SAKAT CHAUTH VRAT KATHA AARTI VIDHI

संकट चौथ कब है सकट चौथ व्रत कथा आरती विधि सहित महत्व

संकट चौथ व्रत कथा

संकट चौथ व्रत  माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि रखा जाता है। साल में 12 बार कृष्ण पक्ष में संकट चौथ का व्रत आता है लेकिन माघ मास की संकट चौथ का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व माना गया है। इस दिन को तिलकुट चौथ, वक्रतुंड चौथ, मांगी चौथ और संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। यह व्रत स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घ आयु और सुख समृद्धि के लिए रखती है। इस दिन गणेश जी के साथ साथ चौथ माता की भी पूजा अर्चना की जाती है। 

संकट चौथ व्रत का महत्व

सकट चौथ व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। संकट चौथ के दिन गणेश जी का सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है।  गणेश जी को विध्न विनाशक कहा जाता है। संकट चौथ पर गणेश जी का व्रत रखने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। यह व्रत मां अपने संतान की दीर्घायु और सुख की कामना के लिए रखती हैं। रात को चंद्रमा को  गुड़, तिल और जल का अर्ध्य देने के बाद व्रत खोला जाता है और तिल, गुड़ ,शकरंद और फल का भोग लगाकर पारण करते हैं। इस व्रत को करने से विध्न बाधाएं दूर होती है। सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

संकट चौथ व्रत कथा

यह कुम्हार था। उसका आवा नहीं पकता था ।उसने अपनी समस्या राजा से बताई और राजा से समाधान करने के लिए कहा। राजा ने कई विद्वानों से इसका कारण पूछा। उन्होंने बताया कि अगर कोई ब्राह्मणी जिसका एक पुत्र हो अगर वह उसके बालक की बलि दी जाए तो आवा पक जाएगा।

उस नगर में एक ब्राह्मणी थी जिसका केवल एक ही पुत्र था। राजा का यह संदेशा लेकर मंत्री ब्राह्मणी के पास गया। ब्राह्मणी  सोचने लगी कि," राजा की आज्ञा के आगे मेरा कोई वश नहीं है। मुझे अपना पुत्र भेजना ही पड़ेगा।" इसलिए उसने अपने पुत्र को ले जाने की अनुमति दे दी।

जाने से पहले उसने अपने पुत्र को तिल दिए और कहा कि जहां तुझे बिठाए वहां आसपास सारे बिखेर देना और गणेश जी का ध्यान करते रहना। जब आवा लगाया गया वहां सबसे नीचे पहले ब्राह्मणी के लड़के को बिठाया गया और उसके ऊपर फिर आवा लगा कर आग जला दी गई। कुम्हार का आवा पक गया लेकिन राजा के मन में गिलानी थी कि मेरे कारण ब्राह्मणी के पुत्र की बलि दी गई।

उस आवे में से बिल्ली के बच्चों की आवाज आ रही थी। उस आवे को खाली किया गया तो उसमें से एक बिल्ली  अपने बच्चों के साथ जिंदा निकली। ईश्वर का चमत्कार देखकर सब हैरान थे। सब सोचने लगे अगर बिल्ली अपने बच्चों के साथ जिंदा निकली है तो शायद  ब्राह्मणी का बेटा भी जिंदा हो। जब और नीचे देखा गया तो वह ब्राह्मणी का बेटा जिंदा था।

उसकी मां ने जो तिल दिए थे वह काफी लंबे हो चुके थे। राजा उस लड़के ने पूछा " तुमने ऐसा क्या चमत्कार किया जो इतनी आग जल गई लेकिन तुम सही सलामत बच गए। "वह लड़का कहने लगा इसमें मेरा कोई चमत्कार नहीं है। मेरी माँ ने मुझे यह तिल दिए थे और बोला था कि अपने आसपास बिखेर लेना और गणेश जी का ध्यान करते रहना।  मैंने वैसा ही किया। आग की तपिश मुझ तक पहुंच ही नहीं पाई।

 फिर राजा ने उस ब्राह्मणी को बुलाया लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ कि मेरा बेटा जिंदा है। वह सोचने लगी कि इतना ईधन  उस आवे में जल  गया। मेरा बेटा कहां बचा होगा ?‌‌ लेकिन मंत्रियों ने विश्वास दिलाया कि आप का बेटा सुरक्षित है।

राजा ने ब्राह्मणी से पूछा कि ऐसा क्या चमत्कार है कि तुम्हारे पुत्र को आग छू भी नहीं पाई।  फिर ब्राह्मणी ने कहा कि मैं गणेश जी का संकट चौथ का व्रत रखती हूँ। आज भी मैंने गणेश जी का व्रत रखा हुआ था। मैंने गणेश जी से अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना की थी।  इस में मेरा कोई चमत्कार नहीं है यह सब गणेश जी के व्रत का फल है। गणेश जी ने ही मेरे पुत्र की रक्षा की है।  

सकट चौथ व्रत विधि

सकट चौथ का व्रत विवाहित स्त्रियां अपनी संतान की लंबी,आयु और सुख समृद्धि की कामना से करती है।

व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठें और स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहने। दीप जलाकर गणेश जी के मंत्रों का जाप, आरती और ध्यान करें।

इसदिन माताएं अपनी संतान की कामना के लिए निर्जला व्रत करती है।

इसदिन तिलकुट अर्थात तिल को कूट कर उसमें गुड़ से मिश्रित करें। 

शाम के समय किसी ब्राह्मणी से सकट चौथ की कथा सुनें और उन्हें गुड़ या शक्कर मिश्रित तिल और मूली और पैसे दक्षिणा दें।

रात को चंद्रमा के दर्शन कर उन्हें तिल , गुड़ और जल का अर्ध्य दिया जाता है। 

चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात तिल ,गुड़, शकरंद और मूली का भोग लगाने के पश्चात व्रत का पारणा करते हैं।

सकट चौथ व्रत बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि विध्नहर्ता गणेश जी अपने भक्तों के जीवन से सभी विध्नों को दूर कर उन्हें सुख समृद्धि प्रदान करते हैं।  

SHRI GANESH AARTI 
जय गणेश जय गणेश, 
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

जय गणेश जय गणेश, 
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।।
जय गणेश, जय गणेश, 
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। 
लड्डूअन‌ का भोग लगे, संत करें सेवा।।
 जय गणेश जय गणेश, 
जय गणेश देवा।        
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

अन्धन को आंँख देत कोढ़िन‌ को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश, 
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। 

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