नारद जी और भगवान विष्णु की कहानियां
LORD VISHNU STORY:भगवान विष्णु त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से एक माने जाते हैं। भगवान विष्णु को सृष्टि के पालन कर्ता कहा जाता है। नारद जी भगवान विष्णु के सबसे प्रिय भक्तों में से एक है। नारद जी और भगवान विष्णु की प्रेरणादायक भक्ति कथाएं हमें बहुत प्रेरित करती है। इस आर्टिकल में पढ़ें श्री हरि विष्णु और नारद जी की प्रेरणादायक कहानियां
नारद जी की भगवान विष्णु को श्राप देने की कथा
why did Narada curse lord vishnu story: एक बार नारद एक गुफा में भगवान का स्मरण कर रहे थे तो उनकी गति रूक गई। नारद जी को दक्षप्रजापति से ज्यादा समय तक एक जगह ठहर ना पाने का श्राप मिला था। उनकी तपस्या को देखकर इंद्रदेव को लगा कि कहीं नारद जी स्वर्ग लोक तो नहीं पाना चाहते। उन्होंने कामदेव को नारद जी का तप भंग करने के लिए भेजा। लेकिन कामदेव के मायाजाल का नारद जी पर कोई प्रभाव नहीं दिखा तो उन्होंने नारद जी से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी।
नारद जी ने बिना क्रोध किये कामदेव को क्षमा कर दिया। लेकिन इस बात के लिए नारद जी को अहंकार को गया कि," मैंने कामदेव को भी जीत लिया।" इसी भाव से वह पहले भगवान शिव के पास गए और उन्हें प्रणाम कर सारा वृत्तांत सुनाया। भगवान विष्णु समझ गए कि नारद जी अहंकार के वशीभूत हो गए हैं। भगवान शिव ने नारदजी को यह बात श्री हरि विष्णु को सुनाने के लिए मना किया।
लेकिन नारद जी ने भगवान शिव की बात को गंभीरता से नहीं लिया। नारद जी कामदेव को जीतने के अहंकार भाव से भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे। नारद जी ने श्री हरि विष्णु को प्रणाम कर सारा वृत्तांत सुनाया।
भगवान विष्णु समझ गए कि उनके भक्त के हृदय में अहंकार का अंकुर पैदा हो गया है। भगवान सोचने लगे कि भक्त के लिए इतना अहंकार अच्छी बात नहीं। इसलिए मुझे ही इसका समाधान करना होगा।
नारद जी जब श्री हरि को प्रणाम कर वापस जा रहे थे तो भगवान विष्णु की माया शुरू हो गई। नारदजी ने मार्ग में एक सुंदर नगर देखा। उस नगर की राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन हो रहा था। उसके स्वयंवर में बहुत से राज्यों के राजा पधारे थे।
नारद जी को देखकर वहां के राजा ने नारद जी को प्रणाम किया और अपनी कन्या को दिखाकर कहां कि प्रभु इसके गुण दोष के बारे में बताएं।
उस सुंदर कन्या के रूप को देखकर उस पर मोहित हो गए और सोचने लगे कि कोई ऐसा उपाय हो जाये जिससे यह राजकुमारी केवल मेरे गले में वरमाला डाल दें।
नारद जी विचार करने लगे कि,' क्यों ना मैं भगवान विष्णु से उनका रूप मांग लूं? भगवान विष्णु मार्ग में ही प्रकट हो गए। नारद जी ने पूरी बात भगवान विष्णु को बता दी। नारदजी बोले कि प्रभु मुझे अपना रूप दे दीजिए
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में इस प्रसंग का बहुत सुंदर वर्णन किया है और बताया कि भगवान का भक्त उनसे अपनी कामना मांगते हुए भी यही कह रहा है कि प्रभु जिस में मेरा भला हो वही करना और भगवान भी वही करते हैं जिसमें उसका भला हो।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा ॥
निज माया बल देखि बिसाला।
हियँ हँसि बोले दीनदयाला॥
भावार्थ - नारद जी भगवान विष्णु से कह रहे हैं कि हे नाथ! जिसमें मेरा हित हो आप शीघ्र वहीं कीजिए। मैं आपका दास हूं। अपनी माया का विशाल बल देखकर दीन दयाल श्री हरि मन ही मन मुस्कुराते हुए बोले।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार॥
