं था, पीने के लिए पानी नहीं था। उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी।

 पक्षी ने कबूतर से पूछा कि आप कहां जा रहे हैं? उसने कहा कि ,"मैं देवदूत से मिलने जा रहा हूँ।"

पक्षी ने उनसे विनती की कि आप उनसे पूछना कि," मेरे दुःख और कष्ट कब समाप्त होंगे?"

 कबूतर ने वहां पहुंच कर देवदूत को पक्षी की दयनीय स्थिति के बारे में बताया और पूछा उसे कष्टों से मुक्ति कब मिलेगी?

 देवदूत कहने लगे कि," वह पक्षी अपने पिछले जन्म के कर्मों का फल भुगत रहा है। आने वाले सात साल तक उस पक्षी के लिए कष्ट लिखा है।"

 यह सुनकर कबूतर ने कहा - यह सुनकर वह पक्षी हताश हो जाएगा और उसकी जीने की इच्छा समाप्त हो जाएगी। इसलिए कोई ऐसा उपाय बताए जिससे उस पक्षी में जीने की उम्मीद जाग जाए।

 देवदूत कहते हैं कि,"उस पक्षी से कहना कि चाहे कितनी भी कष्ट‌ कारक परिस्थितियां हो उसे हर परिस्थिति में कहना कि ईश्वर तेरा धन्यवाद।" कबूतर यह संदेश पक्षी को दे देता।

कबूतर कुछ दिनों पश्चात पुनः उस रेगिस्तान से गुजर रहा था तो वहां का नजारा देखकर वह विस्मित हो गया। उस पक्षी के पंख निकल आएं थे, वहां पानी का छोटा सा तालाब बन गया था, वहां एक एक छोटा सा हरा भरा पौधा उग आया था। पक्षी बहुत प्रसन्न लग रहा था। यह सबकुछ देखकर कबूतर सीधा देवदूत के पास पहुंचा।

 कबूतर ने उनसे पूछा - आपने तो कहा था कि उस पक्षी के अगले सात जन्म कष्टकारी है लेकिन मैं जो नज़ारा देखकर आया हूं वह तो उसके विपरीत है। कबूतर ने पूछा- कृपया मुझे बताएं यह सब कुछ कैसे संभव हुआ?

देवदूत ने कहा- जब तुम ने उस पक्षी से बोला कि अपनी हर परिस्थिति के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहना तो उसने उसी क्षण से वैसा करना शुरू कर दिया। 

अगर वह गर्म रेत में गिर जाता तब भी वह कहता कि ईश्वर तेरा धन्यवाद। शायद तुमने इसमें मेरे लिए कुछ अच्छा सोच रखा है।‌ पक्षी के पास आश्रय नहीं था तब भी उसने कहा ईश्वर तेरा धन्यवाद। जहां तक कि प्यास लगने पर पानी नहीं था और भूख लगने पर खाने को भोजन नहीं था, फिर भी उसने कहा ईश्वर तेरा धन्यवाद। हे ईश्वर! इन सब परिस्थितियों के बावजूद मैं जिंदा हूं उसके लिए आपका धन्यवाद।‌ 

ऐसा करने पर उसमें सकारात्मक ऊर्जा जागृत हो गई और उसमें जीवन की चाह बरकरार रही। वह हर परिस्थिति का सामना करने को तैयार था।‌ उसने अपनी हर परिस्थिति के लिए ईश्वर का धन्यवाद किया जिससे उसके सात साल के कष्ट कुछ ही दिनों में समाप्त हो गए।‌ इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को किए गए शुकराने में बहुत ताकत होती है। क्योंकि हम जो पूरा जीवन नहीं कर सकते वह ईश्वर क्षण भर में कर सकते हैं।‌ 

शिक्षा - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि सदैव ईश्वर का आभार व्यक्त करे। जहां हमारी हर कोशिश खत्म हो जाती है वहां उसकी रहमत शुरू हो जाती है। 

जैसा करोगे वैसा भरोगे 

Motivational story in hindi:एक बार एक व्यापारी की राजा के साथ बहुत अच्छी मित्रता थी। एक दिन व्यापारी ने राजदरबार के सभी सदस्यों को अपने घर पर दावत के लिए बुलाया। लेकिन एक सफाई कर्मचारी गलती से राजदरबारी की कुर्सी पर बैठ गया। 

उस व्यापारी ने उस सफाई कर्मचारी की बहुत बेइज्जती की। व्यापारी कहने लगा कि," मैं तुम्हें राजमहल से बाहर निकलवा सकता हूं।"

इस बात ने उसके मन-मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव डाला। उसने व्यापारी से बदला लेने की सोची। एक दिन जब राजा नींद में थे तो वह ज़ोर ज़ोर से उस व्यापारी का नाम लेकर बड़बड़ाने लगा कि उसे रानी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। यह सुनकर राजा ने उससे पूछा यह क्या बोल रहे थे? 

वह कर्मचारी बोला - महाराज मुझे नींद में बड़बड़ाने की आदत है अगर मैंने गलती से कुछ ग़लत बोल दिया है तो उसके लिए कृपया मुझे क्षमा करें।

लेकिन राजा के मन में व्यापारी के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया।राजा ने व्यापारी के सभी अधिकार वापस ले लिये। उसके महल में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वह व्यापारी हतप्रभ था, उसके साथ अचानक ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है?

तभी वहां खड़ा सेवादार दूसरे को कहने लगा कि," तुम जानते हो कि इनके पास इतने अधिकार है कि यह किसी को भी महल से बाहर निकलवा सकते हैं।" उस सेवादार के मुंह से ऐसे वचन सुनकर व्यापारी समझ गया कि इसके पीछे कौन है?

