गुरु पर प्रसिद्ध दोहे हिन्दी अर्थ सहित
गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमारे धर्म ग्रंथों में तो गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान माना गया है। गुरु हमारे जीवन से अज्ञानता के अंधकार को समाप्त कर ज्ञान का प्रकाश करता है। गुरु को सम्मानित करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। कबीर दास जी तो गुरु को गोविंद से भी ज्यादा सम्मान देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि गुरु ने ही हमें गोविंद से मिलाया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि गुरु की कृपा बिना कोई भवसागर पार नहीं कर सकता। पढ़ें गुरु पर प्रसिद्ध दोहे हिन्दी अर्थ सहित
KABIR DOHE ON GURU WITH MEANING IN HINDI
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।
भावार्थ -कबीर जी गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं ,"कि जीवन में जब कभी ऐसी स्थिती आ जाए जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों को एक साथ खड़े हों तो सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोविन्द को ? ऐसी स्थिति में जिस गुरू की कृपा से हमें गोविंद मिले हैं मैं उन पर बलिहारी जाता हूं और उन गुरु चरणों के में शीश झुकाना उत्तम है।"
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
भावार्थ - कबीर दास जी गुरु की महिमा का महत्व बताते हुए कहते हैं कि," गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, जैसे कुम्हार भीतर से सहारा देकर बाहर से चोट मारकर उसे सही आकार देता है वैसे ही गुरु अपने शिष्य के अवगुणों पर प्रहार कर उसके जीवन को उचित रूप देता है।"
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया।
कबीर जी कहते हैं कि,"कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा हुआ है उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल समान है। शिष्य के जन्म- जन्मांतरों के विकारों को गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।"
सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर।।
कबीर जी कहते हैं कि," जो मनुष्य गुरु की शरणागति को छोड़कर अन्य पर भरोसा करता है उसके सुख वैभव तो बात ही क्या उसको तो नर्क में भी स्थान प्राप्त नहीं होता।"
TULSIDAS DOHE ON GURU
जौं बिरंचि संकर सम होई।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि," गुरु की कृपा बिना कोई भवसागर पार नहीं कर सकता फिर चाहे वह ब्रह्मा जी और भगवान शिव के समान ही क्यों न हो।"
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