भगवान शिव की कहानियां बच्चों के लिए
भगवान शिव त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से एक है। भगवान ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु जी पालनकर्ता कहा जाता है और भगवान शिव को संहारक कहा जाता है। भगवान शिव अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए बहुत से कार्य किए हैं। भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया, सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए हलाहल विष को पिया।
शिवरात्रि भगवान शिव से संबंधित सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है। माना जाता है कि इसदिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव की पूजा देवी-देवता और दैत्य दोनों करते थे। मां पार्वती भगवान शिव की अर्द्धांगिनी है और गणेश और कार्तिकेय जी मां पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं।
बच्चों को भगवान अपने देवी-देवताओं की कहानियां जरूर सुनानी चाहिए जिससे उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के बारे में जानकारी होती है। इस आर्टिकल में पढ़ें भगवान शिव की कहानियां बच्चों के लिए
गंगा और भगवान शिव की कहानी बच्चों के लिए
Ganga and Shiva Story For Kids in Hindi:भगवान शिव के चित्र या फिर मूर्ति में आपने भगवान शिव की जटाओं से गंगा को प्रवाहित होते हुए देखा होगा। उसके पीछे एक पौराणिक कथा है।
एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इंद्रदेव को लगा कि वह स्वर्ग की लालसा में यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने यज्ञ का घोड़ा चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते के लिए निकले। कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा देखकर उन्हें लगा कि इन्होंने यज्ञ का घोड़ा चुराया है। वें कपिल मुनि पर घोड़े की चोरी का आरोप लगाने लगे। उन्होंने राजा सगर के सभी पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।
राजा सगर कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। उन्होंने कपिल मुनि अपने पुत्रों द्वारा उन पर मिथ्या आरोप लगाने के लिए क्षमा मांगी और अपने पुत्रों के मोक्ष का उपाय पूछा।
कपिल मुनि बोले राजन! अगर तुम्हारे वंश में से कोई मोक्षदायिनी गंगा को पृथ्वी पर लेकर आएगा तभी उनको मोक्ष की प्राप्ति होगी। उस समय गंगा पृथ्वी पर नहीं स्वर्ग में बहती थी।
गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा सगर, उनके पोत्र अंशुमन और उनके पुत्र दिलीप ने घोर तपस्या की। लेकिन वें गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल नहीं हो सके।
उनके पश्चात उनके वंशज भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तप किया। उनके तप से गंगा प्रसन्न हुई। भगीरथ ने गंगा से अपने पितरों के मोक्ष के लिए पृथ्वी पर चलने की प्रार्थना की।
मां गंगा उनके तप से प्रसन्न थी इसलिए बोली कि मैं चलने के लिए तैयार हूं। लेकिन मेरा वेग बहुत ज्यादा है। मेरे वेग से पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। भागीरथ ने उसका उपाय पूछा।
मां गंगा कहने लगी कि," तुम भगवान शिव की तपस्या करो। वह इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।"
भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिये और वरदान मांगने के लिए कहा।
भगीरथ ने सारी व्यथा भगवान शिव को बता दी। भगवान ने गंगा को अपनी जटाओं में बांधकर पृथ्वी पर उतरने को कहा। जिससे गंगा का वेग कम हो गया। इसलिए गंगा भगवान शिव की जटाओं से बहती है और उनको गंगाधर भी कहा जाता है।
हलाहल विष और भगवान शिव की कहानी बच्चों के लिए
Halahal Vish and Shiva Story For Kids In Hindi: भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। भगवान शिव के नीलकंठ कहलाने के पीछे की पौराणिक कथा
एक बार देवताओं और दैत्यों ने अमृत की प्राप्ति के लिए सागर मंथन करने की योजना बनाई। मंदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को मथने की रस्सी को तौर इस्तेमाल किया गया।
बहुत समय मथने के पश्चात हलाहल विष निकला। उस विष के प्रभाव से समुद्र के जीव जंतु घबरा गये और पृथ्वी जलने लगी।
भगवान शिव के ही सृष्टि को इस विनाश से बचा सकते थे। सभी देवी-देवता भगवान शिव की शरण में जाकर स्तुति करने लगे कि प्रभु इस हलाहल विष से आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं।
देवताओं की विनती सुनकर भगवान शिव उस विष को पी गए। उन्होंने उस विष को अपने गले से नीले नहीं उतरने दिया। जिसके प्रभाव से उनका गला नीला हो गया। इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है।
रावण और भगवान शिव की कहानी बच्चों के लिए
Ravana and Shiva Story For Kids: एक बार रावण अपने पुष्पक विमान पर सवार होकर भ्रमण के लिए निकला। पुष्पक विमान की एक खासियत थी कि वह मन की गति से चलता था। लेकिन रावण जब कैलाश पर्वत के पास पहुंचा तो विमान की गति रुक गई।
रावण को जब पता चला कि भगवान शिव की अनुमति के बिना कोई भी कैलाश पर्वत पर प्रवेश नहीं कर सकता तो उसने कैलाश पर्वत को ही उठाने का प्रयास किया।
भगवान शिव जान गए कि रावण अहंकार में भरकर ऐसा काम कर रहा है। उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिसके पश्चात रावण का हाथ पर्वत के नीचे आ गया। रावण को असहनीय पीड़ा हो रही थी। अब उसे अपनी ग़लती का अहसास हो चुका था। तब उसने भगवान शिव की स्तुति की जिसे सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और रावण को भार मुक्त कर दिया। वह स्तुति शिव तांडव स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
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