BANKE BIHARI MANDIR VRINDAVAN MEIN KAHAN HAI

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 श्री बांके बिहारी मंदिर वृंदावन 

 श्री बांके बिहारी मंदिर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन में रमणरेती पर स्थित है। बांके बिहारी श्री कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। वृन्दावन एक ऐसी पावन भूमि है जिसके बारे में कहा जाता है कि जहां आने मात्र से पापों का नाश हो जाता है। बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालु दूर दूर से दर्शन करने आते हैं। बांके बिहारी मंदिर राजस्थानी शैली में बना है। पहले बांके बिहारी जी की पूजा निधिवन के मंदिर में होती थी लेकिन 1862 के आसपास जब वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर का निर्माण हुआ तो बांके बिहारी जी की मूर्ति को जहाँ स्थापित कर दिया गया।

  बांके बिहारी जी का विग्रह(मूर्ति) कैसे प्रकट हुआ

बाँके बिहारी का विग्रह स्वयं प्रकट हुआ है, इसे किसी ने बनाया नहीं है। इसमें श्री राधा कृष्ण दोनों की ही छवि विद्यमान है। श्री हरिदास जी की संगीत उपासना से प्रसन्न होकर बांके बिहारी जी स्वयं प्रकट हुए थे।

स्वामी हरिदास जी निधिवन में श्री कृष्ण की रासलीला स्थल पर अपने संगीत से श्री कृष्ण को रिझाया करते थे। उनकी भक्ति से रीझ कर श्री कृष्ण उनको दर्शन देते थे। स्वामी हरिदास जी के शिष्य कहने लगे कि आप हमें भी भगवान के दर्शन करवाएं। श्री हरिदास जी अपनी भक्ति में लीन होकर भजन गा रहे थे कि श्री राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई तो हरिदास जी के स्वर बदल गया और वह यह पद गाने लगे-

"माई री, सहज जोरी प्रगट भई, जु रंग की गौरश्याम घन दामिनी जैसें।

प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रहीहै, न टरिहहिं तैसें॥

अंग अंग कि उजराई, सुघराई, चतुराई, सुंदरता ऐसें।

श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वैसे वैसे॥"

स्वामी हरिदास जी की साधनाशक्ति से श्री कृष्ण अपनी परआह्लादिनी शक्ति श्री राधारानी जी के साथ प्रकट हो गए।

श्रीकृष्ण और राधाजी ने हरिदास के पास रहने की इच्छा व्यक्त की तो स्वामी हरिदास जी श्री कृष्ण से कहने लगे कि मैं तो संत हूँ प्रभु आपको तो मैं लंगोट पहना दूँगा लेकिन राधा जी के लिए नित्य आभूषण कहाँ से लाकर दूँगा। 

हरिदास जी की विनय सुनकर श्री  राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह के रूप में प्रकट हुई। इसके बांके बिहारी जी का श्रृंगार कभी राधा रानी के रूप में और कभी श्री कृष्ण के रूप में किया जाता है।  

श्री कृष्ण को बांके बिहारी क्यों कहा जाता है 

स्वामी हरिदास जी ने बिहारी जी के इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया। बांके का अर्थ होता है तीन कोण से मुड़ा हुआ। श्री कृष्ण जब बांसुरी बजाने के लिए जिस मुद्रा में खड़े होते हैं तो उनका दाहिना घुटना बाएं घुटने पर मुड़ा होता है,उनका हाथ बांसुरी पकड़ने के लिए मुड़ा होता है, बांसुरी बजाने वक्त उनकी गर्दन भी एक तरफ से थोड़ी झुकी होती है। उनकी इस मुद्रा को त्रिभंग भी कहते हैं। बिहारी कि अर्थ होता है परम आनंद लेने वाला।

बांके बिहारी मंदिर में बार- बार पर्दा क्यों किया जाता है 

बाँके बिहारी मंदिर वृन्दावन धाम का ऐसा मंदिर है, जिस की मान्यता है अगर कोई भक्त आंख भरकर उनके स्वरुप को देखले तो बिहारी जी उसके साथ चले जाते है। इसलिए बाँके बिहारी मंदिर में बार बार पर्दा किया जाता है.

