RAJA BALI AND LORD VISHNU VAMANA AVTAR STORY IN HINDI

RAJA BALI AND LORD VISHNU VAMANA AVTAR STORY IN HINDI राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार की कहानी lord vishnu story 

राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार की कहानी

वामन अवतार भगवान विष्णु ने राजा बलि से स्वर्ग लोक देवताओं को पुनः वापस दिलाने के लिए लिया था। वामन रूप में भगवान विष्णु महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र के रूप में अवतरित हुए। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्हें उपेंद्र और त्रिविक्रम नाम से भी जाना जाता है।

Lord vishnu and raja Bali story in hindi:राजा बलि भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद के पौत्र और राजा विरोचन के पुत्र थे। जब इंद्रदेव दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण श्री हीन हुए थे। उस समय राजा बलि के साथ मिलकर ही उन्होंने समुद्र मंथन का कार्य किया था। क्योंकि समुद्र मंथन अकेले देवता नहीं कर सकते थे। उस समय उन्होंने दैत्यों के साथ संधि करके समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन से निकले अमृत को भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को पिला दिया। जिससे देवताओं की शक्ति बहुत बढ़ गई। इंद्रदेव ने अपने वज्र से राजा बलि को मारा। लेकिन दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी विद्या से उन्हें पुनः जीवित कर दिया। 

उसके पश्चात राजा बलि ने बहुत से यज्ञ किए और सारे भूमंडल को विजय कर लिया। उसके पश्चात राजा बलि ने स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा से यज्ञ किया। उस यज्ञ से उन्हें स्वर्ण मंडित रथ, घोड़े, कवच धनुष और तर्कश प्राप्त हुए। उनके दादा प्रहलाद ने दिव्य पुष्प माला और गुरु शुक्राचार्य ने दिव्य शंख प्रदान किया। यज्ञ से प्राप्त सामग्री, दिव्य माला और शंख को लेकर राजा बलि ने स्वर्ग विजय के लिए प्रस्थान किया। 

उनके दिव्य तेज को देखते हुए देव गुरु बृहस्पति ने देवराज इन्द्र को स्वर्ग लोक छोड़कर चले जाने परामर्श दिया। उनका मानना था कि राजा बलि का बल बहुत बढ़ गया और देवता इस समय उसका मुकाबला नहीं कर सकते। देवताओं को विवशता के कारण स्वर्ग छोड़ कर जाना पड़ा। अब तीनों लोकों पर राजा बलि का अधिपत्य स्थापित हो गया। 

Vamana Avtar story in hindi

देवताओं की माता अदिति को अपने पुत्रों के स्वर्ग लोक त्यागने का बहुत कष्ट हुआ। स्वर्ग पर अब दैत्य राज बलि का अधिकार हो गया था। माता अदिति ने महर्षि कश्यप से कहा कि मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे भगवान विष्णु मुझ पर प्रसन्न हो जाए और मेरे पुत्रों को पुनः स्वर्ग लोक प्राप्त हो जाए। महर्षि कश्यप ने उन्हें पयोव्रत करने के लिए कहा। माता अदिति के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और उनके पुत्रों को राज्य वापस दिलाएंगे। 

समय आने पर भगवान भगवान ने अभिजीत मुहूर्त पर अवतार लिया। जब वामन भगवान को राजा बलि की दानवीरता के बारे में पता चला तो वह उनके यज्ञ में पहुंच गए। राजा बलि ने उनका पूजन कर उचित मान-सम्मान दिया। 

राजा बलि अभिमान वश कहने लगे कि," मैं तीन लोक का स्वामी हूं आप मुझे से जो चाहे मांग सकते हैं। मैं आपकी हर मांग पूरी करने की क्षमता रखता हूं।"

भगवान विष्णु ने कहा- राजन! चाहे तीनों लोकों पर आपका अधिपत्य है लेकिन मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए। लेकिन आपको मेरी मांग पूरी करने का संकल्प लेना होगा।

 दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को टोका कि यह वटुक विष्णु का अवतार है यह तीन पग में ही तीनों लोकों को नाप लेगा। यह तुम्हारी सम्पत्ति देवराज इन्द्र को सौंप देगा। तुम्हारी धन सम्पदा सब इसकी हो जाएगी तो तुम अपने जीवन का निर्वाह कैसे करोगे। राजा बलि बोले चाहे यह स्वयं विष्णु भगवान ही क्यों ना हो यह मुझ से दान मांगने आए तो मैं इनको अपने द्वार से खाली वापस नहीं भेज सकता। राजा बलि हाथ में कमंडल लेकर जैसे ही संकल्प करने लगे गुरु शुक्राचार्य उसकी डंडी में बैठ गए ताकि राजा बलि संकल्प ना ले सकें। 

भगवान विष्णु गुरु शुक्राचार्य की माया जान गए । उन्होंने एक तिनका लिया और कमंडल की डंडी में डाल दिया। गुरु शुक्राचार्य को बाहर आना पड़ा। अब राजा बलि ने यह संकल्प लें लिया कि मैं ब्राह्मण को तीन पग भूमि दान करूंगा। 

वामन भगवान ने दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया। अब भगवान कहने लगे कि ,"राजा बलि में तीसरा पग कहा पर रखूं।राजन! तुम ने मेरे साथ छल किया है वचन पूरा ना करने पर तुम को नरक की प्राप्ति होगी।"

 अपना वचन पूरा करने के लिए राजा बलि अपना सिर अर्पित करते हैं कि आप इस पर अपना पैर रख सकते हैं। तभी वहां पर ब्रह्मा जी और प्रह्लाद जी आ गए। ब्रह्मा जी ने वामन भगवान की स्तुति कर कहा कि प्रभु! राजा बलि ने अपना राज्य, लक्ष्मी और जहां तक की अपना शरीर भी आपको समर्पित कर दिया है।

 इसलिए प्रभु यह दंड के अधिकारी नहीं है। भगवान विष्णु बोले - मैं इसकी परीक्षा ले रहा था। इसने राज्य, लक्ष्मी और ऐश्वर्य का कोई भी मोह त्याग अपना शरीर भी मुझे समर्पित कर दिया। इसके गुरु ने श्राप दिया, यहां तक की इसको अपमानित भी होना पड़ा लेकिन यह तनिक भी विचलित नहीं हुआ। 

राजा बलि के इस समर्पण को देखकर भगवान विष्णु ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और वर मांगने के लिए कहा। राजा बलि ने मांगा कि भगवान मेरे द्वारपाल बने ताकि मैं प्रतिदिन उनके दर्शन कर सकूं। भगवान विष्णु ने उसकी विनती स्वीकार कर ली।

 

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