उसने उसी दिन उस सेवादार को अपने घर पर बुलाया और उसे भोजन करवाया और वस्त्र उपहार में दिये और अपने पहले किए गए बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगी।

व्यापारी से मिले इस सम्मान से वह सेवादार प्रसन्न हुआ और व्यापारी को आश्वस्त किया कि मैं तुम्हारा खोया हुआ सम्मान वापस जरूर दिलाऊंगा। 

अगले दिन जब वह राजा के कक्ष था तो ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा कि राजा मूर्ख है वह स्नानागार में खीर खाता है। उसी समय राजा की नींद खुल गई। राजा ने उस सेवादार को फटकारते हुए कहा कि यह तुम क्या अनाप-शनाप बोल रहे हो। 

सेवादार ने क्षमा मांगने हुए कहा कि महाराज मुझे नींद आ गई थी और आप तो जानते हैं कि मुझे नींद में बड़बड़ाने की बुरी आदत है। 

राजा ने उसे अगली बार काम पर ध्यान देने और दोबारा काम के समय ना सोने की चेतावनी देते हुए माफ़ कर दिया। अब राजा को लगा कि यह सेवादार तो कुछ भी बोलता है। मैंने ऐसे ही उसके नींद में बड़बड़ाने पर उस व्यापारी के अधिकार छीन लिए। राजा ने उसी दिन उस व्यापारी को सभी अधिकार कर दे दिये। 

सच ही कहते हैं कि हम किसी के साथ जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही हमारे पास लौट कर वापस आता है। 

लालच का कुआं

Best motivational story in hindi:एक बार एक राजा के दरबार में इस बात की चर्चा हुई कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें व्यक्ति एक बार गिरता है तो बाहर नहीं आ पाता। कोई भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया। राजा ने अपने राज्य के राज पंडित जी को आदेश दिया कि सात दिन में इस प्रश्न का उत्तर बताओ नहीं तो आपको राज्य से निकाल दिया जाएगा। 

राज पंडित बहुत परेशान हुए क्योंकि वह इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते थे। छः दिन बाद भी जब उनको उत्तर नहीं मिला तो वह परेशानी में जंगल की तरफ चले गए। 

वहां पर उनको एक गड़रिया मिला। उसने राज पुरोहित को पहचान लिया। गड़रिए ने उनसे परेशानी का कारण पूछा। राज पंडित ने पूरी बात उस गड़रिए को बता दी कि अगर मैं कल तक प्रश्न का उत्तर नहीं ढूंढ पाया तो मुझे इस नगर से निष्कासित कर दिया जायेगा। 

गड़रिया बोला कि मेरे पास पारस पत्थर है उससे आप जितना चाहे उतना सोना बना सकते हो। फिर आपको राजा के पास वापस जाने की अवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

लेकिन उसके लिए आपको मुझे गुरु बनाना होगा। पंडित जी विचार करने लगे कि यह मामूली सा गड़रिया मेरा गुरु बनेगा। लेकिन पारस पत्थर के लालच में उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया। 

फिर गड़रिया बोला शिष्य बनने से पहले आपको मेरी भेड़ का दूध पीना होगा। पंडित जी सोचने लगे कि भेड़ का दूध पीऊंगा तो मेरी बुद्धि मारी जायेगी। इसलिए उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। 

गड़रिया बोला ठीक है मैं फिर पारस पत्थर का पता नहीं बताऊंगा। यह सुनकर पंडित जी भेड़ का दूध पीने को भी तैयार हो गए। अब गड़रिया बोला - पहले दूध में पीऊंगा फिर आपको दूंगा।

पंडित जी नाराज़ होते हुए बोले ,"क्या मैं एक पंडित होते हुए गड़रिए का झूठा पिऊंगा?"

 गड़रिए ने कहा - ठीक है। मैं पारस पत्थर का पता नहीं बताऊंगा। पंडित जी तुरंत मान गए। 

गड़रिया बोला - सामने जो मरे हुए मनुष्य की खोपड़ी पड़ी है मैं पहले उसने भेड़ का दूध दुहूंगा। उसको झूठा करूंगा, फिर कुत्ते से चटवाऊंगा उसके पश्चात आपको दूंगा। 

पारस पत्थर की चाहत में पंडित जी गड़रिए की हर एक बात को मानने के लिए तैयार हो गए। गड़रिया बोला पंडित जी आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया। पंडित जी आश्चर्य से गड़रिए की ओर देखने लगे। 

गड़रिया बोला - लालच ही ऐसा कुआं है जिसमें व्यक्ति एक बार गिरता है तो व्यक्ति कभी वापस नहीं आ पाता। पारस पत्थर की तृष्णा में आपने मनुष्य की खोपड़ी में कुत्ते से चटवाया, मेरा झूठा, भेड़ का दूध  पीना तक स्वीकार कर लिया और तो और आपने तो मुझे अपना गुरु तक बनाना स्वीकार कर लिया था। इसलिए लालच ही ऐसा कुआं है जिससे मनुष्य कभी बाहर नहीं निकल सकता। 

लालच में आप इतने अंधे हो गए थे कि आपको सब कुछ उचित लग रहा था। आपने अपने पद‌ प्रतिष्ठा सब को भूलकर पारस पत्थर के लालच में मेरी हर उचित अनुचित मांग को स्वीकार किया। पंडित जी को अब राजा के प्रश्न का उत्तर मिल चुका था। 

Moral - यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच में व्यक्ति अपना स्वाभिमान में भूल जाता है। उसे उचित अनुचित का भी कोई आभास नहीं रहता।

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