भावार्थ - श्री हरि बोले हे नारदजी! सुनो, जिसमें तुम्हारा परम हित होगा, हम वही करेंगे, दूसरा कुछ नहीं। मेरा यह वचन असत्य नहीं होगा।
भगवान के गूढ़ वचनों को नारद जी समझ नहीं पाए। भगवान के वचन सुनकर नारद जी सीधे स्वयंवर में चले गए।
नारद जी बहुत प्रसन्न थे कि भगवान विष्णु ने उन्हें अपना सुंदर रूप प्रधान किया है। भगवान शिव के दो गण ब्राह्मण रूप में उस विवाह में मौजूद थे।
जब दुल्हन जयमाला लेकर स्वयंवर में आई तो नारद जी को लगा कि भगवान ने मुझे अपना रूप दिया है इसलिए यह मुझे ही जयमाला पहनाएगी। लेकिन राजकुमारी ने तो उनकी तरफ देखा तक नहीं। उसने जयमाला राजा बन कर आएं भगवान विष्णु के गले में डाल दी। भगवान विष्णु लेकर वहां से चले गए। यह देखकर नारद जी बहुत ही व्यथित हो उठे। नारदजी आश्चचकित थे कि भगवान विष्णु का रूप मिलने के पश्चात भी राजकुमारी ने जयमाला मुझे क्यों नहीं डाली?
तभी भगवान शिव के गण कहने लगे कि महामुनि पहले अपना मुंह दर्पण में देखें । नारद जी देखकर स्तब्ध रह गए क्योंकि भगवान ने उनको वानर का मुख दिया था। शिव गण उनके मुख को देखकर हंसी उड़ानें लगे तो नारद जी ने क्रोध में उनको राक्षस होने का श्राप दिया। नारद जी ने जब पुनः जल में देखा तो उन्हें अपना रूप प्राप्त हो गया।
नारद जी क्रोध में तमतमाते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। नारद जी कहने लगे कि," आपने मेरी जग हंसाई क्यों कराई?
भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी के साथ-साथ वह कन्या भी मौजूद थीं। नारदजी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस राजकुमारी को मैंने चाहा आपने उससे मेरा वियोग करा दिया। इसलिए जब आप मानव रूप में अवतार लेंगे तो आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। आप ने मुझे जो बंदर का रूप दिया था वहीं बन्दर आपकी सहायता करेंगे।
नारद जी के श्राप देते ही भगवान विष्णु ने अपनी माया खींच ली। अब वहां से लक्ष्मी जी और वह राजकुमारी दोनों गायब हो चुके थे। नारद जी भगवान विष्णु की सब माया समझ गए। वह भगवान के चरणों में गिर पड़े कि प्रभु कुछ ऐसा करें कि मेरा श्राप मिथ्या हो जाएं।
भगवान विष्णु ने नारद जी को सांत्वना दी कि एक तो जो कुछ भी हुआ है मेरी इच्छा से ही हुआ है और दूसरे में नहीं चाहता था कि मेरा प्रिय भक्त भक्ति मार्ग से भटक जाए। तुमने स्वयं तो मांगा था वहीं करना जिसमें मेरा हित हो।
इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गए। शिव गण नारद जी के चरणों में गिर कर क्षमा मांगने लगे। नारद जी बोले कि भगवान विष्णु जब मानव रूप धारण करेंगे स्वयं भगवान के हाथों से तुम्हारी मृत्यु होगी और तुम दोनों की मुक्ति हो जाएगी।
नारद जी और भगवान विष्णु की यह कथा हमें शिक्षा देती है कि चाहे जीवन में कैसी भी सफलता प्राप्त कर तो भी अहंकार नहीं करना चाहिए और क्रोध में कोई भी कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए।
भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त कौन
who is the biggest bhakt of Iord Vishnu story:एक बार नारद जी के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि श्री हरि विष्णु का सबसे प्रिय भक्त कौन है? नारद जी नारायण-नारायण करते हुए विष्णु लोक पहुंच गए। भगवान को प्रणाम कर पूछने लगे कि,"प्रभु में जानना चाहता हूं कि आपका सबसे प्रिय भक्त कौन है?
