RAMCHARITMANAS KI CHAUPAI

RAMCHARITMANAS KI CHAUPAI FAMOUS RAMCHARITMANAS KI CHAUPAI IN HINDI WITH MEANING QUOTES रामचरितमानस की चौपाई अर्थ सहित 

रामचरितमानस की चौपाई अर्थ सहित 

रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित है। इसकी चौपाइयों में मंत्र तुल्य शक्ति है। रामचरितमानस की चौपाई भक्ति से ओत-प्रोत जो हमारे मन में भक्ति भावना को बढ़ावा देती है और प्रेरणादायक है जो वर्तमान जीवन में भी हमारा मार्गदर्शन करती है।

मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी।।

भावार्थ - प्रभु श्री राम मंगल करने वाले और अमंगल को हरने वाले हैं दशरथ नंदन श्री राम मुझ पर कृपा करें।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। 
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥

भावार्थ - जो ईश्वर ने रच रखा है वहीं होगा इसलिए तर्क करने से कौन शाखा(विस्तार )बढावै(मन में) ऐसा कह कर भगवान शिव हरि नाम जपने लगे और माता सती वहां चली गई जहां पर सुख धाम  प्रभु श्री राम थे। 

* यह चौपाई रामचरितमानस के बालकांड में आती है जब माता भगवान शिव के समझाने के बाद भी श्री राम की परीक्षा लेने जाती है। भगवान शिव तब यह चौपाई बोलते हैं। 

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥ 

भावार्थ - हरि अनंत है उनका कोई पार नहीं पा सकता और उनकी कथाएं भी अनंत है। प्रभु की कीर्ति का वर्णन सभी संत ने बहुत प्रकार से करते है।

मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥

भावार्थ -प्रभु श्री राम का नाम मंगल करने वाला और अमंगल को हरने वाला हैं जिसे भगवान शिव मां पार्वती के संग सदा जपते हैं।

सिय राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी॥

 भावार्थ- इस पूरे संसार में श्री सिया राम का वास है अर्थात सब में ईश्वर का वास हैं इसलिए हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। 

जेहि का जेहि पर सत्य सनेहू, 
सो तेहि मिलहिं न कछु संदेहू।

भावार्थ - जिसका जिस चीज पर सच्चा स्नेह होता है वह उसे अवश्य मिल जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

गुरगृहं गए पढ़न रघुराई।
अलप काल बिद्या सब आई।।

भावार्थ -  श्री राम विद्या प्राप्ति के लिए गुरुकुल में गए और अल्प काल में ही वह शिक्षा प्राप्त को प्राप्त कर लिया। 

*यह चौपाई रामचरितमानस के बालकांड में आती है। ऐसा माना जाता है कि रामचरितमानस की इस चौपाई का जाप शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को करना चाहिए था।

बंदउँ बालरूप सोइ रामू।
सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥

 भावार्थ - मैं भगवान राम के उस बाल रूप की वन्दना करता हूं जिनका नाम जपने से सभी सिद्धियां आसानी से प्राप्त जाती है। 

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी
अद्भुत रूप बिचारी॥

भावार्थ- तुलसीदास जी कहते हैं कि दीनों पर दया करने वाले, माता कौशिल्‍या के हितकारी प्रगट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई। 

 

जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता॥ 


भावार्थ- हे पर्वत राज की पुत्री आपकी जय हो! जय हो! हे भगवान शिव के मुखरूपी चंद्रमा की चकोरी आपकी जय हो! हे हाथी के मुख वाले गणपति जी और छः मुखवाले कार्तिकेय जी की माता आपकी जय हो। हे जगत जननी! हे बिजली की सी कांति वाले शरीर वाली आपकी जय हो! 

 

सुनहु भरत भावी प्रबल, 
बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि, लाभ, जीवन, मरण
यश, अपयश विधि हाथ। 

भावार्थ - मुनि वशिष्ठ ने बिलख (दुःखी होकर)भरत से कहा कि सुनो, भावी (होनहार) बहुत बलवान है उसके आगे किसी का वश नहीं चलता। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं॥ 

बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ 

भावार्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि सत्संग के बिना मनुष्य में विवेक की उत्पत्ति नहीं होती और बिना राम जी की कृपा के सत्संग सुलभ नहीं मिलता है। 
 

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥ 

भावार्थ - तात! संसार में ऐसा कौन सा कार्य है जो तुम नहीं कर सकते। श्री राम के कार्य के लिए ही तुम्हारा अवतार हुआ है। हनुमान जी ने इतना सुनते ही अपना शरीर पर्वत के समान विशालकाय बना लिया। 

*यह चौपाई रामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में आती है जब जाम्बनत जी हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण करवाते हैं।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥ 

भावार्थ - यह दोहा रामचरितमानस के सुंदरकांड में आता है।‌ यहां पर विभिषण लंकापति रावण को समझा रहा है कि हे नाथ!पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुमति(अच्छी बुद्धि) और कुमति (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है। जहाँ सुमति है, वहाँ अनेकों प्रकार की संपदाएँ विराजमान रहती है लेकिन जहाँ कुमति है वहां विविध प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है।
 

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥ 

भावार्थ - हे तात! संसार में ऐसा कौन सा कार्य है जो तुम नहीं कर सकते। श्री राम के कार्य के लिए ही तुम्हारा अवतार हुआ है। हनुमान जी ने इतना सुनते ही अपना शरीर पर्वत के समान विशालकाय बना लिया। 

यह चौपाई रामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड कांड में आती है। जब सीता माता की खोज करने समुद्र लांघकर कर लंका जाना था। जाम्बवान् जी हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद करवाते। 

दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु  नाथ मम संकट भारी।।

भावार्थ - दीनों पर दया करना तो प्रभु आपका विरद है। उसी विरद का स्मरण कर प्रभु आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए। 

यह चौपाई रामचरितमानस के सुंदरकांड में आती है जब हनुमान जी लंका दहन का सीता माता से आज्ञा लेने जाते हैं तब माता सीता हनुमान जी से कहती हैं कि प्रभु को प्रणाम कर मेरा संदेश कहना।
 
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू।

भावार्थ - मैं गुरु देव के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूं जो सरूचि , सुगंधित और अनुराग रूप रस से परिपूर्ण है। वह अमर‌ मूल का सुंदर चूर्ण है जो भव रोगों के परिवार का नाश‌ करने वाला है। 
 
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
 निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
 जो दायकु फल चारि।।

भावार्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि," श्री गुरु के चरणों की रज से मैं अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर श्री रघुबर जी के निर्मल यश का वर्णन करता हूं जो चारों फलों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) को प्रदान करने वाला है।" 

*हनुमान चालीसा का यह दोहा श्री रामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में भी आता है। संतों का मानना है कि उसके पश्चात जो 8 चौपाई आती है उसके पाठ से दरिद्रता दूर हो जाती है। 

जा पर कृपा राम की होई । 
ता पर कृपा करहिं सब कोई ॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया ।
तिनके हृदय बसहु रघुराया ॥


भावार्थ - जिस पर प्रभु श्री राम कृपा होती है,उस पर तो सभी की कृपा बनी ही रहती है। जिसके हृदय में कपट, झूठ और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में प्रभु श्री राम बसते हैं। 

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