बाँके बिहारी जी के बारे में ऐसी दंत कथाएं हैं कि  बाँके बिहारी अपने भक्तों के प्रेम भाव से इतने प्रभावित हो जाते है की अपने आसन से उठ कर अपने भक्तों के साथ चले जाते है।

 कोई भी आँख भरकर बिहारी जी के दर्शन नहीं कर सकता तांकि भक्तों के साथ बिहारी जी की आँखे चार ना हो जाए। इस लिए उन्हे पर्दे  में रखकर क्षणिक झलक ही दिखाई जाती है। पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्त बाँके बिहारी जी के सामने पर्दा खिंचता -गिराता रहता है।

दंत कथाओ के अनुसार बहुत बार बाँके बिहारी अपने भक्तों के साथ चले जाते है और मंदिर से गायब हो जाते है।
एक दंत कथा के अनुसार उनकी एक भक्तमती की बड़ी इच्छा थी की वह वृन्दावन जाकर बाँके बिहारी जी के दर्शन करे। वह अपने पति के साथ कुछ दिनों के लिए वृन्दावन धाम दर्शन के लिए आई। वह दोनों सुबह-शाम बिहारी जी के दर्शन करते।जब दोनों के वृन्दावन धाम से जाने का दिन आया तो भक्तमती ने कहा ," प्रभु, मैं चाहती हूँ कि आप भी मेरे साथ चले।"

जब वह घोड़ा -गाड़ी से रेलवे स्टेशन की ओर जा रहे थे तो प्रभु गो बालक के रुप में उन्हे साथ ले जाने की प्रार्थना करने लगे।
उधर मंदिर के पुजारी ने भगवान को गायब पाया तो वह भक्तमती के पीछे- पीछे भागे। उस पुजारी ने देखा की भगवान उन के साथ घोड़ा- गाड़ी में बैठे हुए है तो पुजारी जी ने बिहारी जी से मंदिर वापिस चलने का आग्रह किया। उन का आग्रह मानकर बिहारी जी जो गो बालक के रुप में थे अचानक गायब हो गए और मंदिर में वापिस चले गए।

बाँके बिहारी जी की लीला देखकर भक्त और भक्तमती ने वहां वृन्दावन धाम में ही रहने का निर्णय ले लिया। बिहार जी की लीला की ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जब बिहारी जी का विग्रह गायब हो गया.

इस कारण ही उन को पर्दे में रखने का निर्णय लिया गया। कितने ही भक्तों ने उनके साक्षात दर्शन किए है।

बांके बिहारी मंदिर के रोचक तथ्य 

बांके बिहारी मंदिर में केवल जन्माष्टमी वाले दिन ही यहां मंगला आरती होती है, पूरे साल नहीं यहां मंगला आरती नहीं होती उसके पीछे भाव है  कि बिहारी जी रास से थककर देर से शयन करते हैं इसलिए सुबह उनकी निद्रा में विध्न नहीं होना चाहिए।

बिहारी जी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होते है बाकी दिन चरण ढके रहते। अक्षय तृतीया के दिन उनके विग्रह पर चंदन चढ़ाया जाता है। अगर आपको बिहारी जी के चरण दर्शन करने है तो अक्षय तृतीया के दिन मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं। 

केवल शरद् पूर्णिमा जिसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है के दिन ही बांसुरी धारण करते है अन्य दिन बिहारी जी बांसुरी धारण नहीं करते। स्वामी हरिदास जी का भाव था कि बांके बिहारी जी उनके छोटे से बालक है। अगर बांसुरी पकड़ेंगे तो थक जाएंगे इसलिए वह बिहारी जी को बांसुरी धारण नहीं करवाते थे। 

बिहारी जी केवल सावन तीज के दिन झूले पर बैठते।  

बाँके बिहारी प्राकट्य दिवस

ऐसा माना जाता है कि बाँके बिहारी के मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी  के वंशजों द्वारा किया गया है। श्री हरिदास जी के प्रेम में ही बाँके बिहारी स्वयं प्रकट हुए थे। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्वामी हरिदास की सघन उपासना के फलस्वरूप श्री बांके बिहारी जी का वृन्दावन के निधिवन में प्राकृट्य हुआ था। बांके बिहारी जी के इस प्राकट्य दिवस को बिहार पंचमी के रूप में मनाया जाता है। 
ब्रजधाम के वृन्दावन में बांके बिहारी जी का प्राकट्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। इसदिन बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर दूर से आते हैं। बांके बिहारी जी का विग्रह निधिवन में स्वामी हरिदास जी को मिला था। पहले निधिवन के एक मंदिर में बिहारी जी की पूजा की जाती थी। वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर निर्माण के पश्चात यह विग्रह मंदिर में स्थापित किया गया। 

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