प्रेरणादायक आध्यात्मिक कहानियां हिन्दी में
आध्यात्मिक कहानियां हमारे हृदय में ईश्वर के प्रति भक्ति जागृत करती है। शुभ और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देती है। हमें अपने कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए आध्यात्मिक कहानियां इस बारे में समझाती है।ईश्वर के दर्शन
spiritual story in hindi:एक बार एक राजा प्रजा वत्सल राजा था। धन,वैभव और ऐश्वर्य का घमंड उसे लेशमात्र भी नहीं था। कुशालता पूर्ण राज्य का शासन करने के साथ साथ वह पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की भक्ति करता था। एक बार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसे साक्षात दर्शन दिये। भगवान के दर्शन पाकर वह धन्य हो गया। भगवान बोले कि,"मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं तुम जो चाहो वो मांग लो।"
राजा बोला कि," प्रभु! मेरे पास आपका दिया सब कुछ है। लेकिन मेरी एक इच्छा है कि जैसे आपने मुझे साक्षात दर्शन दिये है वैसे ही मेरी पत्नी, स्वजनों और प्रजा को भी दर्शन देकर कृतार्थ करें।"
भगवान बोले कि राजन्! ईश्वर के दर्शन के लिए हृदय में वैसी भक्ति-भाव और तड़प भी होनी चाहिए उसके बिना वह मेरे दर्शन कर पाएंगे।
राजा ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया तो भगवान बोले कि ठीक है कल जो भी मैं पर्वत की चोटी पर पहुंच जाएगा मैं उसको साक्षात्कार दर्शन दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है तुम किसी को भी मेरे दर्शन करने के लिए विवश नहीं करोगे। राजा ने हां में हामी भर दी।
राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि भगवान कल साक्षात्कार पर्वत की चोटी पर दर्शन देंगे। सभी लोग कल राजा के संग पर्वत पर चलने के लिए तैयार रहें।
अगले दिन राजा अपनी प्रिय रानी, स्वजनों , मित्रों, दरबारियों और प्रजा के संग पर्वत की तरफ़ चल पड़ा। राजा हृदय से बहुत आनंदित था कि मेरी सारी प्रजा ईश्वर के दर्शन कर पाएगी।
अपनी कुछ दूरी पर ही पहुंचे थे कि एक तांबे के सिक्कों का पहाड़ दिखा। बहुत से प्रजाजन उन सिक्कों को अपने कपड़ों में समेट कर वापस लौट गए। राजा के समझाने का उन पर कोई असर नहीं हुआ।
कुछ रास्ता और तय करने के पश्चात चांदी के सिक्कों का पहाड़ दिखा। जब जो प्रजा बची थी उनके मन में सिक्कों का मोह जाग गया और वें भी चांदी के सिक्कें अपने कपड़ों में भर कर अपने घरों की ओर वापस लौट आए। वें सभी यह कह रहे थे कि पहले इन सिक्कों से अपनी गरीबी दूर कर लें ईश्वर के दर्शन फिर कभी कर लेंगे। राजा चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया।
अब राजा के साथ उसके कुछ खास मंत्री और परिवार वाले ही रह गए थे। राजा उनको समझने लगा कि जो लोग वापस लौट गए हैं वह नहीं जानते उन्होंने क्या खो दिया है? राजा की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि वहां पर सोने के सिक्कों का भंडार दिख गया। सभी लोग उसे पाने की लालसा में उस ओर भाग गए।
अब राजा के साथ केवल उसकी रानी ही रह गई थी। राजा को इतने से ही संतोष करना पड़ा कि चलो कोई तो है जिसे धन के मोह से ज्यादा ईश्वर के दर्शन प्यारे हैं। राजा रानी को बताने लगे कि जब ईश्वर दर्शन देंगे तो तुम उनसे कुछ भी मांग सकती हो। लेकिन उसकी बात पूरी सुनने से पहले ही रानी को हीरे-जवाहरात का पहाड़ दिख गया था रानी ने अपने मनपसंद हीरे लिए अपने महल की ओर वापस चली गई।