नारद जी को लग रहा था कि भगवान विष्णु उनका ही नाम लेंगे क्योंकि वह सारा दिन नारायण नारायण जो रटते रहते हैं। लेकिन भगवान विष्णु का उत्तर सुनकर नारद जी हैरान हो गए। भगवान विष्णु बोले पृथ्वी लोक पर एक किसान रहता है वहीं मेरा सबसे प्रिय भक्त हैं।
नारद जी ने उत्सुकता से उस किसान का पता पूछा और निकल पड़े भगवान के सबसे प्रिय भक्त को देखने। नारद जी ने निश्चय किया कि मैं पूरा दिन इसकी दिनचर्या देखूंगा कि यह किस विधि से भगवान का नाम लेता है जो उनका प्रिय भक्त बन गया है।
वह किसान प्रातः उठा तो उसने एक बार नारायण-नारायण बोला। फिर वह अपने दैनिक कार्यों में लग गया। जानवरों को चारा खिलाना, खेतों में काम करना। जब दोपहर में उसकी पत्नी भोजन लाई तो उसने भोजन करने से पहले एक बार नारायण-नारायण बोला।
भोजन के पश्चात फिर वह खेतों के काम में लग गया। सूर्यास्त होने के पश्चात वह अपने घर लौट आया। हाथ मुंह धुलवाने के पश्चात उसकी पत्नी ने भोजन परोसा। भोजन करने से पहले उसने एक बार नारायण-नारायण बोला। फिर सोने से पहले उसने एक बार नारायण नारायण बोला।
नारद जी हैरान कि मैं सारा दिन नारायण नारायण जपता हूं फिर भी श्री हरि का प्रिय भक्त नहीं। यह केवल दिन में चार बार नारायण-नारायण बोलकर श्री हरि का सबसे प्रिय भक्त बन गया कैसे?
नारद जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उसकी पूरे दिन की दिनचर्या बताई और पूछा कि प्रभु वह चार बार नारायण-नारायण जप कर आपका प्रिय भक्त कैसे बन गया?
भगवान विष्णु ने नारद जी को कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि नारद जी को एक जल से भरा एक कलश देकर बोलते हैं कि पहले आप तीनों लोकों का भ्रमण करके आए। लेकिन स्मरण रहे कि कलश की एक भी बूंद नीचे नहीं गिरनी नहीं चाहिए।
नारद जी कलश सिर पर रखकर तीनों लोकों की परिक्रमा कर आये। श्री हरि विष्णु ने पूछा कि कहो नारद परिक्रमा कैसी रही और आपने मार्ग में कितनी बार मेरा नाम जप किया।
नारद जी से कहते हैं कि प्रभु परिक्रमा बहुत तनाव पूर्ण रही क्योंकि मेरा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित था कि कहीं क्लश में रखे जल की कोई बूंद छलक ना जाये। लेकिन मैंने कलश से एक भी बूंद नीचे नहीं गिरने दी। इसी तनाव में प्रभु मैं एक बार भी आपका नाम जप नहीं कर पाया।
श्री हरि विष्णु मुस्कुराते हुए बोले कि नारद, वह किसान अपनी दिनभर की तनावपूर्ण दिनचर्या में भी दिन में चार बार तो मेरा नाम मेरा नाम लेता है। इसलिए हुआ ना वह मेरा सबसे बड़ा भक्त। अब नारदजी का अपना सबसे बड़े भक्त होने का अहंकार चूर हो चुका था।
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