राजा अकेला ही उस पर्वत पर पहुंचा। वहां पर सचमुच ईश्वर विद्यमान थे। उन्होंने राजा से पूछा कहो राजन! कहां है तुम्हारे स्वजन और तुम्हारी प्रिय प्रजा। राजा कुछ भी बोल ना पाया।
तब ईश्वर ने कहा कि राजन् ईश्वर के दर्शन करने के लिए मन में भक्ति और तड़प होनी चाहिए। लेकिन जो लोग भौतिक एश्वर्य को ईश्वर के दर्शन से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं उनको कभी भी मेरे दर्शन नहीं हो सकते। एक तुम थे जिसको मैंने बोला कि कुछ भी मांग लो लेकिन तुमने मुझे अपनी प्रजा को मुझे दर्शन देने के लिए मना लिया।
लेकिन तुम्हारी प्रजा ने ईश्वर के दर्शन से अधिक महत्व धन को दिया। राजन भक्ति ईश्वर के प्रति समर्पण भाव है जो श्रद्धा भाव और विश्वास के साथ हृदय से होकर विचारों में आता है। वह भाव तुम में तो जागृत हो गया इसलिए तुम को मेरे दर्शन हो गए।
पुण्य और कर्तव्य
short spiritual story in hindi:एक बार एक व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ यात्रा पर निकला। मार्ग में उसकी पत्नी और बच्चों को बहुत प्यास लगी। लेकिन बहुत चलने के पश्चात भी उन्हें कहीं पानी दिखाई नहीं दे रहा था। प्यास के मारे बच्चे बेहाल हो रहे थे। वह व्यक्ति मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि प्रभु कोई तो रास्ता दिखाओ?
तभी उसे कुछ दूरी पर एक संत की कुटिया दिखाई दी। उसने उनको प्रणाम कर पूछा कि," महाराज! जहां पानी कहां मिलेगा?
संत जी बोले- जहां से कुछ दूरी पर एक नदी है वहां से जल ले आओ।
उस व्यक्ति के बच्चे प्यास के कारण बेहाल थे इसलिए वह अपने परिवार को वहीं छोड़ कर स्वयं पानी लेने नदी पर चला गया। लेकिन जब वह काफी समय तक वापस नहीं लौटा तो संत जी उसको देखने के लिए नदी की ओर चल पड़े।
रास्ते में उन्हें वह व्यक्ति आता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने उससे देरी कारण पूछा। वह व्यक्ति बोला जब मैं जल लेकर वापस लौट रहा था तो मुझे कुछ लोग मिले जिनका प्यास से हाल बेहाल था। मैं अपना जल उनको पिलाकर वापस लेने चला गया। जब मैं दोबारा से आया तो मुझे पुनः कोई मिल गया जिसे बहुत प्यास लगी थी। इस तरह दो तीन बार हुआ। संत जी ने पूछा इसका तुम को क्या लाभ हुआ?
वह व्यक्ति बोला - मैंने मानवता के धर्म का पालन किया है।
संत श्री बोले ऐसे धर्म पालन का क्या लाभ अगर तुम अपने परिवार के प्रति कर्तव्य को निभाने में विफल रहो। यहां तुम्हारे बच्चों का प्यास से बुरा हाल है और तुम अपना धर्म निभा रहे हो। तुम अपना धर्म वैसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया था। व्यक्ति को संत की बात समझ नहीं आई।
संत जी कहने लगे कि," जैसे मैंने तुम्हें नदी का रास्ता बताया था। वैसे तुम्हें भी सभी तीर्थ यात्रियों को नदी का मार्ग बताकर अपना धर्म निभाना चाहिए था और परिवार के लिए जल लेकर जल्दी से लौट आना चाहिए था। इससे तुम्हारे धर्म और कर्त्तव्य दोनों का पालन एक साथ हो जाता।"
अब उस व्यक्ति को संत जी की बात समझ में आ गई कि हम अपने परिवार के प्रति कर्तव्य पालन करते हुए भी दूसरे लोगों को रास्ता दिखा कर पुण्य कमा सकते हैं।
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